Exclusive: कोरोना से जीत चुके लोगों के खून से होगा इलाज, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के इन दो अस्पतालों ने मांगी मंजूरी

Exclusive: कोरोना से जीत चुके लोगों के खून से होगा इलाज, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के इन दो अस्पतालों ने मांगी मंजूरी

Exclusive: कोरोना से जीत चुके लोगों के खून से होगा इलाज, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के इन दो अस्पतालों ने मांगी मंजूरी

Tricity Today | प्रतीकात्मक फोटो

ग्रेटर नोएडा के जिम्स में सात दिन में ठीक हो रहे हैं कोरोना पॉजिटिव मरीजgangaजिम्स में आए लगभग सभी मरीजों की सात दिन बाद कराई गई जांच निगेटिव आई हैंgangaप्रोटोकॉल के तहत 14 दिन बाद ही मरीज को अस्पताल से घर भेजा जाता है

कोरोना से बीमार होने के बाद ठीक होकर घर पहुंच चुके लोग अब बाकी लोगों के इलाज का जरिया बनेंगे। ठीक हो चुके लोगों के खून से कंपोनेंट (प्लाज्मा) निकालकर आगे बीमार होने वाले लोगों का इलाज किया जाएगा। इस चिकित्सा वैज्ञानिक पद्धति को हर्ड इम्यूनिटी बोला जाता है। इसके लिए नोएडा और ग्रेटर नोएडा के दो अस्पतालों ने भारत सरकार से मंजूरी मांगी है। उम्मीद है कि अगले सप्ताह में यह मंजूरी मिल जाएगी।

कोरोना वायरस से बीमार होने के बाद जो लोग ठीक होकर अपने घर पहुंच रहे हैं, उनके शरीर में इस वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी पावर विकसित हो जाती है। व्यक्ति के खून में एंटीबॉडी विकसित हो जाते हैं। इन एंटीबॉडी का इस्तेमाल दूसरे लोगों के उपचार में किया जा सकता है। इसके लिए ठीक हो चुके व्यक्ति का रक्त लेकर उसके कंपोनेंट्स को अलग कर लिया जाता है। 

ब्लड प्लाजमा में एंटीबॉडी मौजूद रहती है, जो वायरस पर जीत हासिल कर चुकी होती है। अगर बीमार व्यक्ति के रक्त में इस एंटीबॉडी को इंजेक्ट कर दिया जाए तो उसमें भी इम्युनिटी पावर विकसित हो जाती है। वह बहुत तेजी के साथ वायरस के खिलाफ ठीक होने लगता है। यह वैज्ञानिक पद्धति केवल कोरोनावायरस के खिलाफ ही काम नहीं करती है, दुनिया में अब तक जितनी भी बीमारियां आई हैं, उनके खिलाफ शरीर इसी ढंग से रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता है।

गौतम बुद्ध नगर में 2 सरकारी अस्पताल कोरोनावायरस का उपचार कर रहे हैं। ग्रेटर नोएडा में राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान और नोएडा में सुपर स्पेशलिटी चाइल्ड अस्पताल में कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज किया जा रहा है। अब तक जिले के 33 लोग ठीक होकर अपने घर जा चुके हैं। इन दोनों अस्पतालों ने ठीक होकर घर गए लोगों के रक्त का उपयोग करके आगे आने वाले संक्रमितों का उपचार करने की मंजूरी Indian Council of Medical Research (ICMR) से मांगी है।

महज सात दिनों में ठीक हो रहे हैं कोरोना संक्रमित
कोरोना पॉजिटिव मरीज सात दिन में ही ठीक हो रहे हैं। राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) में आए लगभग सभी मरीजों की सात दिन बाद करवाई जांच निगेटिव आई हैं। हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रोटोकॉल के मुताबिक मरीजों को 14 दिन के बाद ही डिस्चार्ज किया जा रहा है। मरीज को डिस्चार्ज करने से पहले दो बार जांच कराई जाती है। दोनों रिपोर्ट निगेटिव आने पर ही उन्हें घर भेजा जाता है।

राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान में 20 बेड का आइसोलेशन वार्ड है। इस वार्ड से अब तक 18 मरीजों को डिस्चार्ज किया जा चुका है। संस्थान के निदेशक डॉ. (ब्रिगेडियर) राकेश गुप्ता ने बताया कि मरीज को भर्ती करने के सात दिन बाद उसकी पहली जांच कराई जाती है। अभी तक के आंकड़े बताते हैं कि लगभग सभी मरीजों की जांच रिपोर्ट निगेटिव आई हैं। लेकिन प्रोटोकॉल के मुताबिक 14 दिन बाद ही मरीज को घर भेजते हैं। मरीज को घर भेजने से पहले दो बार जांच कराई जाती है। ताकि, किसी तरह की गुंजाइश ना रहे।

इलाज का प्रोटोकॉल भी खुद बनाया
राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) ने सरकार के प्रोटोकॉल के साथ ही इलाज का अपना प्रोटोकॉल भी विकसित किया है। हालांकि, इसमें भी स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन का अनुपालन किया गया है। आइसोलेशन वार्ड के प्रभारी डॉ. सौरभ श्रीवास्तव के मुताबिक, संस्थान के प्रोटोकॉल के भी बेहतर परिणाम आए हैं। इससे मरीज बेहतर महसूस करता है। ठीक होने की दर भी बहुत बेहतर है।

GIMS के निदेशक डॉ. (ब्रिगेडियर) राकेश गुप्ता ने बताया कि यहां आ रहे मरीजों का डाटा एकत्र कर रहे हैं। हम एंटीबॉडी पर भी काम कर रहे हैं। मंगलवार को ठीक होकर गए मरीजों से अनुरोध भी किया गया है कि अगर उनकी जरूरत पड़ी तो आप लोगों को रक्तदान करना होगा। इस पर सभी ने हामी भरी है। निदेशक ने कहा कि इस पर समय लगता है। लेकिन उम्मीद है कि बेहतर परिणाम सामने आएंगे। अब आईसीएमआर से मंजूरी मिलने का इंतजार है।

राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (GIMS) कोरोन मरीजों के इलाज को लेकर अपनी तैयारियों को पुख्ता करने में जुटा है। कोरोना के गंभीर मरीजों का एंटीबॉडी के प्लाज्मा से इलाज करने की दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया है। संस्थान ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) में भी सारी प्रक्रिया को पूरा कर लिया है। अब अगर कोई गंभीर मरीज आता है तो उसका इलाज करने के साथ ही संस्थान को आईसीएमआर को सूचित करना पड़ेगा।

जनपद में राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान ही सबसे पहले कोरोना के मरीजों का इलाज शुरू किया। इलाज शुरू करने के साथ ही संस्थान ने कोविड 19 को लेकर अपनी तैयारी और पुख्ता करना शुरू कर दिया। कोविड 19 की जांच के बाद यहां पर कोरोना के गंभीर मरीजों के बेहतर इलाज के सभी उपायों पर शोध शुरू कर दिया। यहां से ठीक होने वाले मरीजों का डाटा एकत्र करने के साथ ही उनके रक्तदान के लिए बात की गई है। लगभग सभी मरीज इसके लिए तैयार हैं।

ठीक हो चुके मरीजों के खून से एंटीबॉडी बनाई जाएगी। यह प्लाज्मा से बनेगी। यही एंटी बॉडी गंभीर मरीजों को चढ़ाई जाएगी। इससे उनमें बीमारी से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी। जिम्स के निदेशक डॉ. (ब्रिगेडियर) राकेश गुप्ता ने बताया कि गंभीर मरीजों के बेहतर इलाज के लिए संस्थान काम कर रही है। पैथालॉजी के वरिष्ठ चिकित्सक इस काम में लगे हैं।

इलाज करने से पहले इसकी जानकारी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को देनी जरूरी होती है। निदेशक डॉ. गुप्ता ने बताया कि इस बारे में आईसीएमआर को अवगत करा दिया गया है। वहां की सारी प्रक्रिया को पूरा कर दिया गया है। अब जब गंभीर मरीज आएगा तो इसका इलाज किया जाएगा। इलाज से पहले आईसीएमआर को सूचित कर दिया जाएगा।

दूसरी ओर नोएडा के सुपर स्पेशलिटी चाइल्ड हॉस्पिटल के डायरेक्टर प्रोफेसर डीके गुप्ता का कहना है कि ब्लड प्लाजमा पर आधारित चिकित्सा प्रक्रिया के लिए हमने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल साइंसेस (आईसीएमआर) से अनुमति मांगी है। इसके लिए आवेदन आईसीएमआर को कई दिन पहले भेज दिया गया था। वहां से जैसे ही मंजूरी मिलेगी, हम इस विधि से उपचार करना शुरू कर सकते हैं। डॉ गुप्ता का कहना है कि यह प्रक्रिया तेज और कारगर होती है।

आपको बता दें कि इस ढंग से चीन, अमेरिका, स्पेन, इटली और होलैंड समेत तमाम देशों में इलाज किया जा रहा है। आईसीएमआर ने गुरुवार को गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल को भी एंटीबॉडी प्लाज्मा बेस्ट ट्रीटमेंट के लिए मंजूरी दी है। मेदांता अस्पताल में कोरोनावायरस के संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों के ब्लड प्लाजमा से उपचार करने के लिए आईसीएमआर के पास आवेदन भेजा था। जिसे गुरुवार को मंजूरी दे दी गई।

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