किसानों ने धिक्कार दिवस मना कर सोई सरकार को जगाया, अम्बानी-अडानी के खिलाफ भी बनी रणनीति

Farmers Protest: किसानों ने धिक्कार दिवस मना कर सोई सरकार को जगाया, अम्बानी-अडानी के खिलाफ भी बनी रणनीति

किसानों ने धिक्कार दिवस मना कर सोई सरकार को जगाया, अम्बानी-अडानी के खिलाफ भी बनी रणनीति

Google Image | किसान संगठनों ने आज धिक्कार दिवस मनाया

शनिवार, 26 दिसम्बर को किसानों के विरोध प्रदर्शन का एक महीना पूरा हो गया है। केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन नए कृषि सुधार कानूनों का किसान पिछले 30 दिन से लगातार विरोध कर रहे हैं। इस मौके पर भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने सभी इकाईयों से 26 दिसम्बर को 'धिक्कार दिवस' तथा 'अम्बानी, अडानी की सेवा व उत्पादों के बहिष्कार' के तौर पर कॉरपोरेट विरोध दिवस मना कर विरोध जताया।

संगठन का कहना है कि मौजूदा केंद्र सरकार संवेदनहीन है। किसान पिछले सात महीने से इस पर आपत्ति जता रहे हैं। जबकि किसान इस भीषण ठंड में एक महीने से दिल्ली-यूपी में धरना दे रहे हैं। बावजूद इसके सरकार किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं दे रही है। इसलिए संगठन ने सरकार को जगाने के लिए 'धिक्कार दिवस' मनाने का फैसला लिया है। संगठन ने आरोप लगाया है कि सरकार  'तीन कृषि कानून' व 'बिजली बिल 2०2०' को रद्द करने की किसानों की  मांग को  हल नहीं करना चाहती।

आईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने कहा कि सरकार का दावा कि वह खुले मन से सहानुभूतिपूर्वक वार्ता कर रही है, एक छलावा है। सरकार देश के लोगों को धोखा दे रही है। सरकार किसान आन्दोलन को बदनाम करने में जुटी है। सरकार जानबूझ कर यह भ्रम फैला रही है कि किसान बातचीत के तैयार नहीं हैं। ऐसा करके सरकार किसानों को हतोत्साहित कर रही है। सरकार की यह मंशा पूरी नहीं होगी। किसान नेताओं ने कभी भी वार्ता के लिए मना नहीं किया है। किसान किसी भी तरह की जल्दी में नहीं हैं और कानून वापस कराकर ही घर जाएंगे। 24 दिसम्बर को सरकार के पत्र में तीन दिसम्बर की वार्ता में चिन्हित मुद्दों का बार-बार हवाला दिया गया है। 

एआईकेएससीसी ने कहा है कि किसान यूनियनों के जवाब में उन्होंने जोर दिया था कि सरकार ने ही कानून की धारावार आपत्तियों की मांग उठाई थी। इन्हें चिन्हित करने के साथ किसान नेताओं ने सपष्ट कहा था कि इन कानूनों के तहत ये धाराएं किसानों की जमीन व बाजार की सुरक्षा पर हमला करती हैं और कॉरपोरेट एवं विदेशी कम्पनियों द्वारा खेती के बाजार में प्रवेश द्वार हैं। नीतिगत तौर पर दृष्टिकोण, मकसद और संवैधानिकता के आधार पर ये अस्वीकार है। पर सरकार ने जान-बूझकर इसे नजरंदाज किया।

इसलिए करीब दो लाख किसान पिछले एक महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं। धरना स्थलों पर किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आंदोलन को ताकत मिल रही है। आस-पड़ोस के क्षेत्रों और दूर-दराज के राज्यों से लोगों की भागीदारी बढ़ रही है। आज 1००० किसानों का जत्था महाराष्ट्र से शाहजहांपुर पहुंचा है। जबकि 1००० से ज्यादा उत्तराखंड के किसान गाजीपुर की ओर चल दिए हैं। दो सौ से ज्यादा जिलों में नियमित विरोध और स्थायी धरने चल रहे हैं।

एआईकेएससीसी ने सरकार के अड़ियल रवैये की कड़ी निन्दा की। संगठन ने कहा है कि सरकार किसानों के भविष्य और जीवित रहने के प्रति संवेदनहीन है। एआईकेएससीसी ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा किये जा रहे दमन की निन्दा की है। हरियाणा के 13 किसानों पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध करने की वजह से 3०7 का मामला दर्ज किया गया है, जो वास्तविक विरोध को दबाने के लिए किया गया है। इससे विरोध और बढ़ेगा।

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