Greater Noida West: रावण के गांव बिसरख के लोग रोज 2000 लोगों का पेट भर रहे, लॉकडाउन में अब तक

Greater Noida West: रावण के गांव बिसरख के लोग रोज 2000 लोगों का पेट भर रहे, लॉकडाउन में अब तक

Greater Noida West: रावण के गांव बिसरख के लोग रोज 2000 लोगों का पेट भर रहे, लॉकडाउन में अब तक

Tricity Today | रावण मंदिर के सामने बिसरख गांव की रसोई से खाना बंटता कार्यकर्ता

लंकापति रावण के पैतृक गांव बिसरख के निवासी लॉकडाउन के दौरान गरीबों का पेट भरने में जुटे हैं। ग्रेटर नोएडा वेस्ट के गांव बिसरख को पौराणिक माना जाता है। अब जब पूरी दुनिया वैश्विक महामारी की चपेट में है और भारत में पिछले एक महीने से लॉकडाउन चल रहा है तो ऐसे में गरीब और जरूरतमंदों की सेवा करने में इस गांव के लोग कहीं आगे हैं।

बिसरख गांव के मूल निवासी किसान नेता और किसान संघर्ष समिति के प्रवक्ता मनवीर भाटी ने बताया कि बिसरख गांव में दो रसोई संचालित की जा रही हैं। किसान संघर्ष समिति और गांव के लोग यह दोनों रसोई मिलकर संचालित कर रहे हैं। यहां प्रतिदिन 2000 लोगों के लिए भोजन तैयार किया जाता है। सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए करीब 800 लोगों को हम लोग गांव में ही खाना खिलाते हैं। इसके लिए एक भोजन खिड़की बनाई गई है। वहां नियत समय पर खाना बांटना शुरू किया जाता है। खाना बांटने वाले लोग कमरे में अंदर खड़े होते हैं और खाना लेने वाले लोग कमरे के बाहर खिड़की के सामने एक मीटर की दूरी पर रहते हैं।

मनवीर ने बताया, खाना लेने वाले लोग लाइन में एक-दूसरे से एक से डेढ़ मीटर की दूरी पर खड़े रहते हैं। मनवीर भाटी ने बताया कि 1200 खाना प्रतिदिन यहां से ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण को दिया जाता है। ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण अपने हिसाब से इस भोजन का वितरण करता है। पिछले महीने की 27 मार्च से लगातार दोनों रसोई संचालित हैं। पहले तीन-चार दिन 500 लोगों को खाना खिलाया गया। उसके बाद लगातार दो हजार लोगों के लिए खाना बनाया जा रहा है। इन दोनों रसोई से अब तक करीब 50 हजार भोजन बनाकर बांटे जा चुके हैं।

मिथक है कि लंकापति रावण का जन्म बिसरख गांव में हुआ था। उनके पिता महर्षि विश्रवा के नाम पर ही इस गांव का नाम पड़ा था। कालांतर में चलकर गांव का नाम लोग बिसरख लेने लगे। बिसरख ग्रेटर नोएडा वेस्ट के बीचोंबीच है। इस गांव की जमीन का अधिग्रहण करके विकास प्राधिकरण ने बिल्डरों को हाउसिंग सोसायटी बनाने के लिए थी। जिसके खिलाफ कई सालों तक आंदोलन चला था। गांव के चारों ओर हजारों की संख्या में मजदूर परिवार रह रहे हैं। इन्हीं लोगों को खाना देने के लिए बिसरख गांव में दो रसोई चल रही हैं।

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