Teachers day 2020: डॉ.राधाकृष्णन छात्र ही नहीं शिक्षकों के लिए आदर्श थे, 27 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित हुए, कुछ और खास बातें

Teachers day 2020: डॉ.राधाकृष्णन छात्र ही नहीं शिक्षकों के लिए आदर्श थे, 27 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित हुए, कुछ और खास बातें

Teachers day 2020: डॉ.राधाकृष्णन छात्र ही नहीं शिक्षकों के लिए आदर्श थे, 27 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित हुए, कुछ और खास बातें

Google Image | Dr Sarvepalli Radhakrishnan

आज देश के पहले उप-राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती है। देश में इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षक एक ऐसा माध्यम होता है जो छात्रों को सही राह दिखाता है,  उचित मार्गदर्शन करता है और उन्हें सही लक्ष्य तक पहुंचाता है। हर सफल इंसान के पीछे कोई न कोई शिक्षक जरूर होता है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के ऐसे अनमोल विचारों ने ही उन्हें इस सदी के महानतम व्यक्तियों में एक बना दिया। डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के थीरूथनी गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा एक क्रिश्चियन मिशनरी संस्था और उच्च शिक्षा मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पूरी हुई। डॉ राधाकृष्णन ने बाइबल का कठिन हिस्सा स्कूल के दिनों में ही याद कर लिए था। इसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान भी दिया गया। 

डॉ राधाकृष्णन ने सन 1902 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति दी गई। क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास में भी उन्होंने अपनी योग्यता का परचम फहराया और उन्हें फिर स्कॉलरशिप दी गई। सन 1916 में उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के ही अध्यापक नियुक्त हो गए। सन 1939–1948 तक वो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में कुलपति के पद पर रहे। 

सन 1952 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत का उपराष्ट्रपति चुना गया था। 13 मई 1962 को डॉ राधाकृष्णन को भारत के दूसरे राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई और 1967 तक वो देश के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में अपनी सेवाएं देते रहे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने डॉ राधाकृष्णन को 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया था।

डॉ राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संरक्षक, संवर्धक, प्रख्यात शिक्षाविद् और महान दार्शनिक थे। बचपन से ही उन्हें किताबें पढ़ने का बहुत शौक था और बहुत कम उम्र में ही उन्होंने स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर के विचारों को पढ़ लिया था। वो इनके विचारों से बहुत प्रभावित थे और उन्हें आत्मसात कर लिया था। 17 अप्रैल 1975 को लंबी बीमारी के बाद चेन्नई में डॉक्टर राधाकृष्णन का देहांत हो गया था। 

शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत कैसे हुई

डॉ राधाकृष्णन के कई शिष्य एक बार उनका जन्मदिन मनाने के लिए उनकी आज्ञा लेने आए। जब उन्होंने डॉ राधाकृष्णन से इसका जिक्र किया तब उन्होंने कहा था कि अगर मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे गर्व की अनुभूति होगी। छात्रों ने उनकी आज्ञा का पालन किया और शिक्षक दिवस के रूप में उनका जन्मदिन मनाया गया। इस तरह सन 1962 से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। 

यह जानकर हैरानी होगी कि डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। वो आजीवन शिक्षा के जरिए संसार को बदलने की अपनी विचारधारा पर चलते रहे। आइए उनके विचारों को प्रेरणास्रोत बनाने की कोशिश करते हैं।

1 - शिक्षा के माध्यम से ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए
2 - शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसने की कोशिश करे। वास्तविक शिक्षक वह है जो छात्र को आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे
3 - ज्ञान से हमें शक्ति मिलती है। प्रेम के जरिये हमें परिपूर्णता मिलती है.
4 - सिर्फ निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है। स्वयं के साथ ईमानदारी आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है
5 - कोई भी आजादी तब तक सच्ची नहीं होती,जब तक उसे विचार की आजादी प्राप्त न हो। किसी भी धार्मिक विश्वास या राजनीतिक सिद्धांत को सत्य की खोज में बाधा नहीं बननी चाहिए
6 - पुस्तकें ऐसा माध्यम हैं, जिनके जरिये विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण किया जा सकता है.
7 – हमारे लिए तकनीकी ज्ञान के साथ आत्मा की महानता को प्राप्त करना भी जरूरी है
8 - शांति राजनीतिक या आर्थिक बदलाव से नहीं आ सकती, बल्कि मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है.

डॉ राधाकृष्णन के नाम दुनिया भर में कई ऐसे सम्मान हैं जो सिर्फ उन्हें ही मिले थे। उनको मिले पुरस्कारों पर एक नजर

1 - सन 1938 में उन्हें ब्रिटिश अकादमी के सभासद के रूप में नियुक्त किया गया था
2 – सन 1954 में देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था
3 –सन 1954 में उन्हें जर्मनी ने कला और विज्ञान के विशेषज्ञ से सम्मानित किया था
4 – सन 1961 में जर्मनी ने उन्हें जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार दिया था
5 – सन 1963 में ब्रिटिश ऑर्डर ऑफ मेरिट का सम्मान दिया गया था 
6 – सन 1968 में साहित्य अकादमी ने उन्हें सभासद बनने का सम्मान दिया। यह सम्मान हासिल करने वाले वह पहले व्यक्ति थे।
7 – सन 1975 में मरणोपरांत उन्हें अमेरिका में टेम्पलटन पुरस्कार से नवाजा गया। ये पुरस्कार हासिल करने वाले वो पहले गैर ईसाई संप्रदाय के व्यक्ति थे। 
8 – सन 1989 में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय ने उनकी याद में “डॉ. राधाकृष्णन शिष्यवृत्ति संस्था” की स्थापना की।

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