Tricity Today | Amrapali & Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आम्रपाली बिल्डर से जुड़े मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई करते हुए भारत सरकार के वकील को कड़ा संदेश दिया है। अदालत ने कहा कि वह सरकार से कहें कि आम्रपाली प्रोजेक्ट के लिए 500 करोड़ तुरंत लोन के तौर पर उपलब्ध कराएं। सरकार जीएसटी के तौर पर बनने वाले 1000 करोड़ टैक्स छोड़ दे। क्योंकि अब इस प्रोजेक्ट में कोई प्राइवेट प्लेयर नहीं है बल्कि सरकारी संस्थान एनबीसीसी घर बना रहा है। फ्लैट बॉयर्स की ओर से अदालत में पेश हुए एडवोकेट एमएल लाहौटी ने कहा कि अनसोल्ड प्रॉपर्टी को बेचकर 2220 करोड़ रुपये आ सकते हैं।
इस फैसले को आम्रपाली बिल्डर और फ्लैट खरीदारों के बीच चल रही 3 साल लंबी कानूनी लड़ाई में अब तक का सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार के फैसले पर आम्रपाली के फ्लैट खरीदारों ने भी खुशी जताई है। फ्लैट खरीदारों का कहना है कि जो सख्ती सुप्रीम कोर्ट ने अब दिखाई है, अगर 2 साल पहले दिखाई होती तो अब तक हम लोगों को हमारे घर मिल चुके होते।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा और यूयू ललित की बेंच ने की। बॉयर्स के वकील एमएल लाहोटी ने बताया कि उन्होंने कोर्ट के सामने एक नोट पेश किया है। जिसमें बताया गया है कि आम्रपाली के अधूरे प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए अनसोल्ड प्रॉपर्टी को बेचकर 2220 करोड़ आ सकते हैं। सारे प्रोजेक्ट्स में ऐसे 5228 यूनिट अनसोल्ड हैं। साथ ही कहा कि 398 बोगस अलॉटमेंट आम्रपाली ने कर रखे हैं, उससे भी पैसे आएंगे।
उन्होंने कहा कि साथ ही 5856 फ्लैट आम्रपाली ने कम वैल्यू में बेचे हैं। उससे 345 करोड़ की रिकवरी हो सकती है। आम्रपाली की तमाम प्रॉपर्टी की निलामी के सुप्रीम कोर्ट के तमाम आदेश हुए हैं, उससे 7881 करोड़ आ सकते हैं। आम्रपाली के डायरेक्टर्स की संपत्ति से 799 करोड़ रुपये आएंगे।
1000 करोड़ रुपये की जीएसटी छूट देने का आदेश
एडवोकेट लाहोटी ने बताया कि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल को कड़ाई से संदेश दिया कि वह सरकार से कहें कि तुरंत आम्रपाली प्रोजेक्ट के लिए 500 करोड़ लोन उपलब्ध कराए। जीएसटी के तौर पर 1000 करोड़ रुपये की छूट दे। अदालत ने कहा कि इस मामले में कोई प्राइवेट प्लेयर नहीं है। बल्कि एमबीसीसी प्रोजेक्ट पूरा कर रहा है। जो एक सरकारी उपक्रम है।
जेपी मोर्गन पर एक्शन लेने का ईडी को आदेश दिया
ईडी ने जेपी मॉर्गन कंपनी में 187 करोड़ रुपये के डायवर्जन की बात बताई। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि कंपनी की संपत्ति अटैच की जाए और मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत कार्रवाई हो। सुप्रीम कोर्ट ने अडिशनल सॉलिसिटर जनरल से कहा है कि वह बॉयर्स के वकील एमएल लाहोटी के सुझाव के बारे में प्लान लेकर आए कि कैसे एक्शन होगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एनबीसीसी से कहा है कि वह आम्रपाली के हार्टबीट और टेक पार प्रोजेक्ट को लेकर टेंडर जारी करें।
दो दिसंबर 2019 को दिए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लैट बॉयर्स को कहा था कि वह अपनी बकाया राशि 31 जनवरी तक जमा कराए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बकाया राशि फ्लैट बायर्स एक बार में जमा करें या किश्तों में भुगतान करें ताकि रुके हुए प्रोजेक्ट का काम तेजी से पूरा हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फंड को चैनेलाइज्ड करने की जरूरत है ताकि पेंडिंग प्रोजेक्ट को पूरा किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 3 हजार करोड़ बकाये में से 105 करोड़ रुपये बॉयर्स के आए हैं। पिछले साल 23 जुलाई को दिए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली ग्रुप का रजिस्ट्रेशन कैंसल कर दिया था और कहा था कि आम्रपाली के पेंडिंग प्रोजेक्ट सरकारी कंपनी एनबीसीसी पूरा करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली का लीज भी कैंसल कर दियाथा सुप्रीम कोर्ट ने एक कोर्ट रिसिवर नियुक्त कर दिया था जो ट्राई पार्टी एग्रीमेंट करेंगे और बॉयर्स को फ्लैट का पोजेशन मिले ये सुनिश्चित करेंगे। कोर्ट ने कहा था कि होम बॉयर्स अपनी बकाया राशि सुप्रीम कोर्ट स्थित यूको बैंक में जमा करें
ऐसे हुई सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को पूरी सुनवाई
वेंकटरमनी ने कहा, मैं चाह रहा हूं:
1. बैंकों के साथ बैठकें हो रही हैं लेकिन आरबीआई द्वारा बैंकों को निर्देश दिए जाने की आवश्यकता है ताकि एनपीए खातों में भी धनराशि जमा हो जाए।
2. मैंने 23,000 से अधिक ग्राहकों के नाम प्राप्त किए हैं, जो पुनर्गठन की मांग कर रहे हैं।
वेंकटरमनी: एनबीसीसी ने हार्टबीट सिटी को छोड़कर ग्रेटर नोएडा में सभी परियोजनाओं के लिए निविदा जारी की है। इस प्रकार उस संबंध में भी दिशा-निर्देश पारित किए जाने चाहिए।
जस्टिस मिश्रा: सरकारी फंडिंग का क्या हुआ?
वेंकटरमनी: सरकार के पास अलग से धन देने की प्रक्रिया नहीं है।
जस्टिस मिश्रा: क्या हमें एनबीसीसी को फंड देने के लिए सरकार को निर्देश जारी करना चाहिए?
वेंकटरमनी: कृपया करके ऐसा करें।
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे (एनबीसीसी के लिए): केवल तीन परियोजनाइन6 शेष हैं, जिन पर निविदा जारी नहीं की गई है।
वेंकटरमनी (न्यायालय द्वारा नियुक्त रिसीवर): हमें यह समझने के लिए दिया जाता है कि निविदाओं की प्रतिक्रिया बहुत सकारात्मक रही है।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने दवे से पूछा: निर्माण लागत में व्यय के बारे में क्या होगा?
दवे: हमने सरकार से पूछा है और वे भविष्य में और देंगे। दो प्रारंभिक परियोजनाएं पूरी हैं।
जस्टिस मिश्रा: कंस्ट्रक्शन पूरा हो चुका है, लेकिन अनसोल्ड यूनिट्स हो सकते हैं। इन इकाइयों को अधिक धन जुटाने के लिए खुले बाजार में रखा जा सकता है?
यूको बैंक और SBI के लिए नियुक्त ASG विक्रमजीत बनर्जी। हालांकि, बनर्जी का नाम video conferencing स्क्रीन पर 'विक्रमजीत बनर्जी आम्रपाली' के रूप में दिखाई देता है। उस पर जस्टिस मिश्रा बोले, लेकिन आपका नाम आम्रपाली के रूप में दिखाई देता है। इस पर सभी हँस पड़ते हैं।
जस्टिस मिश्रा: आप परियोजनाओं के लिए एनबीसीसी को 500 करोड़ रुपये देंगे?
एएसजी बनर्जी: सरकार की वित्त मंत्रालय के साथ बैठक चल रही है। मैं आपके दिमाग में मौजूद राशि की जानकारी दूंगा। लेकिन कृपया कोई आदेश पारित न करें।
जस्टिस मिश्रा: हम इस पर नहीं करेंगे।
एसबीआई के लिए एएसजी बनर्जी का कहना है कि ऋण संवितरण के लिए आरामदायक दिशा-निर्देशों के सुझाव को ध्यान में रखा जाएगा।
जस्टिस मिश्रा: वे पीड़ित हैं। होमबायर्स पीड़ित हैं।
जस्टिस मिश्रा ने भारत संघ के वकील से कहा: सरकार को धन का ध्यान रखना होगा। इसमें कोई निजी फर्म नहीं हैं। इन परियोजनाओं में पैसा फंस गया है। आप बकाया राशि जानते हैं। अनसोल्ड इन्वेंट्रीज को देखें।
यूओआई के लिए एएसजी बनर्जी: इसमें शामिल धनराशि जनता का पैसा है, जिसे हम दे रहे हैं। अगर यह अपवाद बनाना है तो इस अपवाद को यथोचित रूप से सामने लाना होगा। आज शाम को ही बैठक है। आपके मन में आज जो है, मैं उसे बताऊंगा।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील गुप्ता: रिसीवर द्वारा नोट वरिष्ठ अधिवक्ता आर वेंकटरमनी को हमारे द्वारा सुबह 10 बजे के आसपास ही प्राप्त हुआ है। आज जो कुछ भी मैं जमा करता हूं, उसके लिए मेरे पास निर्देश नहीं हैं।
जस्टिस मिश्रा: आपको तब निर्देश प्राप्त करने होंगे।
नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों द्वारा अप्रयुक्त एफएआर को वापस करने के सुझाव पर अभिभाषक गुप्ता तर्क देते हैं।
गुप्ता: हम इससे सहमत नहीं हैं। इस बिंदु को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से भी नहीं निपटा गया है।
अक्टूबर 2019 को नोटिस जारी किया गया। कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया।
एडवोकेट संजय जैन ईडी के लिए पेश हुए: हमें जेपी मॉर्गन के मामलों की जांच करने के लिए निर्देशित किया गया था। 187 करोड़ रुपये अपराध के दायरे में पाए गए हैं।
हमें JP Morgans की संपत्तियों को अटैच करने के लिए अनुमति की आवश्यकता है।
पीएमएलए अधिनियम के सेक्शन 5 के तहत संपत्ति की अटैचमेंट की मांग जैन ने की। वह स्पष्ट करते हैं कि 187 करोड़ में केवल जेपी मॉर्गन के खातों में पड़ा पैसा शामिल है और इसमें होम बॉयर्स का कोई पैसा शामिल नहीं है।
अब मामले की अगली सुनवाई 27 मई को होगी।