यूपी के दो हाईटेक जिलों नोएडा और गाजियाबाद में गर्भवती को इलाज नहीं मिला, 13 घण्टे सड़कों पर धक्के खाने के बाद एम्बुलैंस में मौत

यूपी के दो हाईटेक जिलों नोएडा और गाजियाबाद में गर्भवती को इलाज नहीं मिला, 13 घण्टे सड़कों पर धक्के खाने के बाद एम्बुलैंस में मौत

यूपी के दो हाईटेक जिलों नोएडा और गाजियाबाद में गर्भवती को इलाज नहीं मिला, 13 घण्टे सड़कों पर धक्के खाने के बाद एम्बुलैंस में मौत

Tricity Today | प्रतीकात्मक फोटो

यूपी के दो हाईटेक जिलों के अस्पताल एक गर्भवती महिला की जान बचाने में नाकामयाब रहे हैं। दिल दहला देने वाली इस घटना में एक गर्भवती महिला ने नोएडा और गाजियाबाद के बीच धक्के खाते हुए एंबुलेंस में दम तोड़ दिया है। यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले ग्रेटर नोएडा के एक मासूम बच्चे की जान इसी तरह जा चुकी है। दो दिन पहले एक गर्भवती महिला ने नोएडा के जिला अस्पताल के बाहर बच्चे को जन्म दिया और थोड़ी देर बाद ही बच्चे की मौत हो गई थी।

खोड़ा की रहने वाली गर्भवती महिला को शुक्रवार की सुबह परेशानी हुई। जिसके बाद उसके परिवार वाले महिला को नोएडा के अस्पताल लेकर पहुंचे। वहां महिला को भर्ती नहीं किया गया। उसे गाजियाबाद जाने की सलाह दी गई। इसके बाद आनन-फानन में परिजन महिला को लेकर गाजियाबाद के अस्पताल की ओर लेकर दौड़े। वहां वही उसे भर्ती नहीं किया गया। परिजनों का कहना है कि नोएडा और गाजियाबाद के कई प्राइवेट अस्पतालों में भी इलाज करवाने की कोशिश की लेकिन किसी ने मदद नहीं की। नोएडा और गाजियाबाद के किसी अस्पतालों ने उसे भर्ती नहीं किया। अंततः महिला की एंबंलेंस में मौत हो गई।

महिला खोड़ा के दीपक विहार की रहने वाली नीलम पत्नी बिजेंद्र थी। नीलम को शुक्रवार की सुबह परेशानी शुरू हुई। देर रात तक करीब 13 घंटे बिजेंद्र उसे लेकर विभिन्न अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे। विजेंद्र का कहना है कि उनकी पत्नी गर्भवती थीं। उन्हें बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था। अस्पताल वाले कोविड-19 की समस्या बताकर भर्ती करने से लगातार इंकार कर रहे थे। आखिर वह कितने समय तक दर्द सहन करती। 13 घंटे तक संघर्ष करने के बाद उसने दम तोड़ दिया। बिजेंदर नोएडा की एक कंपनी में काम करते हैं। आजकल उनकी कंपनी भी बंद पड़ी हुई है। वह आर्थिक संकट से भी जूझ रहे हैं।

ग्रेटर नोएडा के बच्चे की मौत में अब तक जांच पूरी नहीं
इस मामले में जिलाधिकारी ने जांच का आदेश दे दिया है। अपर जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी जांच करेंगे, लेकिन ऐसी जांच पहले से भी चल रही हैं। जिनका अब तक कोई परिणाम सामने नहीं आया है। 26 मई की रात ग्रेटर नोएडा के सेक्टर-37 में रहने वाले राजकुमार के नवजात बच्चे की मौत भी इसी तरह सड़कों पर धक्के खाते हुए एंबुलेंस में चली गई थी। बच्चे को दो प्राइवेट और दो सरकारी अस्पताल मिलकर इलाज नहीं दे पाए थे। मामला मीडिया में आने के बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ दीपक कुमार ओहरी ने दो अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी जांच में लगाए थे। दावा किया था कि 4 दिन में जांच रिपोर्ट आ जाएगी। दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे। जिम्मेदार अस्पतालों को सबक सिखाया जाएगा। अब तक इस मामले में क्या हुआ, किसी को कुछ पता नहीं है।

जिला अस्पताल के बाहर हुआ प्रसव और बच्चा मर गया, जांच भी नहीं हुई
गुरुवार की देर रात गौतमबुद्ध नगर के जिला अस्पताल में लेबर पेन से परेशान एक गर्भवती महिला पहुंची। वह निठारी की रहने वाली हैं। महिला को अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया। उसमें कोविड-19 के लक्षण बताते हुए ग्रेटर नोएडा के राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान जाने की सलाह दी गई। महिला को न तो एंबुलेंस मिली और न ही डॉक्टरों की मदद दी गई। महिला ने अस्पताल के बाहर ही बच्चे को जन्म दिया। थोड़ी देर बाद ही बच्चे ने दम तोड़ दिया। इस मामले में कार्रवाई तो दूर जांच भी शुरू नहीं की गई है। कुल मिलाकर लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ रही है।

नोएडा और गाजियाबाद जैसे जिलों में जहां वर्ल्ड क्लास फैसिलिटी और मेडिकल असिस्टेंस की बात की जाती है, वहां इस तरह सड़कों पर गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों का दम तोड़ देना व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवालिया निशान है।

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