श्राद्ध के विषय में आपके हर प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं पंडित पुरूषोतम सती

श्राद्ध के विषय में आपके हर प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं पंडित पुरूषोतम सती

श्राद्ध के विषय में आपके हर प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं पंडित पुरूषोतम सती

| प्रतीकात्मक फोटो

श्राद्ध को ले कर हमारे समाज में बहुत सारे भ्रम हैं। इस विषय में आपको प्रमाणिक जानकारी देने का प्रयास कर रहा हूं। इसके अतिरिक्त जहां मनुष्य का खर्चा होता है वो उसको बचाने की कोशिश करता है और आधुनिक युग में सांसारिक व्यस्तताओं के कारण संस्कारो से मनुष्य दूर होता चला जा रहा है। शास्त्रों से ये प्रमाणित होता है कि आत्मा मृत्यु के पश्चात पूर्व के स्थूल शरीर को छोड़कर शुक्ष्म शरीर के साथ नए स्थूल शरीर में प्रवेश करती है। जिसको हम पूर्वजन्म कहते हैं जिसको आधुनिक विज्ञान के कुछ वैज्ञानिक भी मानते हैं।

84 लाख योनियों में मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ होने के कारण सभी जीवात्माएं मनुष्य योनि में आना चाहती हैं परन्तु मनुष्य योनि प्राप्त करने के लिए उसको कुछ ऐसे कर्म करने पड़ते हैं जिसका पुण्य उसको मरने के पश्चात मिले और कुछ कर्म उसके वंशज करें जैसे श्राद्ध तर्पण इत्यादि ताकि उसके पूर्वजों को उत्तम योनि मिले और वो उसमें सुखी रहें या उनको मुक्ति मिले। इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है।  इसके अतिरिक्त यहां कोशिश की है कि आपके सवाल जैसे श्राद्ध मृत व्यक्ति तक कैसे पहुंचता है इत्यादि का समाधान हो।

प्रश्न 1 श्राद्ध करना जरूरी नहीं है। ये पंडितों ने अपनी कमाई के लिए बनाया है।
उत्तर: श्राद्ध पूर्ण रूप से आवश्यक कर्म है और शास्त्र सम्मत है परन्तु हां कलियुग के बढ़ते प्रभाव के कारण हम स्वार्थी जरूर हो गए हैं और अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान काम हुआ है। हम रात दिन सांसारिक सुखों के लिए व्यर्थ का धन व्यय करते हैं परन्तु पूर्वजों की सदगती के लिए किया जाने वाला कर्म हमको भारी लगता है। 

प्रश्न 2:  पितरों को श्राद्ध कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर: जिस प्रकार से किसी पत्र पर पता लिखने पर वो पत्र अपने गंतव्य तक पहुंच जाता है उसी प्रकार जिनका नाम और गोत्र श्राद्ध संकल्प में लिया जाता है, हमारे पितृ जिस भी योनि में होते हैं, प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार पत्र पहले एक बड़े डाकघर में एकत्र होते हैं और फिर अपने अपने गंतव्य को भेजे जाते हैं उसी प्रकार श्राद्ध में अर्पित पदार्थ का सूक्ष्म अंश सूर्य की किरणों के द्वारा सूर्य लोक में पहुंचती है और वहां से फिर बटवारा होता है तथा हमारे पितरों को प्राप्त होता है।  

प्रश्न 3:  श्राद्ध पक्ष कब होता है?
उत्तर:  चन्द्र मास के अनुसार आश्विन और सूर्य मास के अनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष को हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष के रूप में मनाया जाता है जो कि पूर्णिमा से कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक के 16 दिनों में होता है।
इस साल 1 सितम्बर से 17 सितम्बर तक श्राद्ध पक्ष है।

प्रश्न 4:  पितृ यदि पशु योनि में या किसी अन्य योनि में हों तो उन्हें हमारा दिया हुआ कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर: जिस प्रकार से हम इंटरनेशनल रेमिटेंस (remittance) करते है या विदेशों में पैसा भेजते हैं तो पैसा प्राप्त करने वाले को वो अपनी करंसी में प्राप्त होता है चाहे वो डॉलर हो यूरो हो ठीक उसी प्रकार हमारे पितरों को उनकी योनि के हिसाब से आहार योग्य वस्तु प्राप्त हो जाती है। आप को भी आपके पूर्व जन्मों के वंशजों का दान प्राप्त होता है। 
अपने शुभ कर्मों के कारण अगर पितृ देव योनि में हैं तो हमारा दिया हुआ पदार्थ अमृत रुप में उनको मिलता है और पशु हों तो चारे के रूप में मिलता है। पितृ अगर सर्प योनि में हों तो वायु के रूप में और यक्ष हो तो पेय पदार्थ के रूप में मिलता है। पितृ अगर राक्षस योनि में हों तो मांस के रूप में और प्रेत योनि में हुए तो रक्त के रूप में मिलता है। मनुष्य योनि के पितरों को अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थो के रूप में मिलता है।

प्रश्न 5:  श्राद्ध उदय तिथि के अनुसार करना चाहिए?
उत्तर: नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। एकोतिश श्राद्ध उस दिन करना चाहिए जिस दिन मध्याह्न में हो और पार्वण श्राद्ध उस दिन करना चाहिए जिस दिन अपराह्न में तिथि हो।
दो दिन तिथि बराबर होने पर पहले दिन करें

प्रश्न 6:  एकोद्दिष्ट और पार्वण श्राद्ध में क्या अंतर होता है?
उत्तर: आश्विन कृष्ण पक्ष में यानी श्राद्ध पक्ष में पिता या माता की मृत्यु की तिथि को जो श्राद्ध किया जाता है उसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं। जिस महीने में मृत्यु हुई हो, उस महीने अगर मृत्यु तिथि को श्राद्ध किया जाता है तो उसको एकोद्दिष्ट श्राद्ध कहते हैं।

प्रश्न 7: किसी के 3 लड़के हैं तो बीच वाला लड़का श्राद्ध नहीं करता है?
उत्तर: ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। सभी बच्चे श्राद्ध करने के बराबर अधिकारी होते हैं। 

प्रश्न 8: श्राद्ध सिर्फ लड़का ही कर सकता है या पुरुष ही कर सकता है?
उत्तर: नहीं, श्राद्ध कोई भी कर sakta hai। जिसके कोई पुत्र ना हो उस स्थिति में लड़की भी श्राद्ध कर सकती है।  शास्त्रानुसार ऐसा हर व्यक्ति जिसने मृतक की सम्पत्ति विरासत में पायी है और उससे प्रेम और आदर भाव रखता है, उस व्यक्ति का स्नेहवश श्राद्ध कर सकता है। विद्या की विरासत से भी लाभ पाने वाला छात्र भी अपने दिवंगत गुरु का श्राद्ध कर सकता है। पुत्र की अनुपस्थिति में पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध-कर्म कर सकता है।

प्रश्न 9: श्राद्ध पक्ष अशुभ समय होता है इसमें नित्य की पूजा पाठ नहीं करते हैं। 
उत्तर:  श्राद्ध पक्ष में अपनी नित्य पूजा को कभी ना त्यागें। नित्य पूजा का त्याग सिर्फ मृत्यु के समय और बच्चे के जन्म के समय लगने वाले सूतक के समय होता है बस। अगर कोई व्रत इत्यादि रखता हो जैसे सोमवार का व्रत, प्रदोष का व्रत, चतुर्दशी का व्रत इत्यादि, व्रत का त्याग ना करें। श्राद्ध पक्ष किसी भी प्रकार से अशुभ नहीं होता है। 

 प्रश्न 10:  श्राद्ध पक्ष में मंदिर और शंख बजाना वर्जित है?
 उत्तर: श्राद्ध  पक्ष में शंख और घंटी बजाना वर्जित नहीं है परन्तु अगर आप श्राद्ध कर रहे हैं तो शंख और घंटी बजाना वर्जित है।

प्रश्न 11:  श्राद्ध के समय कपड़े धोने चाहिए या नहीं धोने चाहिए?
 उत्तर: गरर आपके घर में श्राद्ध हो रहा हो तो कपड़े ना धोएं और ना ही कपडे को भिगो के निचोड़े। माना जाता है कि हमारे पितृ आशा में रहते हैं कि श्राद्ध मिलेगा और अगर हम कपड़े धोएं तो पितृ उसी पानी को ग्रहण कर लेते हैं इसलिए कृपया थोड़ी देर के लिए कपड़े धोने से परहेज़ करें।

 प्रश्न 12: श्राद्ध में किस प्रकार का टीका और चंदन  एवं पुष्प प्रयोग में लाना चाहिए?
उत्तर: श्राद्ध में सफेद फूल और सफेद रंग की चंदन का प्रयोग करें। 

प्रश्न 13: मैं बहुत गरीब हूं। खुद के खाने के लिए नहीं है तो श्राद्ध कैसे करूं?
 उत्तर: श्राद्धा, श्रद्धाा का ही एक रूप है इसमें जो भी आप कर सकते हैं कीजिये। विष्णु पुराण के अनुसार गरीब केवल मोटा अन्न, जंगली साग-पात-फल और न्यूनतम दक्षिणा, वह भी ना हो तो सात या आठ तिल अंजलि में जल के साथ लेकर ब्राह्मण को देना चाहिए या किसी गाय को दिन भर घास खिला देनी।

जो इतना करने में भी सक्षम ना हो उसको अपने दोनों हाथों को दक्षिण दिशा में उठाकर दिक्पालों और सूर्य से याचना करनी चाहिए कि हे! प्रभु मेरे पास कुछ नहीं है, मैंने हाथ वायु में फैला दिये हैं, मेरे पितर मेरी भक्ति से संतुष्ट हों। इसका फल भी समान प्राप्त होता है परन्तु सक्षम व्यक्ति ऐसा करेगा तो अवश्य ही पाप का भागी होगा।

प्रश्न 14: पितृ  दोष नहीं होता है।
उत्तर:  पितृ दोष होता  है। अगर आप श्राद्ध नहीं करते हैं तो पितृ आपके पसीने को पीने पर मजबूर होते हैं और आपको श्राप दे कर वापस चले जाते हैं। पितृ दोष का प्रभाव आने वाली पीढ़ियों तक दिखाई देता है। इसलिए मृत्यु के समय अंतिम संस्कार पूरे विधि विधान से करना चाहिए और वार्षिक श्राद्ध के बाद प्रत्येक वर्ष नियम पूर्वक श्राद्ध करना चाहिए। शास्त्र सम्मत तो ये होता है कि आप जिस भी तीर्थ में जाएं तो श्राद्ध अवश्य करें। आपको आशीर्वाद और पुण्य ही मिलेगा।

 प्रश्न 15: मैंनें तो गया में श्राद्ध कर लिए हैं अब मुझे श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं है?
उत्तर: गया में 16 जगह श्राद्ध होते हैं जिससे पितरों को उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है परन्तु यहां पर पिंड विसर्जन नहीं होता है।  बद्रीनाथ ब्रह्म कपाल में पिंडो का विसर्जन हो जाता है। उसके बाद बद्रीनाथ में ब्रह्मकपाल तीर्थ में श्राद्ध करने पर पिंडों का विश्राम होता है अर्थात उसके बाद श्राद्ध के समय पिंड नहीं बनाने होते हैं परन्तु तर्पण आपको आजीवन देने चाहिए।

प्रश्न 16:  श्राद्ध करने से विशेष क्या लाभ मिलता है?
उत्तर: इस सांसारिक जीवन में जब मनुष्य बिना मतलब के कुछ भी नहीं करता है और कुछ लोग तो अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में तक रख देते हैं या अंत समय में उनका त्याग कर देते हैं तो यह प्रश्न उचित ही है।
प्रत्येक व्यक्ति पर देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण होता है। श्राद्ध करने से पितृ ऋण उतर जाता है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध से तृप्त हो कर पितृ गण हमारी सभी कामनाओं को पूर्ण करते हैं और आशीर्वाद देते हैं इसके अतिरिक्त श्राद्ध कर्ता से देवगण और समस्त पूर्वज संतुष्ट होते हैं। गरुण पुराण के अनुसार जो जो पुत्र श्राद्ध करता है वो अपने लिए उत्तम लोकों का मार्ग खोलता है क्योंकि यह अत्यंत पुण्य कर्म है।

प्रश्न 17: अगर निश्चित तिथि पर श्राद्ध करना भूल गया तो क्या उपाय है?
उत्तर: अगर आप निश्चित तिथि पर श्राद्ध करना भूल गए तो आप अमावस्या को श्राद्ध करें। इस तिथि में उनके भी श्राद्ध करें जिनकी तिथि आपको पता नहीं है। इस बार 17 सितंबर को अमावस्या के श्राद्ध हैं।

जानिए आपको कब करना चाहिए श्राद्ध इस वर्ष?:
1 पूर्णिमा श्राद्ध – 1 सितंबर, मंगलवार
2  प्रतिपदा श्राद्ध – 2 सितंबर, बुधवार
3  द्वितीया श्राद्ध -  3 सितंबर, गुरुवार
4 द्वितीया श्राद्ध - 4 सितंबर, शुक्रवार
5 तृतीया श्राद्ध- 5 सितंबर, शनिवार
6  चतुर्थी श्राद्ध- 6 सितंबर, रविवार
7  पंचमी श्राद्ध- 7 सितंबर, सोमवार
8 षष्ठी श्राद्ध-8 सितंबर, मंगलवार
9 सप्तमी श्राद्ध- 9 सितंबर, बुधवार
10 अष्टमी श्राद्ध- 10 सितंबर, गुरुवार
11 नवमी श्राद्ध- 11 सितंबर, शुक्रवार
12  दशमी श्राद्ध- 12 सितंबर, शनिवार
13  एकादशी श्राद्ध- 13 सितंबर, रविवार
14  द्वादशी श्राद्ध- 14 सितंबर, सोमवार
15  त्रयोदशी श्राद्ध- 15 सितंबर, मंगलवार
16  चतुर्दशी श्राद्ध- 16 सितंबर, बुधवार
17  सर्वपितृ अमावस श्राद्ध- 17 सितंबर, गुरुवार

पंडित पुरूषोतम सती (Astro Badri)
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