Tricity Today | गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर भगवती प्रकाश शर्मा
अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद भारत की नोएडा इकाई और आईएमएस नोएडा के संयुक्त तत्वाधान में श्री बालेश्वर अग्रवाल जन्म शताब्दी स्मृति पर वेब-गोष्ठी का आयोजन हुआ। बुधवार को कार्यक्रम के दौरान बतौर मुख्य अतिथि गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर भगवती प्रकाश शर्मा, मुख्य वक्ता नेपाल में भारत के पूर्व राजदूत मंजीव सिंह पुरी और विशिष्ट अतिथि जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की प्रोफेसर संगीता थपलियाल के साथ अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महामंत्री श्याम परांडे ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। प्रोफ़ेसर भगवती प्रसाद शर्मा ने कहा, "नेपाल में आज माओवादी सरकार है। इसके लिए यूपीए वन की मनमोहन सरकार जिम्मेदार है।"
‘भारत नेपाल संबंध और भविष्य का पथ’ विषय पर आयोजित इस वेब गोष्ठी की अध्यक्षता पूर्व विदेश सचिव शशांक ने की। कार्यक्रम का संयोजन फिजी नेशनल यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर डॉ. सुरेन्द नाथ गुप्ता के नेतृत्व में हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए शशांक ने कहा कि श्रीराम के समय से ही भारत का नेपाल से मधुर संबंध रहा है। भारत ने हमेशा नेपाल की प्रजातांत्रिक व्यवस्था को सकारात्मक सहयोग किया है। लेकिन आज नेपाल ने चीन की सोच को अपने प्रजातांत्रिक व्यवस्था में ढाल लिया है।
उन्होंने कहा कि नेपाल में भारतीय परियोजनाएं तय समय पर पूरी नहीं होती हैं। आपदा की घड़ी में भारतीय मीडिया ने नेपाल की नकारात्मक छवि प्रस्तुत की। इससे दोनों देशों के रिश्ते में खटास पैदा हुई।
नेपाल से दूरी नहीं नजदीकी बढ़ाने की जरूरत है
मंजीव सिंह पुरी ने बताया कि भारत और नेपाल के लोगों के बीच जैसा संबंध है, वैसा दुनिया में कहीं और देखने को नही मिलता है। उन्होंने स्टेट-टू-स्टेट और पीपल-टू-पीपल रिलेशनशिप की भी चर्चा की। उनके मुताबिक भारत के लोग खुद को सभ्यता से जोड़ कर देखते हैं, जबकि छोटा देश होने के कारण नेपाल के नागरिक राष्ट्रीयता पर बल देते हैं। श्री पुरी ने कहा कि भारत नेपाल-संबंध की वर्तमान परिस्थिति वैश्विक बदलाव का परिणाम है। नेपाल में सामाजिक बदलाव हो रहे है। हमें अपने संबंध में सुधार के लिए दूरी नहीं बल्कि और अधिक नजदिकियां लाने की जरूरत है।
भारत और नेपाल ने आजादी की लड़ाई मिलकर लड़ी है
संगीता थपलियाल ने अपने विचार रखते हुए कहा कि स्वतत्रता के लिए भारत और नेपाल मिलकर लड़े। लोकतंत्र के लिए दोनों देशों ने संघर्ष किया है। भारत और नेपाल की वर्तमान लीडरशिप 1947 के बाद पैदा हुई है। वे भावनाओं का बोझ नहीं ढो रहे हैं। 1988 से 2004 तक कोई भी भारतीय पीएम नेपाल नहीं गया। इससे नए राजनीतिक लिंक नहीं बने। भारत नेपाल का सबसे बड़ा साझीदार है। वहां पेट्रोलियम से संबंधित सारी जरूरतें भारत पूरी करता है। सबसे ज्यादा निवेश भारत ने वहां किया। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2014 में नेपाल गए थे तो इंफ्रास्ट्रक्चर और सड़कों को लेकर समझौते हुए। इनमें देरी हुई है। दोनों देशों के बीच रोटी-बेटी का संबंध आज भी जिंदा है। नेपाली कहते हैं कि भारत में चार वर्ण हैं, लेकिन नेपाल में तीन वर्ण हैं। यहां वैश्य तो हैं ही नहीं। नेपाल के पयर्टन में भी चीनी दखल बढ़ रहा है। बड़ी संख्या में चीनी पर्यटक नेपाल पहुंच रहे हैं।
नेपाल में माओवादी सरकार बनने के लिए मनमोहन सिंह जिम्मेदार
भगवती प्रकाश शर्मा ने भी अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि जवाहर लाल नेहरू ने तिब्बत के मामले पर कहा कि यह चीन का आंतरिक मामला है। उनके मंत्रीमंडल के सहयोगियों ने इस मामले में दखल देने को कहा, लेकिन जवाहर लाल ने अपनी मर्जी से सब किया। अगर तिब्बत के मामले पर सही फैसला होता तो नेपाल की कोई सीमा चीन के साथ नहीं लगती। इसके बाद पीएम मनमोहन सिंह के दौर में वाम दलों के साथ समझौते में तय किया गया कि नेपाल के मामले सीताराम येचुरी देखेंगे। उस समय नेपाल ने छह बार भारत से छोटे हथियार की मांग की थी। यूपीए वन के दौरान अगर भारत वाम दलों के दबाव में काम नहीं करता तो माओवादी सत्ता में नहीं आते।