Amity University | आपदा प्रबंधन के बारे में जानकारी देते विशेषज्ञ
पहले ऐसा कहा जाता था कि साइक्लोन सिर्फ समुद्र के किनारे वाले क्षेत्रों को प्रभावित करता है। किंतु अब यह बिहार एवं राजस्थान तक पहुंच रहा है। इससे आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी और बढ़ रही है। साइक्लोन के विषय में आपदा प्रबंधन को भविष्य के लिए पूरी तैयारी करनी होगी। हमें हर खतरे से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट के ईसीडीआरएम के प्रमुख प्रो अनिल कुमार गुप्ता एक कार्यक्रम में आपदा प्रबंधन के बारे में जानकारी दे रहे थे।
कार्यक्रम का आयोजन एमिटी विश्वविद्यालय की तरफ से किया गया था। इसका मकसद आपदा के वजहों का पता लगाना और उनसे बचने के लिए अपनाए जाने वाले तरीकों से अवगत होना था। इस कार्यक्रम के जरिए छात्रों, शिक्षकों व अन्य शामिल लोगों को आपदा से बचाव के उपाय के बारे में जानकारी दी गई। डॉ गुप्ता के अलावा इस कार्यक्रम में नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट की युवा वैज्ञानिक श्रीमती शिल्की, ओपी जिंदल विश्वविद्यालय में स्टूडेंट वेलफेयर के सहायक डीन डॉ संजय कुमार सिंह, एमिटी लखनऊ कैंपस स्थित एमिटी स्कूल ऑफ एप्लाइड सांइसेस की सहायक प्रोफेसर डॉ उपासना यादव ने अपने अनुभव साझा किए।
कार्यक्रम में बोलते हुए प्रो गुप्ता ने कहा कि पर्यावरणीय परिवर्तन के तीन मुख्य कारक हैं। प्रथम जलवायु परिवर्तन। दूसरा भूमि उपयोग परिवर्तन है जिससे अवैध निर्माण हो रहे हैं और जल प्रणाली प्रभावित हो रही है। इसका प्रभाव कुछ वर्षों पहले उत्तराखंड में हम देख चुके हैं। तीसरा प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण है। नियम बनाये जा रहे है किंतु उन्हें कार्य करने वाले संस्थानो जैसे ग्रामीण संस्था या पंचायतों से जोड़ना सबसे आवश्यक है।
युवा वैज्ञानिक श्रीमती शिल्की ने साइक्लोन - केस स्टडी के संर्दभ में जानकारी देते हुए कहा कि ये कम दबाव के क्षेत्र से उत्पन्न होता है। साइक्लोन तेज हवाओं एंव खराब मौसम के साथ आता है। हवा उत्तरी गोलार्द्ध में एंटीक्लॉक दिशा में और दक्षिणी गोलार्द्ध में क्लॉक की दिशा में बहती है। कम दबाव, डिप्रेशन, साइक्लोन स्ट्रॉम, सिवियर साइक्लोन स्ट्रॉम एंव सुपर साइक्लोन जैसे कई तरह के साइक्लोन पाये जाते हैं।
डॉ संजय कुमार सिंह ने प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आपदा जोखिम को कम करने के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण को मुख्य रणनीती बनानी होगी। किसी भी समस्या का सबसे पहले प्रत्युत्तर समुदाय ही होता है। इसीलिए विशेष सामुदायिक क्षमता निर्माण को आपदा प्रबंधन के लिए बेहतर एवं प्रभावी बनाना होगा। डॉ उपासना यादव ने ग्लोबल वार्मिंग के संर्दभ में जानकारी देते हुए कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से तापमान में वृद्धि, मौसम में बदलाव, बर्फ का पिघलना, जलवायु परिवर्तन, बारिश के स्वरूप में परिवर्तन, समुद्र स्तर का बढ़ना, कृषि और वन पूरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।