Tricity Today | प्रतीकात्मक फोटो
मई के महीने में अभी तक सबसे ज्यादा कोरोनावायरस से संक्रमित लोग सामने आए हैं। दूसरी ओर मार्च और अप्रैल महीनों के मुकाबले मई में टेस्ट करने की दर काफी कम हो गई है। इसे लेकर जिले के लोग आपत्ति भी जाहिर कर रहे हैं। हालांकि, इसे लेकर जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के तर्क कुछ अलग हैं। स्वास्थ विभाग का कहना है कि अब बिना वजह लोगों के टेस्ट नहीं करवाए जा रहे हैं। स्पष्ट रूप से बीमार दिख रहे लोगों अथवा बीमार लोगों के संपर्क में आने वालों के टेस्ट किए जा रहे हैं। इस कारण टेस्ट की संख्या गिरी है।
दूसरी ओर अगर उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़ा देखें तो मार्च और अप्रैल के मुकाबले मई के शुरुआती पखवाड़े में टेस्ट की दर तेजी से बढ़ाई गई है। गौतम बुद्ध नगर की बात की जाए तो 12 मई यानी मंगलवार तक 92 नए मरीज सामने आए हैं। अप्रैल महीने के पूरे 30 दिनों में 100 मरीज कोरोनावायरस से संक्रमित पाए गए थे। वहीं, मार्च के महीने में यह संख्या केवल 38 थी। इस तरह अब तक जिले में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 230 तक पहुंच गई है।
मार्च के महीने में 627 लोगों की जांच की गई थी। जिनमें से 38 लोग संक्रमित पाए गए थे। मतलब, 16 लोगों का कोरोनावायरस करवाया जा रहा था तो उनमें से एक संक्रमित पाया जा रहा था। संक्रमण की दर केवल 6 फीसदी थी। अब अगर जांच की बात करें तो अप्रैल के महीने में स्वास्थ्य विभाग ने 2966 लोगों का टेस्ट करवाया था। इस तरह 29 लोगों में केवल एक व्यक्ति कोरोना वायरस से पॉजिटिव पाया गया था। संक्रमण की दर 3.37 प्रतिशत तक गिर गया था।
अब मई में स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है। मई में 12 तारीख (आज) तक 527 लोगों की जांच की गई हैं। जिनमें से 92 लोग बीमार मिले हैं। इस तरह संक्रमितों का प्रतिशत 17.46 तक पहुंच गया है। अगर आंकड़ों के नजरिए से देखा जाए तो जिन लोगों की जांच की जा रही हैं, उनमें हर पांच में से करीब एक मरीज मई में संक्रमित हो रहा है। मई के पहले 12 दिनों में आई संख्या मार्च के पूरे महीने में संक्रमित हुए लोगों के मुकाबले करीब 3 गुना ज्यादा है। दूसरी ओर जांच की दर 25 फ़ीसदी तक रह गई है।
इस बारे में गौतमबुद्ध नगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ दीपक ओहरी ने कहा, "अब उन्हीं मरीजों के नमूने जांच के लिए भेजे जा रहे हैं, जिनमें बीमारी के लक्षण हैं या प्रत्यक्ष रूप से किसी संक्रमित मरीज के संपर्क में हैं। इस कारण से संदिग्ध मरीजों की जांच की संख्या कुछ कम हुई है। भविष्य में जरूरत पड़ने पर जांच की संख्या बढ़ाई जा सकती है।" दूसरी ओर। क्वारंटाइन किए गए लोगों की जांच को लेकर हंगामा हो रहा है। क्वारंटाइन किए गए कई लोगों की जांच किए जाने को लेकर हंगामा भी हुआ है।
जिला अस्पताल और शिशु अस्पताल के कर्मचारियों ने भी क्वारंटाइन किए गए 42 लोगों के नमूनों की जांच की मांग की थी, लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने महज 12 क्वारंटाइन हुए लोगों के ही नमूने जांच के लिए भेजे थे। हंगामा होने के बाद जिलाधिकारी और सीएमओ के हस्तक्षेप पर नमूने लेने का आश्वासन दिया गया था। इसी तरह क्वारंटाइन में रखे गए कई अन्य लोगों की जांच नहीं होने का मामला भी सामने आया है। ठीक ऐसा ही हाल ग्रेटर नोएडा के राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान में देखने को मिला। नर्सिंग स्टाफ ने हड़ताल कर दी और पूरे स्टाफ की जांच करवाने की मांग की। हालांकि, राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक ने इस मांग को खारिज कर दिया था।
कम संदिग्ध मरीजों की जांच के कारण तीन महीने की औसत जांच भी प्रभावित हुई है। अप्रैल तक प्रत्येक 22 संदिग्ध मरीजों में एक संक्रमित मरीज की पुष्टि हुई थी, जबकि 11 मई तक एक मरीज की पुष्टि 18 संदिग्ध मरीजों की जांच के बाद हुई। इससे स्पष्ट है कि संदिग्ध मरीजों की जांच कम हो रही है।