नोएडा के युवा कम्पनी मैनेजर स्ट्रीट डॉग्स के लिए बने फरिश्ता, 700 डॉग्स और उनके बच्चों को भूखे मरने से बचाया

नोएडा के युवा कम्पनी मैनेजर स्ट्रीट डॉग्स के लिए बने फरिश्ता, 700 डॉग्स और उनके बच्चों को भूखे मरने से बचाया

नोएडा के युवा कम्पनी मैनेजर स्ट्रीट डॉग्स के लिए बने फरिश्ता, 700 डॉग्स और उनके बच्चों को भूखे मरने से बचाया

Tricity Today |

लॉकडाउन के दौरान आम आदमी ही नहीं जानवरों को भी भारी संकट का सामना करना पड़ा है। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने संकट में घिरे लोगों, पशु और पक्षियों तक की मदद की। लॉकडाउन के कारण दफ्तर बंद हो गए तो भूखों को खाना खिलाने में जुट गए। ऐसे ही नोएडा के एक 28 वर्षीय युवक ने आवारा कुत्तों की मदद करने के लिए अपने वक्त का इस्तेमाल किया।

सिर्फ इंसान ही नहीं स्ट्रीट डॉग भी अभूतपूर्व कोरोनो वायरस के संकट का खामियाजा भुगत रहे हैं। क्योंकि स्ट्रीट डॉग्स रेस्तरां, कैंटीन और मार्केटप्लेस से बचे खाने पर निर्भर हैं, जो सभी महामारी के मद्देनजर बंद रहे। स्थिति और भी गंभीर हो गई, क्योंकि कुत्तों  को खाना खिलाने के लिए आने वाले लोग लॉकडाउन के कारण घरों में बंद हो गए थे।

जानवरों की दुर्दशा से प्रेरित होकर विदित शर्मा आगे आए। वह दिल्ली की एक ऑटोमोबाइल कंपनी में सहायक प्रबंधक के रूप में काम करते हैं। विदित ने नोएडा के विभिन्न इलाकों में जाकर दिन में दो बार कुत्तों को खाना खिलाना शुरू किया।
 
दो महीनों तक विदित एक भी दिन छोड़े दिन में दो बार स्ट्रीट डॉग्स को खाना खिला रहे थे। उन्होंने अपने इलाके में चार स्ट्रीट डॉग्स को खाना देना शुरू किया था, लेकिन अब वह रोजाना लगभग 700 को खिला रहे हैं। विदित ने बताया कि वह करीब चार साल से अपने आसपास रहने वाले कुत्तों को खाना खिला रहे हैं।

विदित ने कहा, "लॉकडाउन की घोषणा के बाद मेरा कार्यालय भी बंद हो गया था। इसलिए मैंने बड़े पैमाने पर ऐसा करना शुरू कर दिया। स्ट्रीट डॉग और अन्य आवारा जानवर कार्यालयों, रेस्तरां और मॉल से बचे हुए भोजन पर निर्भर हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण यह सारी जगह बंद कर दी गई थीं।" वह आगे कहते हैं, "मैंने शुरुआत में चार कुत्तों को खिलाना शुरू किया था। लेकिन बाद में संख्या बढ़ गई और मैं अब लगभग 700 कुत्तों और 45 पिल्लों को रोजाना खाना खिला रहा हूं। लॉकडाउन के दौरान मैं उन्हें दिन में दो बार खिलाता था। लेकिन अब जब से मेरा कार्यालय फिर से शुरू हुआ है तो मैंने उन्हें केवल रात में खाना खिलाना शुरू किया है। मैंने रिक्शा वाले को किराए पर लिया है, जो दिन में उन्हें खाना खिलाता है।"
 
28 वर्षीय विदित ने समझाया, "मैं अपनी रसोई में रोजाना 100 किलोग्राम चावल पकाता हूं। मैं चावल में सोयाबीन और लगभग 100 अंडे मिलाता हूं। फिर हम उन्हें खिलाते हैं। हम उन्हें दूध के साथ 'दलिया' और रोटियां भी देते हैं। हम रोजाना मेन्यू बदलते हैं।" शर्मा ने कहा कि वह अब नियमित रूप से दैनिक भोजन के लिए इंतजार करते हैं।

हादसों से चिंता है, रेडियम कॉलर खरीद रहे हैं

विदित शर्मा कहते हैं कि कुत्ते रात के समय में दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। सड़क में चलते हुए वह तेज रफ्तार वाहन चालकों को दिखाई नहीं पड़ते हैं और कार-बाइक से टकरा कर गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। अक्सर मौत भी हो जाती हैं। शर्मा ने इन कुत्तों के लिए रेडियम कॉलर खरीदने की पहल की है। उन्होंने कहा कि दुर्घटना के मामलों को कम किया जा सकता है। क्योंकि रेडियम कॉलर ड्राइवरों को अंधेरे में भी कुत्तों की पहचान करने में मदद करेंगे। लॉकडाउन के दौरान यातायात बहुत कम था।
 
विदित शर्मा ने कहा, "अनलॉक-1 शुरू होने के बाद, दुर्घटनाओं में वृद्धि हुई। फिर मेरे मन मे रेडियम कॉलर का विचार आया। यह लोगों को अंधेरे में इन कुत्तों की पहचान करने में मदद करेगा। मैंने 60 रेडियम कॉलर खरीदे हैं। एक कॉलर की कीमत 360 रुपये है। मैं 1,000 कॉलर खरीदने की योजना बना रहा हूं।" शर्मा नियमित रूप से अपने कैनाइन दोस्तों की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करते हैं। कुछ व्यक्तियों ने मदद के वादे के साथ उनसे संपर्क किया है। लेकिन वह अभी भी उस पहल में प्रमुख निवेशक हैं, जो उन्होंने शुरू की थी। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी बचत का बड़ा हिस्सा इनकी मदद करने में लगाया है।
 
विदित ने बताया, "जब मैंने इस मुहिम के फोटो-वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए, तो कुछ लोगों ने हमारी मदद की। कुछ लोगों ने पैसे की मदद की। एक दुकानदार ने मुझे खुदरा मूल्य से कम कीमत पर चावल उपलब्ध कराया। एक व्यक्ति मुझे उस दर पर दूध उपलब्ध कराता है, जो बाजार दर से सस्ता है।" शर्मा ने यह भी कहा कि रिक्शा चालक नोएडा में विभिन्न स्थानों पर भोजन छोड़कर आता है। उन्हें अपने एक करीबी दोस्त से भी मदद मिलती है। कुल मिलाकर विदित शर्मा इन बेजुबान जानवरों के लिए लॉकडाउन में किसी फरिश्ते से कम साबित नहीं हुए हैं।

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