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नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अफसरों की आबादी शिफ्टिग पर मुख्यमंत्री से हुई थी। बैठक के दौरान नोएडा, नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना प्राधिकरण की आबादी शिफ्टिग पॉलिसी पर फिर से पेच फंस गया है। करीब एक दशक से राज्य में कई सरकारें बदल गईं, लेकिन किसानों से जुड़ी इस समस्या का समाधान नहीं निकल पा रहा है। अब एक बार फिर किसान संगठनों ने नाराजगी जाहिर की है।
मिली जानकारी के मुताबिक मंगलवार की रात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ से प्राधिकरण अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर वेब कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए से बैठक की थी। करीब एक घंटे चली बैठक में कोई रास्ता नहीं निकल सका। कुछ आपत्तियों के कारण पॉलिसी को हरी झंडी नहीं दी गई है। इससे किसानों को निराशा हाथ लगी है। करीब पांच हजार किसानों के आबादी के प्रकरण अटके हुए हैं।
दूसरी ओर पुलिसिक एक बार फिर फस जाने पर किसानों ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। किसानों का आरोप है कि प्राधिकरणों ने अपनी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए समझौते के आधार पर उनकी आबादी को दूसरी जगह शिफ्ट किया था। अब प्राधिकरण दूसरी जगह आबादी की जमीन देने से आनाकानी कर रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों के प्रयास के बाद प्रदेश सरकार ने आबादी शिफ्टिग पॉलिसी बनाने के निर्देश दिए थे। पिछले डेढ़ वर्ष से इसका प्रस्ताव शासन में विचाराधीन है। मंगलवार को यमुना प्राधिकरण के सीईओ डा अरुणवीर सिंह ने मुख्यमंत्री के सामने पॉलिसी का प्रस्तुतीकरण दिया। इस दौरान नोएडा व ग्रेटर नोएडा के सीईओ से वेबिनार से मुख्यमंत्री ने बात की।
कुछ आपत्तियों के कारण कोई निर्णय नहीं हो सका है। किसानों को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री की हरी झंडी के बाद पॉलिसी को प्रदेश कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। मामला अटक जाने से किसान निराश हैं। किसान संघर्ष समिति के प्रवक्ता मनवीर भाटी ने कहा कि प्रदेश सरकार से किसानों के हित में निर्णय लेने की उम्मीद थी। किसान अब आंदोलन के जरिए अपनी मांग को पूरा कराएंगे।
मनवीर भाटी ने कहा कि शीघ्र ही सभी संगठनों की बैठक बुलाकर आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी। किसान महासंघ के प्रवक्ता रूपेश वर्मा ने कहा कि सरकार के फैसले से निराशा हाथ लगी है। किसी को भी किसानों की चिता नहीं है। किसानों के सामने अब आंदोलन के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। शीघ्र प्राधिकरणों का घेराव किया जाएगा।
आपको बता दें कि यह कोई नया मामला नहीं है। जब उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी, तब भी किसान आबादी शिफ्टिंग पॉलिसी को लेकर संघर्ष कर रहे थे। किसानों को लगातार आश्वासन दिए जाते रहे और अंततः प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार आ गई। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके मंत्रियों ने भी कई बार किसानों को समाधान निकालने के आश्वासन दिए, लेकिन कोई समाधान नहीं निकाला गया। अब जब राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस समस्या का समाधान करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात की।
अंततः मुख्यमंत्री समस्या का समाधान करने के लिए तैयार हुए और उन्होंने तीनों विकास प्राधिकरण को एकीकृत पॉलिसी बनाकर भेजने का निर्देश दिया। इस समस्या का निराकरण करने के लिए तीनों विकास प्राधिकरण ने एक एकीकृत पॉलिसी सरकार को करीब सवा साल पहले भेजी थी। जिस पर लगातार विचार चल रहा था। अब मंगलवार की रात इस पॉलिसी को लागू करने के लिए मुख्यमंत्री ने तीनों विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों से बातचीत की। अभी यह जानकारी नहीं मिल पाई है कि आखिर किन बिंदुओं पर पॉलिसी अटक गई है।
क्या है आबादी शिफ्टिंग पॉलिसी
विकास प्राधिकरण को अपनी योजनाएं लागू करने के लिए किसानों से भूमि खरीदने या अधिग्रहित करनी पड़ती है। जिस इलाके में प्रोजेक्ट आता है, वहां किसानों की आबादी भी होती हैं। नियम यह है कि भूमि अधिग्रहण करने के लिए अधिसूचना लागू होने से पहले जो आवासीय परिसर किसान बना चुके होते हैं, उनके बदले में मुआवजा दिया जाता है। लेकिन गौतम बुध नगर के किसान लगातार यह मांग करते रहे हैं कि उन्हें मुआवजे की बजाए बदले में जमीन की जरूरत है। दरअसल, किसानों का तर्क है कि आने वाले वक्त में उनके परिवार बढ़ेंगे तो उन्हें घर बनाने के लिए ज्यादा जमीन की आवश्यकता होगी। मुआवजा लेने के बाद पैसा खर्च हो जाएगा और उनके सामने आवासीय संकट पैदा हो जाएगा। इस समस्या का समाधान करने के लिए ही आबादी शिफ्टिंग पॉलिसी तैयार की गई है। जिसके जरिए कानूनी तौर पर किसानों की मौजूदा आवासीय इमारतों का मुआवजा और जमीन विकसित सेक्टरों में दी जा सकेंगी।