Google Image | सचिन पायलट से नहीं मिलीं सोनिया गांधी
राजस्थान के सियासी घमासान के बाद जयपुर से दिल्ली आए डिप्टी चीफ मिनिस्टर सचिन पायलट की आखिरकार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं हो पाई है। हालांकि, जानकारी मिल रही है कि सचिन पायलट को कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कोई खास आश्वासन या राहत नहीं दी है। नेताओं ने उन्हें सीधे जयपुर लौटने का फरमान सुनाया है। पार्टी और सरकार के लिए काम करने की बात कही है। मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के जो नेता सचिन पायलट से बात कर रहे हैं, उन्होंने साफ कर दिया है कि पार्टी अशोक गहलोत को ही राजस्थान का चीफ मिनिस्टर बनाए रखना चाहती है। ऐसे में अब सचिन पायलट के पास तीन विकल्प बचे हैं।
1. सचिन पायलट जयपुर वापस लौट जाएं और गहलोत के साथ काम करें
सचिन पायलट के पास यह पहला विकल्प है वह एक अनुशासित पार्टी कार्यकर्ता होने का परिचय दें। सोनिया गांधी की ओर से मिले आदेश का पालन करें। दिल्ली से सीधे जयपुर लौट जाएं। कल सुबह होने वाली विधायक दल की बैठक में भाग लें। वहां फोरम पर अपनी बात खुल कर रखें। सरकार और पार्टी के लिए राजस्थान में काम करते रहें। वैसे भी सचिन पायलट के पास राजस्थान में दो महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हैं। वह सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं।
हालांकि यह सारा बखेड़ा उनके 2 पदों पर रहने के कारण ही खड़ा हुआ है। दरअसल, अशोक गहलोत नहीं चाहते कि सचिन पायलट दोनों पदों पर बने रहें। अशोक गहलोत खेमा चाहता है कि सचिन पायलट या तो डिप्टी सीएम का पद छोड़े या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दें। अब सवाल यही उठता है कि अगर सचिन पायलट दिल्ली से जयपुर लौट जाते हैं और अशोक गहलोत के साथ काम करते हैं तो यह उनकी राजनीतिक हार मानी जाएगी। अब जब उन्हें सरकार विरोधी कामकाज करने के लिए राजस्थान पुलिस की एसओजी नोटिस भेज चुकी है तो हो सकता है कि आने वाले दिनों में उन्हें पूछताछ का भी सामना करना पड़ जाए। इन हालात में अगर उनके खिलाफ अपनी ही सरकार को गिराने की रिपोर्ट फाइल होती है तो आखिर वह कितने दिनों तक सरकार में बने रह सकते हैं।
वह दिन भी दूर नहीं होगा जब उन्हें पार्टी हाईकमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने का आदेश सुना दे। दरअसल, अब वह सरकार और पार्टी के खिलाफ एक तरह से बागी बन चुके हैं। लिहाजा, यह संभावना बहुत ही कम है कि सचिन पायलट जयपुर लौटकर अशोक गहलोत की सरपरस्ती में काम करेंगे। वह आज शाम बयान दे चुके हैं कि उनके पास 30 विधायकों का समर्थन है और वह सोमवार की सुबह अशोक गहलोत की ओर से बुलाई गई विधायक दल की बैठक में भाग लेने नहीं जा रहे हैं।
2. अपने समर्थक विधायकों के साथ सरकार और कांग्रेस छोड़ने का ऐलान करें
सचिन पायलट के पास दूसरा विकल्प कांग्रेस और सरकार छोड़ने का है। जैसा कि वह दावा कर रहे हैं, उनके पास 30 विधायकों का समर्थन है तो वह अपने 30 विधायकों के साथ सरकार और पार्टी छोड़ सकते हैं। ऐसे में उन्हें न केवल पार्टी से इस्तीफा देना पड़ेगा बल्कि विधानसभा से भी इस्तीफा देना होगा। क्योंकि अगर उन्होंने और उनके साथी विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा नहीं दिया तो दल बदल कानून के दायरे में आ जाएंगे। जो उनके लिए राजनीतिक रूप से बेहतर नहीं होगा। दरअसल सचिन पायलट कोई सामान्य नेता या विधायक नहीं हैं। वह फिलहाल राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं। इस पद पर बने रहते हुए उन्हें पार्टी के खिलाफ अनुशासनहीनता करना उचित नहीं रहेगा।
रविवार की देर रात राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने मंत्रियों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में पार्टी के विधायक भी पहुंचे। जानकारी मिल रही है कि कांग्रेस के 75 विधायकों ने इस बैठक में हिस्सा लिया है। तीन चार विधायक बीमार हैं। इस तरह यह बात तो साफ हो गई है कि सचिन पायलट के पास कांग्रेस के करीब 25 विधायकों का समर्थन है और कुछ निर्दलीय विधायक भी उनके साथ हैं।
इस विकल्प में एक दूसरा पेंच भी है। इस वक्त राजस्थान सरकार के पास 126 विधायकों का समर्थन है। अगर सचिन पायलट के पास 30 विधायक हैं और सभी 30 विधायक सरकार छोड़ने का ऐलान कर भी दें तो यह सरकार अल्पमत में तो आ सकती है लेकिन सरकार गिरना संभव नहीं है। दरअसल 30 विधायकों का इस्तीफा होने के बाद 200 सदस्यों वाली विधानसभा की स्ट्रेंथ 170 रह जाएगी। फिर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने पर 170 विधायकों की संख्या बल के हिसाब से अशोक गहलोत को केवल 86 विधायकों की जरूरत होगी, जो उनके पास सहज रूप से उपलब्ध हैं। लिहाजा, सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक यह रिस्क भी लेना नहीं चाहेंगे।
3. सचिन पायलट भाजपा और कांग्रेस की बजाए अपनी नई पार्टी का गठन करें
सचिन पायलट के पास यह तीसरा विकल्प भी मौजूद है, जो उनके लिए हालिया परिस्थितियों में ज्यादा मुफीद साबित हो सकता है। सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ दें और भारतीय जनता पार्टी भी नहीं जाएं। दरअसल, अगर वह भारत जनता पार्टी चले भी जाते हैं तो मौजूदा परिस्थितियों में उनके हाथ कुछ भी लगने वाला नहीं है। राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार को गिराना भाजपा और सचिन पायलट के लिए नामुमकिन सा लगता है। ऐसे में अगर सचिन पायलट बीजेपी ज्वाइन कर भी लेते हैं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह मजबूत स्थिति में नहीं रहेंगे। अभी राजस्थान में चुनाव होने में करीब-करीब 4 साल का वक्त है। तब तक स्थितियां और राजनीतिक समीकरण काफी हद तक बदल चुके होंगे। लिहाजा, भाजपा में पड़े रहकर सचिन पायलट कितने दिन सहज महसूस करेंगे। ऐसे में सचिन पायलट के करीबी नेताओं का कहना है कि इस विकल्प पर भी दिमाग खर्च किया जा रहा है कि वह एक रीजनल पार्टी खड़ी कर लें। दरअसल, राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के अलावा कोई बड़ा क्षेत्रीय दल मौजूद नहीं है।
राष्ट्रीय लोक दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, लोकतांत्रिक कांग्रेस और तमाम दूसरे छोटी-मोटी पार्टियां राजस्थान में जनाधार बनाने में असफल रही हैं। सचिन पायलट के पास कई महत्वपूर्ण खूबियां हैं। मसलन, वह गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। राजस्थान में गुर्जर बिरादरी बड़ा जनाधार रखती है। सचिन पायलट ने विपक्ष में रहते हुए पिछले 5 साल राजस्थान में गांव-गांव और शहर-शहर जाकर काम किया है। उनके पास लोगों की कमी नहीं है। लिहाजा, वह एक मजबूत राजनीतिक दल राजस्थान में बहुत ही कम समय में खड़ा कर सकते हैं। यहां एक बात और काबिले गौर है कि राजस्थान में ऐसे नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं की कोई कमी नहीं है जो कांग्रेस में लंबे अरसे से उपेक्षा महसूस कर रहे हैं। अगर सचिन पायलट एक राजनीतिक विकल्प के रूप में राजस्थान में उभरकर सामने आते हैं तो उन्हें भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में उपेक्षा महसूस कर रहे नेताओं का बड़ा समर्थन मिल सकता है।