Durga Ashtami 2020 Date: जानिए दुर्गा अष्टमी का क्यों है इतना महत्व, कब समापन करना होगा लाभकारी

Durga Ashtami 2020 Date: जानिए दुर्गा अष्टमी का क्यों है इतना महत्व, कब समापन करना होगा लाभकारी

Durga Ashtami 2020 Date: जानिए दुर्गा अष्टमी का क्यों है इतना महत्व, कब समापन करना होगा लाभकारी

Google Image | Durga Ashtami

Durga Ashtami 2020 Date, Puja Vidhi, Timings: नवरात्रि में नौ दिनों तक माता के नौ रूपों की पूजा-आराधना की जाती है। इन नौ दिनों तक भक्त स्वयं को माता के चरणों में समर्पित रखते हैं। इस बार दुर्गा सप्तमी, अष्टमी, महानवमी और दशहरा की तिथियों को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। हिंदू पंचांग की गणना के हिसाब से तिथियां अंग्रेजी कैलेंडर की तारीखों की तरह 24 घंटे की नहीं होती हैं। ग्रहों-नक्षत्रों की चाल और स्थिति के हिसाब से ये तिथियां घटती-बढ़ती रहती हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार ये तिथियां 24 घंटे से कम और ज्यादा हो सकती हैं। कई बार दो तिथियां एक ही कैलेंडर दिवस पर पड़ सकती हैं। इस वजह से दो व्रत या त्योहार एक ही दिन पड़ जाते हैं. इस बार नवरात्रि की सप्तमी, महाष्टमी, महानवमी और दशमी तिथि भी आम जन के लिए भ्रम की स्थिति पैदा कर रही है।

हिंदू पंचांग के मुताबिक सही तिथियां


हिंदू पंचांग की गणना करने वाले ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक सप्तमी तिथि 23 अक्टूबर, शुक्रवार को दिन में 12 बजकर 09 मिनट तक है। इस के बाद अष्टमी तिथि शुरू हो रही है। अष्टमी तिथि 24 अक्टूबर, शनिवार को दिन में 11 बजकर 27 मिनट तक रहेगी।  इसके तुरंत बाद नवमी तिथि का आरम्भ हो रहा है। नवमी 25 अक्टूबर, रविवार को दिन में 11 बजकर 14 मिनट तक है। इसके बाद दशमी शुरू हो जाएगी। दशमी दूसरे दिन 26 अक्टूबर, सोमवार को दिन में 11 बजकर 33 मिनट तक है। इसलिए इस बार विजयदशमी पर्व 25 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा।


कन्या पूजन का विधान


देवी माता के भक्त नौ दिनों तक उपवास रखते हैं और सच्चे मन से देवी मां की पूजा-आराधना कर स्वयं को मां के चरणों में समर्पित रखते हैं। अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्याओं को माता के रूप में पूजने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त उपवास रखने के बावजूद भी मां की कन्या रूप में पूजा नहीं करता है, उसका व्रत पूरा नहीं माना जाएगा। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिन देवी मां कैलाश पर्वत को छोड़ कर अपने भक्तों के घर में आकर निवास करती हैं।

शारदीय नवरात्रि में इस बार कन्या पूजन या कुमारी पूजा 24 अक्टूबर को पूर्ण करना है। तभी व्रत को फलित माना जाएगा। हालांकि कन्या पूजन महाष्टमी और महानवमी दोनों ही तिथियों को किया जाता है। नवरात्रि की अष्टमी तिथि के दिन हवन किया जाता है। नवमी तिथि को कन्या पूजन के बाद माता रानी को विदा करके व्रत का पारण किया जाता है। कुछ भक्त हवन के बाद अष्टमी तिथि को ही कन्या पूजन करते हैं। हालांकि पारण समापन तिथि के बाद ही किया जाता है। अष्टमी तिथि के दिन माता की मां महागौरी स्वरूप और नवमी तिथि को मां सिद्धिदात्री के स्वरूप का पूजन किया जाता है। 


पुराणों में भी वर्णन है


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले समुद्र के किनारे नौ दिनों तक देवी मां के नौ रूपों की पूजा-आराधना की थी। उसके बाद दसवें दिन उन्होंने लंकाधिपति रावण का बध किया था। पुराणों में कहा गया है कि देवी मां की स्तुति करते हुए भगवान श्रीराम ने उनसे प्रार्थना की थी। श्रीराम ने संसार से बुराई का अंत करने और अच्छाई को स्थापित करने के लिए मां की पूजा की। उसके बाद से ही विजयाशमी का त्यौहार अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाया जाने लगा।


प्रचलित लोक कथाएं


दुर्गा पूजा को लेकर कई लोक कथाएं भी प्रचलित हैं। पुराणों में भी इसका उल्लेख किया गया है। एक लोक कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण ने नवरात्रि, महानवमी और दुर्गाष्टमी की पूजा के बारे में कहा था। दूसरी लोक कथा के मुताबिक मां दुर्गा ने विजयाशमी के दिन ही राक्षस महिषासुर का वध किया था। दैत्य महिषासुर ने तपस्या कर ब्रह्मा जी से कई वरदान हासिल कर लिया। इसके बाद उसने देवताओं के खिलाफ युद्ध आरम्भ कर दिया। देवताओं के लिए महिषासुर को हराना कठिन था। तब देवताओं ने देवी से प्रार्थना की। देवताओं की रक्षा के लिए मां ने महिषासुर का वध किया। 

मूर्ति विसर्जन


हिंदू पंचाग की गणना के मुताबिक इस शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन सोमवार, 26 अक्टूबर को किया जाना उचित है। उस दिन प्रभात में 06 बजकर 29 मिनट से सुबह 08 बजकर 43 मिनट के बीच मां दुर्गा की मूर्ति विसर्जन करना चाहिए।

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