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भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को Anant chaturdashi का व्रत रखा जाता है। कुछ स्थानों पर इस दिन को अनंत चौदस नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 14 साल तक लगातार Anant chaturdashi का व्रत रखने से श्री हरि का सानिध्य प्राप्त होता है और विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
इस दिन भगवान श्री विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। अनंत चतुर्दशी का व्रत सिर्फ भगवान विष्णु को ही समर्पित है। भगवान विष्णु का ही दूसरा नाम अनंत देव है। इस व्रत को रखने से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के नए द्वार खुलते हैं, जीवन से दरिद्रता दूर होती है और अंततोगत्वा भगवान श्री हरि के चरणों में स्थान मिलता है।
अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने संबंधी कई अहम जानकारियां लिखी हैं और इस व्रत के महत्व को समझाया गया है। इस व्रत को रखने वाला एक प्रसर आटे से रोटी या पुडयां बनाता है। इसका आधा ब्राह्मण को दे देता है और शेष का उपयोग अपने लिए करता है। ऐसा कहा जाता है कि जब पांडव जुए में अपना राज्य हार कर वन में नरकीय जीवन काट रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने के लिए प्रेरित किया था। पांडवों ने श्रीकृष्ण के सुझाव को स्वीकार करते हुए इस व्रत का पालन किया और उन्हें महाभारत के महायुद्ध में जीत हासिल हुई। एक दूसरी कथा के मुताबिक सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को भी अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने की वजह से अपना राज्य वापस मिला था।
अनंत चतुर्दशी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ दिन सोमवार, तिथि - 30 अगस्त को सुबह 8:00 बज कर 49 मिनट प्रारम्भ होगा और एक सितंबर की सुबह 9 बज कर 39 मिनट तक रहेगा। व्रत करने वाले व्यक्ति को अपनी दिनचर्या से निवृत्त होकर इस समयातिथि के बीच पूजा कर लेनी चाहिए।
अनंत चतुर्दशी पूजा की विधि
चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले ही अपनी नियमित दिनचर्या पूरी कर लें। इसके बाद स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और हाथ में जल लेकर अनंत चतुर्दशी व्रत एवं पूजा का श्रीगणेशाय करें। इसके पश्चात पूजा किए गए स्थान को अच्छी तरह साफ कर लें। अब एक चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या कुष से बनी सात फणों वाली शेष के स्वरूप वाली भगवान अनंत की मूर्ति स्थापित करें। तत्पश्चात मूर्ति के समक्ष 14 गांठे लगी हुई अनंत सूत्र चढाएं। इन अनंत सूत्र को कच्चे दूध में हल्दी लगाकर बनाया जाता है। इसके बाद आम पत्र, नैवेद्य, गंध., पुष्प, धूप, दीप आदि से भगवान अनंत (विष्णु) की आराधना करें।
अनंत चतुर्दशी का व्रत व्यक्तिगत पूजा है, इसलिए इस दिन कोई सामाजिक या धार्मिक उत्सव नहीं मनाया जाता है। भगवान विष्णु को पंचामृत, पंजीरी केला और मोदक प्रसाद में चढ़ाएं। आराधना के समय इस मंत्र “नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर। नमस्ते सर्वनागेंद्र नमस्ते पुरुषोत्तम” का जाप जरूर करें। तत्पश्चात अनंत चतुर्दशी की कथा सुनें और फिर कपूर या घी के दिए से श्री हरि की आरती करें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और प्रसाद ग्रहण करें। इस साल आनंद चतुर्दशी के दिन कई सुखद संयोग बन रहे हैं और अनंत देव की पूजा करने से कई गुना लाभ मिल सकता है।