Special Report: नोएडा का विवादास्पद आपातकाल से गहरा रिश्ता, संजय गांधी और नारायण दत्त तिवारी को हमेशा याद रखा जाएगा

Special Report: नोएडा का विवादास्पद आपातकाल से गहरा रिश्ता, संजय गांधी और नारायण दत्त तिवारी को हमेशा याद रखा जाएगा

Special Report: नोएडा का विवादास्पद आपातकाल से गहरा रिश्ता, संजय गांधी और नारायण दत्त तिवारी को हमेशा याद रखा जाएगा

Tricity Today | प्रतीकात्मक फोटो

नोएडा शहर! जिसे आज देश ही नहीं दुनिया के तेज तरक्कीमंद शहरों में शुमार किया जाता है। देश के बड़े आईटी हब, मीडिया हब और रियल एस्टेट हब के रूप में यह शहर अपनी पहचान कायम कर चुका है। लेकिन, नोएडा का ताल्लुक भारत के सबसे विवादास्पद वक्त आपातकाल से है। याद कीजिए, देश में आपातकाल कब से कब तक लागू रहा? 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक। इसी के बीच पड़ती है, 17 अप्रैल 1976 की तारीख, जो नोएडा को तामीर करने वाली तारीख है।

नोएडा की नींव आपातकाल में डाली गई। जिसके पीछे आपातकाल के सबसे सशक्त नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी थे। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी थे। दिल्ली के आदेश पर तत्काल उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास अधिनियम-1976 यूपी कैबिनेट ने बतौर आर्डिनेंस पास किया। जिसके साथ ही नोएडा शक्ल लेने लगा। इस विधेयक को आपातकाल हटने के बाद विधानसभा से पास करवाया गया था।

उस वक्त उद्योग विभाग में कार्यरत रहे सीनियर रिटायर अफसर योगेंद्र नारायण उन चुनिंदा लोगों में शामिल थे, जिन्होंने नोएडा की नींव रखी और उस दिन हवन-पूजन किया था। योगेंद्र नारायण कहते हैं, " नोएडा को बचाने का मकसद दिल्ली को राहत देना था। दरअसल, दिल्ली में उद्योग और कारखानों की संख्या बहुत ज्यादा थी। आवासीय क्षेत्रों में अनियोजित ढंग से फैक्ट्रियां लग गई थीं। जिसके कारण दिल्ली का दम घुटने लगा था। ऐसे में एक तरह से दिल्ली के विस्तार की योजना बनी। केंद्र और राज्य सरकार में सहमति बनी कि एक औद्योगिक शहर को शक्ल दी जाए। जो दिल्ली से सटा हो और दिल्ली के तमाम उद्योगों को वहां ले जाकर बसाया जाए। जिससे दिल्ली को राहत मिलेगी।"

योगेंद्र नारायण कहते हैं, "इसके पीछे एक सोच यह थी कि दिल्ली को राहत के साथ-साथ दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में बड़ी औद्योगिक गतिविधियां शुरू हो जाएंगी। कुल मिलाकर नोएडा की नींव रखने का मकसद उस वक्त दिल्ली को इंडस्ट्री के शोर, पोलूशन और भागमभाग से निजात दिलाना था।" योगेंद्र नारायण कहते हैं कि इसमें तो कोई शक नहीं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और संजय गांधी की सोच की बदौलत नोएडा ने शक्ल ली थी और यह भी सच है कि उस वक्त देश में इमरजेंसी लागू थी। दोनों ने बहुत तेजी से काम किया था। एनडी तिवारी तो "विकास पुरुष" के नाम से विख्यात थे। उन्होंने यहीं नहीं उत्तरांचल में औद्योगिक विकास को अंजाम देकर दिखाया था।

कांग्रेस के सीनियर नेता और नारायण दत्त तिवारी के नजदीकी लोगों में रहे पण्डित कृपाराम शर्मा कहते हैं, " सही मायनों में उत्तर प्रदेश को नारायण दत्त तिवारी के बाद उनके जैसा दूर द्रष्टा और काबिल मुख्यमंत्री नहीं मिला है। हालांकि, वह जोड़ते हैं कि मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई मामलों में उनके जैसे नजर आते हैं। कृपाराम शर्मा बताते हैं कि उन दिनों उन्होंने पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद राजनीति की शुरुआत ही की थी। वह युवा नेता के तौर पर कांग्रेस में काम कर रहे थे। उस वक्त युवा कांग्रेसियों की पार्टी में बड़ी धमक थी। हमारा इलाका दिल्ली से सटा होने के बावजूद विकास से कोसों दूर था। जब मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने यहां एक नया शहर बसाने की योजना घोषित की तुम लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

कृपाराम शर्मा नोएडा के चौड़ा रघुनाथ पुर के निवासी हैं। नोएडा की नींव रखने के लिए सबसे पहले चौड़ा रघुनाथ पुर, मोरना और निठारी गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया था। कृपाराम शर्मा आगे कहते हैं, "वह इमरजेंसी का वक्त था। संजय गांधी एक तरह से सर्वेसर्वा थे। संजय गांधी और नारायण दत्त तिवारी के रिश्ते बेहद करीबी थे। संजय गांधी दिल्ली को एक अंतर्राष्ट्रीय शहर के तौर पर खूबसूरत और आधुनिक रूप देना चाहते थे। ऐसे में दिल्ली के उद्योगों को वहां से हटाकर किसी नजदीकी जगह पर भेजना लाजमी था, जिस पर इंडस्ट्री के लोगों को भी कोई आपत्ति ना हो।"

कृपाराम शर्मा कहते हैं, "ऐसे में दिल्ली और इस इलाके के बीच केवल यमुना नदी थी। एक ओर दिल्ली और इस इलाके तो दूसरी ओर नारायण दत्त तिवारी और संजय गांधी के बीच की नजदीकियां नोएडा के अस्तित्व में आने की वजह बन गईं। एक तरह से आपातकाल इस इलाके का भविष्य बदलने के में महत्वपूर्ण साबित हुई और 17 अप्रैल 1976 को नोएडा की नींव पड़ गई।"

नोएडा 44 साल का हो गया है। मोरना गांव के करीब 85 साल के बुजुर्ग बाबा भूले को आज भी वह माहौल अच्छी तरह याद है। वह कहते हैं, "हमारी शांत और सामान्य से चलने वाली जिंदगी में अचानक हलचल आ गई थी। मैंने एक दिन शाम के समय रेडियो पर समाचार सुना था। जिसमें उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के हवाले से खबर पढ़ी गई थी। दिल्ली के नजदीक एक नया शहर बसाया जाएगा। जिसका नाम नोएडा होगा। कई महीने तो शहर का नाम सही ढंग से बोलने में लग गए थे। आज तक लोग गलत उच्चारण करते हैं।"

बाबा भूले आगे बोले, "समाचार में सुना कि दिल्ली की तमाम फैक्ट्री और कंपनियों को निकालकर उस शहर में लेकर जाएंगे। कुछ दिन बाद हमारे इलाके में हलचल शुरू हो गई। उस समय जिला गाजियाबाद हुआ करता था। गाजियाबाद के कलेक्टर, एसडीएम, कानूनगो और पटवारी जमीन नापते हुए घूमने लगे। हम लोग उनसे पूछते तो वह कहते हैं कि अब यहां नया शहर बसेगा। इसके बाद अचानक सरकार ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम का अर्जेंसी क्लोज लागू करके हमारी जमीन छीन ली। हमें केवल ₹4 वर्ग गज की दर से मुआवजा दिया गया था। एक तो देश में इमरजेंसी लगी थी, ऊपर से अर्जेंसी क्लोज लागू कर दिया गया। सही बात बताऊं तो इस इलाके के ऊपर तो हिरोशिमा और नागासाकी के बाद परमाणु बम गिरा था।"

भूले सिंह कहते हैं, "इमरजेंसी के दौर में पूरे देशभर से लोगों को मीसा लगाकर जेलों में ठूंस दिया गया था। लोगों में अपने-आप ही इतनी दहशत थी कि किसी ने चाहकर भी विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटाई। एक साल बाद ही इमरजेंसी तो खत्म हो गई थी लेकिन लोगों के दिलों से उसकी दहशत खत्म नहीं हुई थी। फिर अचानक अफसर और कर्मचारियों की फौज ट्रैक्टर, ट्रॉली, बुलडोजर और दूसरी बड़ी-बड़ी मशीनें लेकर यहां आने लगी। हम लोगों के हरे बड़े-बड़े गेहूं खड़े थे। हमें कहा गया कि आप लोग यह गेहूं काट लो नहीं तो सब खत्म हो जाएंगे। हमारे पूरे गांव ने दिन-रात लगकर हरे दूधिया गेहूं काटे। लेकिन इतनी फसल का क्या करते, ना तो पशु खा सकते थे ना वो किसी काम के थे।"

बाबा भूले सिंह नोएडा शहर के उन इक्का-दुक्का लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने आज तक अपनी जमीन के अधिग्रहण पर सरकार को सहमति नहीं दी। मुआवजा नहीं उठाया और मुकदमा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। तो कुल मिलाकर संजय गांधी और नारायण दत्त तिवारी को नोएडा के साथ-साथ हमेशा याद रखा जाएगा। वह याद हर किसी के लिए अलग-अलग मायने और अनुभव रखती है। लेकिन शहर की नई पीढ़ी को शहर के इतिहास को जानना लाजिमी है।

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