Exclusive: गांवों को कोरोना वायरस से कौन बचाएगा, गांव वालों को तो बस अंधविश्वास का सहारा, जानिए पूरा माजरा

Exclusive: गांवों को कोरोना वायरस से कौन बचाएगा, गांव वालों को तो बस अंधविश्वास का सहारा, जानिए पूरा माजरा

Exclusive: गांवों को कोरोना वायरस से कौन बचाएगा, गांव वालों को तो बस अंधविश्वास का सहारा, जानिए पूरा माजरा

Tricity Today | गांवों में घरों के बाहर दीये जलाए गए हैं, हल्दी से हाथों के निशान लगाए हैं और नीम की टहनियां चौखटों पर लटकी हैं।

कोरोना वायरस ने पूरे देश में कोहराम मचा कर रखा है अगर रविवार की ही बात करें तो पूरे देश में नए 59 कोरोना वायरस से संक्रमित लोग मिले हैं। अब कुल संक्रमित लोग 391 हो गए हैं। दो लोगों की मौत भी हुई हैं। देश के 75 और यूपी के 15 जिलों को लॉक डाउन कर दिया गया है। लेकिन कोरोना वायरस से निपटने की सारी कवायदें शहरों तक सीमित हैं। गांव किसके भरोसे हैं? राम भरोसे या अंधविश्वास के भरोसे।

गांवों में रविवार की शाम लोगों ने अपने घरों के सामने तेल के दीपक जलाए हैं। परिवार के हर सदस्य ने हल्दी के घोल में दोनों हाथ डुबोकर थापे लगाए हैं। नीम की टहनियां घरों की चौखटों पर दोनों ओर टांगी गई हैं। वहीं, देश के शहरों में शाम पांच बजे लोग बालकॉनी और छतों पर चढ़कर शंख, तालियां और थाली पीट रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो इसके पीछे की वजह कोरोना वायरस से लड़ रहे अमले को समर्थन देना बताया है। लेकिन ट्वीटर और फेसबुक पर उनका समर्थन करने वाले लोग इसे कोरोना वायरस को भगाने की युक्ति बता रहे हैं।

सवाल यही है कि शहरों में सेनिताइजेशन चल रहा है। पूरा अमला लगा है। लेकिन गांवों तक कोई नहीं पहुंच रहा है। क्या गांव में कोरोना वायरस नहीं जाएगा? विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार प्रिक्योशन तो अच्छे ले रही है लेकिन अगर कोरोना का संक्रमण व्यापक हुआ तो बचने के लिए संसाधन नहीं हैं। सरकार के पास इतने कर्मचारी नहीं हैं कि गांवों तक पहुंच सकें।

नोएडा प्राधिकरण ने रविवार को पूरी ताकत लगाकर शहर को सेनेटाइज कर लिया। गांवों में अभी कोई दाखिल नहीं हुआ। अगले एक-दो दिनों में गांवों में भी सेनिताइजेशन किया जाएगा। ग्रेटर नोएडा में तो शहर में भी खानापूर्ति की गई। जंग खाए टैंकरों के सहारे खटारा ट्रैक्टर लेकर कर्मचारी दौड़े। गांव अछूते ही रह गए। यमुना प्राधिकरण के पास तो टैंकर और ट्रैक्टर भी नहीं हैं।

गौतमबुद्ध नगर में तीनों विकास प्राधिकरणों के दायरे में सभी ग्राम पंचायत खत्म कर दी गई हैं। जो चरमराता ग्राम पंचायतों का ढांचा जिले में था, वह भी खत्म कर दिया गया है। पहले तीन-चार गांवों के पास जो एक कर्मचारी था, वह भी नहीं रहा। जिले के करीब 250 गांवों की कोई सुध लेने वाला नहीं है। यहां एक बात और काबिलेगौर है, हो सकता है दूर दराज के जिले में गांवों तक यह हमारी न पहुंच पाए। हालांकि, तमाम शहरों में लॉक डाउन के बाद लाखों लोगों की भीड़ गांवों की ओर दौड़ रही है। ये लोग वहां पहुंचकर कुछ न कुछ तो प्रभाव डालेंगे।

गौतमबुद्ध नगर के गांवों के सामने खतरा बड़ा है। ज्यादातर गांव नोएडा और ग्रेटर नोएडा शहरों के बीच में हैं। जिनका शहरी आबादी से सीधा ताल्लुक है। जो अब तक संक्रमित लोग सामने आए हैं, उनके दूध वाले ले लेकर तमाम सुविधाएं देने वाले सम्पर्क में आए लोग इन्हीं गांवों के हैं। इन गांवों में करीब 10 लाख की आबादी है। जो दोनों शहरों की कम्पनियों और कारखानों में काम करती है। लेकिन अब तक इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया है।

दूसरी ओर इन गांवों में लोग अंधविश्वास के सहारे, बुजुर्गों के बताए टोटकों के सहारे और राम के सहारे हैं। रविवार की रात गांव की गलियों में चौखटों और चबूतरों पर कतार में दिए रखे गए। घर के सदस्यों ने दरवाजे और चौखट पर हल्दी के थापे लगाए। जेवर क्षेत्र के एक गांव में ऐसी ही एक बुजुर्ग महिला से पूछा, यह सब क्यों किया है? उन्होंने जवाब दिया महामारी और रोग आ रहे हैं। इससे भाग जाएंगे। लोग परिवार के सदस्यों के ही नहीं पशुओं के शरीर पर भी निशान बना रहे हैं। (हम यहां किसी गांव और व्यक्ति का नाम पहचान छिपाने के लिए उल्लिखित नहीं कर रहे हैं।)

नोएडा के मंगरौली गांव के पूर्व प्रधान चमन सिंह चौहान का कहना है, सरकार के पास क्या साधन हैं? हमारे यहां भंगेल से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आपको बुखार की दवा नहीं मिलेगी। हमारा गांव सोसायटियों के बीच में आ गया है। गांव के तमाम महिला और पुरुष सोसायटी में दूध देने और नौकरी करने जाते हैं। वह भी तो संक्रमित होकर आ सकते हैं। लेकिन गांवों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। अभी तक यहां कोई कुछ बताने नहीं आया है। बस जो पता चल रहा है, वह टीवी और अखबार से पता लगता है। हम भी बस दूर खड़े होकर बात कर रहे हैं और हाथ धो रहे हैं। पहले ग्राम पंचायत थी तो प्रशासन, पंचतराज विभाग और विकास विभाग से ताल्लुक रहता था। अब तो हमारे गांव अछूत बन गए हैं।

ग्रेटर नोएडा वेस्ट में बिसरख गांव के निवासी और किसान नेता मनवीर सिंह भाटी छात्र नेता भी रह चुके हैं। वह कहते हैं, ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण कंगाली के दौर से गुजर रहा है। प्राधिकरण के पास शहर में सड़क बनाने के लिए पैसा नहीं है। 7000 करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज है। गांवों का हाल तो शहर से भी बुरा है। प्राधिकरण ने पंचायत खत्म करवा दी हैं और खुद गांवों से कोई सरोकार नहीं है। हमारा गांव चारों तरफ से हाउसिंग सोसटीज से घिरा है। इनमें जब कोरोना वायरस से संक्रमित लोग निकल रहे हैं तो भला हमारा गांव कैसे बचेगा।

यमुना प्राधिकरण ने अट्टा गुजरान गांव की पूरी जमीन का अधिग्रहण कर लिया है। इस गांव की जमीन पर ही देश का पहला फॉर्मूला वन बुद्धा इंटरनेशनल सर्किट बनाया गया है। गांव के निवासी और दलित एक्टिविस्ट सुनील गौतम का कहना है कि यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के पास तो जंग खाए टैंकर और खटारा ट्रैक्टर भी नहीं हैं। ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण कम से कम शहर को सैनिटाइज करने का नाटक तो कर रहा है। यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में तो किसी ने आकर देखा भी नहीं कि यहां क्या हाल है। जबकि शहर के पास हमारे गांवों की मौजूदगी होने के कारण आवागमन और संपर्क बहुत ज्यादा है। ऐसे में कोरोना वायरस का खतरा हमारे गांव में को कम नहीं है।

सुनील गौतम आगे कहते हैं कि दूसरी ओर ग्राम पंचायतें खत्म होने के बाद गांव के हालात बद से बदतर हो गए हैं। सफाई नहीं हो रही है। कूड़ा करकट के ढेर लगे हुए हैं। स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी बंद हो गई हैं। ऐसे में कोई गांव वालों को कोरोना वायरस के प्रति जागरूकता करने वाला नहीं है। लोग अपने आप ही गली, मोहल्ले और चौराहों पर इकट्ठे होकर बातचीत कर रहे हैं और खुद ही अपने आप को घरों में बंद करके बैठे हुए हैं।

मुरशदपुर गांव के निवासी अजित सिंह का कहना है कि शहरों में तो पुलिस प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग लोगों को चेतावनी देकर घरों में रहने की हिदायत दे रहे है, यहां तो कोई हिदायत देने भी नहीं आया है।

ग्रेटर नोएडा के बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी के निदेशक डॉ हरिवंश चतुर्वेदी का कहना है कि गौतमबुद्ध नगर में तीन विकास प्राधिकरण हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि विकास प्राधिकरणों ने शहरी क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे का अच्छा विकास किया है। लेकिन यहां के गांवों का उस ढंग से विकास नहीं किया गया है, जिसकी जरूरत है। आज भी गांव का हाल पहले जैसा ही है।

डॉ हरिवंश चतुर्वेदी कहते हैं, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए गांव उत्तर प्रदेश सरकार के बजट पर निर्भर हैं। अगर गांवों को आवंटित होने वाले बजट का प्रति व्यक्ति औसत खर्च निकालें तो स्वास्थ्य सेवाओं पर सालाना खर्च दो या ढाई रुपये से ज्यादा नहीं है। ऐसे में भला कोरोना वायरस से कैसे बचा जा सकता है। यह बात सही है कि भारत सरकार और राज्य सरकारों ने कोरोना वायरस के प्रति लोगों को बहुत तेजी से जागरूक किया है और प्रो-एक्टिव तौर पर कदम उठाए हैं लेकिन सबसे बड़ा डर यह है कि अगर कोरोना वायरस का संक्रमण फैला तो हालात नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा। उत्तर प्रदेश के अस्पतालों में डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, दवा, उपकरणों और बैड का टोटा है।

आपको बता दें कि बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी ने गौतमबुद्ध नगर के सांसद आदर्श ग्राम नीमका शाहजहांपुर में ग्रामीण विकास के लिए महत्वपूर्ण काम किया है। संस्थान को आधारभूत ढांचे और ग्रामीण विकास से जुड़ी सुविधाओं पर अच्छा अध्ययन हासिल है। कुल मिलाकर साफ है कि कोरोना वायरस का खतरा नोएडा और ग्रेटर नोएडा के गांवों पर कम नहीं है। दूसरी ओर प्राधिकरणों और प्रशासन की इन गांवों के प्रति उदासीनता बड़ी समस्या बन सकती है।

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