Tricity Today | प्रतीकात्मक फोटो
लॉकडाउन का बुरा असर अब दिखने लगा है। कंपनियों में छंटनी शुरु हो गई हैं। कर्मचारियों के वेतन घटाए जा रहे हैं। तमाम बड़े शिक्षण संस्थानों, स्कूलों और कॉलेजों में भी तरह-तरह से अध्यापकों पर दबाव डाला जा रहा है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट के कुछ प्राइवेट स्कूलों ने अध्यापकों को नौकरी से निकाल भी दिया है।
अब ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क से जानकारी मिल रही है कि वहां कॉलेज एक अलग ही फंडा अपना रहे हैं। टीचर और स्टाफ पर दबाव डाला जा रहा है कि मैनेजमेंट को एक मेल भेजिए। जिसमें अगले 15 दिन से 1 महीने का अवैतनिक अवकाश मांगिए। मैनेजमेंट इस मेल पर अनुमति देगा और आप आराम से अपने घर रहिए। जब लॉकडाउन खत्म होगा और क्लासेज शुरू हो जाएंगी तो काम पर लौट आना। ज्यादातर शिक्षक और स्टाफ ने ईमेल भेज दिए हैं, कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं।
लॉकडाउन में नॉलेज पार्क के कॉलेज प्रबंधन शिक्षकों और स्टाफ पर बिना वेतन अवकाश पर रहने का दबाव बना रहे हैं। कॉलेजों ने अपने स्टाफ को मेल भेजा है। कहा गया है कि वह मेल भेजें। उसमें लिखें कि 15 दिन आवश्यक कार्य से घर पर रहेंगे। इस दौरान का वेतन नहीं चाहते हैं। इससे स्टाफ में हड़कंप मचा हुआ है।
दूसरी ओर सरकार अपील कर रही है कि लॉकडाउन में कर्मचारियों को नौकरी से नहीं निकालें। उन्हें वेतन दें। कुछ कॉलेज प्रबंधन कर्मचारियों पर दबाव बना रहे हैं। जानकारी मिली है कि बहुत सारे कर्मचारियों और शिक्षकों ने मेल भेज दिए हैं। जो अभी मेल नहीं भेज रहे हैं, उन पर नौकरी से हटाने का दबाव बनाया जा रहा है। नॉलेज पार्क के कई संस्थानों से ऐसी सूचनाएं मिल रही हैं।
ऐसे ही एक अध्यापक ने बताया कि जब उन्होंने मेल करने से इंकार कर दिया तो मैनेजमेंट ने उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी दी है। जब उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपील कर रहे हैं कि किसी को नौकरी से नहीं निकाले और वेतन देने से भी इनकार न करें तो आपको उनकी बात का मान रखना चाहिए। इस पर मैनेजमेंट के एक बड़े अधिकारी ने जवाब दिया कि प्रधानमंत्री के लिए सैद्धांतिक बात करना बहुत आसान है लेकिन हमारे लिए उसे व्यवहार में लाना बहुत कठिन है। संस्थानों के पास इतना पैसा नहीं है कि वह बैठे-बैठे स्टाफ को वेतन दे सकें। अगर आप बात नहीं मानेंगे तो मजबूर होकर हमें आपको नौकरी से निकालना पड़ेगा।
ग्रेटर नोएडा वेस्ट के एक अध्यापक को करीब एक सप्ताह पहले स्कूल मैनेजमेंट ने बुलाया और कह दिया कि आप अपनी नौकरी तलाश कर लें। वह कहते हैं, मुझे नौकरी से निकाल दिया गया है। मैं लगातार टि्वटर हैंडल पर अपने मामले की शिकायत कर रहा हूं। उनका कहना है कि शिकायत का अब तक किसी ने संज्ञान नहीं लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लगातार टैग करके मामले में दखल देने की गुहार लगा रहे हैं। स्थानीय नेता भी केवल आश्वासन के पुलिंदे ही पकड़ा रहे हैं लेकिन अब तक किसी ने स्कूल मैनेजमेंट से बात तक नहीं की है।
इस बारे में टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रोफेसर आरके सिंह का कहना है, यह सरासर अन्याय है। मई और जून में तो सामान्य दिनों में भी अवकाश ही रहता है। जुलाई से नया सत्र शुरू होगा। ऐसे में अगर इस महामारी का साया बना भी रहेगा तो पढ़ाई ऑनलाइन होगी। स्कूल मैनेजमेंट को अप्रैल, मई और जून महीने की तनख्वाह देनी है, जो आसानी से दी जा सकती है। दरअसल, चालू शिक्षण सत्र में पूरे 12 महीने की फीस स्कूल मैनेजमेंट ने छात्रों से एडवांस में ले रखी है। ऐसे में अध्यापकों को वेतन न देने का कौन सा कारण है। सही बात यह है कि स्कूल मैनेजमेंट लॉकडाउन की आड़ में अपना करोड़ों रुपया बचाना चाहते हैं।
आरके सिंह कहते हैं, इसके खिलाफ अध्यापक कहीं जा नहीं सकते, यह मैनेजमेंट को अच्छे से मालूम है। क्योंकि जो अध्यापक उनकी खिलाफत करेगा या उनकी शिकायत सरकार से करेगा, वह नौकरी नहीं कर पाएगा। उस अध्यापकों कोई दूसरा शिक्षण संस्थान भी नौकरी नहीं देगा। अध्यापकों की इसी मजबूरी का फायदा स्कूल मैनेजमेंट उठाते रहे हैं। लेकिन हम इस मामले में एसोसिएशन की ओर से कार्यवाही करेंगे। मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखे हैं। अध्यापकों को लॉकडाउन पीरियड में बदस्तूर वेतन मिलना चाहिए। अगर सरकार इस पर संज्ञान नहीं लेती है, कार्यवाही नहीं करती है तो हम लॉकडाउन के बाद रणनीति बनाएंगे।