प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भरोसेमंद अफसरों में शुमार होने वाले गुजरात कैडर में 1988 बैच के आईएएस अरविन्द कुमार शर्मा (एके शर्मा) ने अचानक वीआरएस ले लिया है। एके शर्मा उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हैं। उनके अचानक सेवानिवृत्ति के फैसले ने हर किसी को चौंका दिया है। पहले गुजरात और अब उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों के साथ ब्यूरोक्रेसी में चर्चाएं शुरू हो गई हैं। अब सभी की निगाह उनके अगले कदम को लेकर हैं। वह क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति से जुड़ने जा रहे हैं? या फिर कोई और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पीएम उन्हें देने वाले हैं? कुछ लोगों ने तो दावा किया है कि एके शर्मा यूपी के डिप्टी चीफ मिनिस्टर बन सकते हैं। वह यूपी में 11 जनवरी से होने वाले 12 विधान परिषद सदस्यों के चुनाव में शामिल होंगे।
गुजरात कैडर में 1988 बैच के आईएएस अरविन्द कुमार शर्मा (Arvind Kumar Sharma) की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के फैसले ने हर किसी को चौंका दिया है। उन्हें सामान्य रूप से जुलाई 2022 में रिटायर होना था, लेकिन अचानक उन्होंने वीआरएस ले लिया है। उनका अगला प्लान क्या है? इस सवाल का जवाब बहुत सारे लोग जानना चाहते हैं। शर्मा पिछले 20 साल से नरेन्द्र मोदी के सहयोगी अफसर के रूप में काम कर रहे थे। गुजरात के सत्ता प्रतिष्ठान में इन्हें पीएम मोदी का काफी भरोसेमंद माना जाता है। 1 अक्टूबर 2001 से लेकर 30 मई 2014 तक एके शर्मा लगातार 13 साल गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में नजदीक से जुड़कर काम करते रहे। जब केन्द्र में मोदी सत्तासीन हुए तो पहली बार वह केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली आये और सीधे तैनाती प्रधानमंत्री कार्यालय बतौर संयुक्त सचिव हुई थी। वह 3 जून 2014 से लेकर 30 अप्रैल 2020 तक लगातार 6 साल पीएमओ में तैनात रहे।
कोरोना लॉकडाउन में बदली गई थी भूमिका
देश जिस समय लॉकडाउन जैसी गंभीर चुनौती से जूझ रहा था, उस वक्त पीएम ने इन्हें पीएमओ से बाहर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय का सचिव बनाकर भेज दिया ताकि चुनौतीपूर्ण हालात में देश के छोटे-छोटे उद्योग-धंधों की हालत सुधार सकें। उस समय पीएम ने अरविंद कुमार शर्मा के अलावा एक और आईएएस तरुण बजाज को भी वित्त मंत्रालय में पीएमओ से बाहर तैनाती दी गई थी। तब भी काफी लोगों ने इन दोनों नियुक्तियों को अचरज भरी निगाह से देखा था। करीब आठ महीने के इस कार्यकाल के बाद सोमवार को अचानक शर्मा के वीआएस लेने की खबर सामने आयी है। इस बारे में राजधानी दिल्ली के सत्ता प्रतिष्ठान में कई भरोसेमंद लोगों का मानना है कि शर्मा का अगला ठिकाना यूपी की राजनीति होगी। कुछ का मानना है कि इनकी क्षमताओं का पीएम मोदी किसी और जगह उपयोग करेंगे, लेकिन लाख टके का सवाल है कि वो कौन सी जगह होगी?
योगी मंत्रीमंडल में डिप्टी सीएम बनने की सम्भावना
मिली जानकारी के मुताबिक यदि शर्मा यूपी की राजनीति का रुख करते हैं तो इनका ठिकाना योगी मंत्रिमंडल होगा। इन्हें डिप्टी सीएम भी बनाया जा सकता है। नौकरी से डेढ़ साल पहले वीआरएस लेने वाले अरविंद कुमार शर्मा मोदी के पूर्व सहयोगी नृपेन्द्र मिश्रा की तरह ही यूपी के मूल निवासी हैं। शर्मा मूल रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के निवासी हैं। मऊ पहले आजमगढ़ जिले का हिस्सा हुआ करता था। वह मऊ जिले के कजाखुर्द गांव के मूल निवासी हैं।
आजमगढ़, मऊ और प्रयागराज से है गहरा नाता
मऊ जिले की मुहम्मदाबाद गोहना तहसील के रानीपुर ब्लाक के काजा खुर्द गांव के मूल निवासी शर्मा के माता-पिता का नाम शिवमूर्ति राय और शांति देवी हैं। इनके बड़े पुत्र अरविंद का जन्म 11 जुलाई 1962 को हुआ। शुरुआती पढ़ाई गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय से हुई। इसके पश्चात डीएवी इंटर कॉलेज से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इनके गांव के लोग भी वीआरएस की खबर से हैरान हैं और जानना चाहते हैं कि क्या 32 साल लंबी सरकारी नौकरी के बाद अब वे गांव-जिले-प्रदेश से जुड़ेंगे या फिर कुछ और करेंगे।
अब एमएलसी चुनाव में नामांकन पर टिकी निगाहें
इधर यूपी में विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) का चुनाव हो रहा है। 12 सीटों के लिए 28 जनवरी को मतदान होगा। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 18 जनवरी है। माना जा रहा है कि यदि शर्मा का अगला पड़ाव राजनीति हुआ तो ये एमएलसी के रुप में अपना नामांकन कर सकते हैं। अरविंद कुमार शर्मा को फरवरी के प्रथम सप्ताह में संभावित यूपी मंत्रिमंडल के बहुप्रतीक्षित फेरबदल में जगह मिल सकती है। यह जगह कैबिनेट मंत्री की होगी या डिप्टी सीएम की, यह देखना दिलचस्प होगा। इधर अंदरखाने चर्चा इस बात की भी है कि एक डिप्टी सीएम को सुशील मोदी की तरह दिल्ली भी बुलाया जा सकता है।