अगर सरकार मान ले यूपी रेरा की यह बात

गौतमबुद्ध नगर के 2 लाख फ्लैट खरीदारों को मिल सकती है राहत : अगर सरकार मान ले यूपी रेरा की यह बात

अगर सरकार मान ले यूपी रेरा की यह बात

Tricity Today | यूपी रेरा के चेयरमैन राजीव कुमार

Noida News : गौतमबुद्ध नगर के तीनों विकास प्राधिकरणों और बिल्डरों के बीच बकाया पैसे को लेकर विवाद चल रहा है। विवाद में घर खरीदार पिस रहे हैं। अब उत्तर प्रदेश भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (UP RERA) ने एक खास सुझाव दिया है। यूपी रेरा का कहना है, "अगर मौजूदा गतिरोध जारी रहा तो न तो अथॉरिटी बकाया वसूल पाएगी और न ही घर खरीदार अपने नाम से फ्लैट का रजिस्ट्रेशन करा पाएंगे। लिहाजा, फ्लैटों की रजिस्ट्री को डेवलपर पर बकाया से अलग किया जाना चाहिए। ताकि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में दो लाख से अधिक होम बायर्स के संकट का समाधान खोजा जा सके।" यूपी-रेरा ने रुके हुए और अधूरे रियल्टी प्रोजेक्ट्स का सर्वे करने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार से सिफारिश की है। जिसमें रजिस्ट्री को डेवलपर पर बकाया से अलग करने का उपाय भी शामिल किया गया है।

सरकार ने रेरा को सौंपी थी जिम्मेदारी
यूपी-रेरा ने गौतमबुद्ध नगर जिले में 200 से अधिक परियोजनाओं का सर्वेक्षण किया है। राज्य सरकार को एक 'व्यावहारिक नीति' तैयार करने का सुझाव दिया है। सरकार को अपनी सिफारिश भेजी है। यह पॉलिसी 'केस टू केस' के आधार पर होनी चाहिए। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र ने विशेषज्ञ एजेंसी यूपी-रेरा से एक सर्वेक्षण करने के लिए कहा था। विकास प्राधिकरणों ने उन पूर्ण परियोजनाओं के लिए अधिभोग प्रमाण पत्र जारी करने से इनकार कर दिया है, जिनके रियल्टर ने सभी वित्तीय बकाया राशि का भुगतान नहीं किया है। अधिकांश रियल्टरों पर राशि बकाया है। इस स्थिति की वजह से हजारों होम बायर्स घर मिलने का एक दशक से अधिक समय से इंतजार कर रहे हैं। जिन्हें घर मिल गए हैं, उनके नाम घरों की रजिस्ट्रियां नहीं हो रही हैं। जिससे रियल एस्टेट क्षेत्र में विकास धीमा हो गया है।

200 बिल्डरों पर 50 हजार करोड़ बकाया
नोएडा और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरणों के अधिकारियों का कहना है कि लगभग 200 बिल्डरों पर 50 करोड़ रुपये बकाया हैं। यह पैसा वसूलने के लिए प्राधिकरण संघर्ष कर रहे हैं। अब यूपी रेरा ने सुझाव दिया है कि अगर मौजूदा गतिरोध जारी रहा तो न तो अथॉरिटी बकाया वसूल पाएगी और न ही होम बॉयर्स अपने नाम से फ्लैट का रजिस्ट्रेशन करा पाएंगे। प्राधिकरणों ने नियम है कि किसी तैयार रियल्टी प्रोजेक्ट को ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट तभी जारी होता है, जब प्रोजेक्ट के मालिक ने सभी वित्तीय बकाया चुका दिए हों और प्राधिकरण के वित्त विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया हो। रियल्टी क्षेत्र में मंदी के बीच अधिकांश बिल्डर बकाया भुगतान करने और अधिभोग प्रमाण पत्र प्राप्त करने में विफल रहे हैं। जिससे होम बायर्स के नाम फ्लैटों की रजिस्ट्री में होने देरी हो रही है।

होम बायर्स को न्याय मिल सकता है : राजीव कुमार
यूपी-रेरा के सर्वेक्षण में पता चला है कि 200 परियोजनाओं में 44,000 फ्लैट ऐसे हैं, जिनमें खरीदार बस गए हैं, लेकिन उनके नाम रजिस्ट्री नहीं हैं और कब्जा है। 1,25,000 फ्लैट ऐसे हैं, जिनका कब्जा खरीदारों को नहीं मिला है और न ही रजिस्ट्री हुई हैं। अधिकारियों ने कहा कि इन सारे फ्लैट का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है। थोड़े काम बाकी हैं। मतलब, कम वक्त में इन्हें पूरा किया जा सकता है। यूपी-रेरा के अध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, "हमने राज्य सरकार को रेरा अधिनियम की धारा-32 के तहत सिफारिशें की हैं। 'नो ड्यूज सर्टिफिकेट' से रजिस्ट्री को डी-लिंक करने का सुझाव दिया है। क्योंकि रियल्टर बकाया भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं। यदि ऐसा किया जाता है तो 1,65,000 होम बायर्स के लिए अपने घरों में पहुंचने की राह आसान हो जाएगी। यह सारे परिवार लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। हमने यह भी सुझाव दिया है कि अधिकारी गारंटी के तौर पर परियोजना के अलावा रीयलटर्स की संपत्तियों को गिरवी रख सकते हैं। इससे गतिरोध को हल किया जा सकता है और होम बायर्स को न्याय मिल सकता है।"

'सारे प्रोजेक्ट्स के लिए समान नीति कारगर नहीं'
यूपी-रेरा ने सुझाव दिया है कि सभी के लिए एक समान नीति इस मुद्दे को हल नहीं कर सकती है। ऐसी नीति होनी चाहिए जो मामले को आधार बनाकर काम करे। हर परियोजना से जुड़ा संकट अलग है। राजीव कुमार ने आगे कहा, "कुछ परियोजनाएं हैं, जो आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं। कोई भी नया डेवलपर घरों को पूरा कर सकता है और खरीदारों को सौंप सकता है। लेकिन कुछ परियोजनाएं उस स्थिति में नहीं हैं। इसलिए हमने यह सुझाव भी दिया है कि अथॉरिटी को ऐसी परियोजनाएं अपने हाथ में लेकर पूरी करनी पड़ेंगी। अंतिम लक्ष्य यह है कि होम बायर्स को न्याय मिलना चाहिए।"

यूपी रेरा ने कई और सुझाव दिए
यूपी-रेरा ने कई और सुझाव दिए हैं। भूमि विवाद या अन्य कानूनी मुद्दों के कारण निर्माण बाधित होने की अवधि के लिए बिल्डरों को ब्याज पर छूट मिलनी चाहिए। जिन परियोजनाओं में तीसरे पक्ष का कोई हित नहीं है, उनका भूमि आवंटन रद्द करना चाहिए। आर्थिक रूप से व्यवहार्य परियोजनाओं को अथॉरिटी अपने हाथों में लें। नए डेवलपर्स को परियोजना को पूरा करने के लिए आमंत्रित करें। ऐसे प्रोजेक्ट फिर से नीलाम कर देने चाहिए। आपको बता दें कि अटके प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए वरिष्ठ नौकरशाह अमिताभ कान्त की अध्यक्षता में केंद्र सरकार ने अन्य विकल्प तलाशने के लिए एक समिति गठित की है।

अथॉरिटी, बिल्डर और होम बायर्स क्या बोले
यूपी रेरा के इन सुझावों पर कॉन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) के संयुक्त सचिव निखिल हवेलिया ने के कहा, "हमने यूपी-रेरा, केंद्र सरकार की समिति और उत्तर प्रदेश सरकार के साथ बैठकों में भाग लिया है। हमारे मुद्दों पर चर्चा की है। हमें उम्मीद है कि रियल्टी क्षेत्र के मुद्दों को जल्द सुलझा लिया जाएगा। वित्तीय बकाया को अलग कर दिया जाएगा। रियल एस्टेट डेवलपर्स की मांग की गई ब्याज छूट दी जाएगी।" दूसरी ओर नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की मुख्य कार्यकारी अधिकारी रितु माहेश्वरी ने कहा, "हमने यूपी-रेरा और केंद्र सरकार के साथ बिल्डरों के मुद्दों पर चर्चा की है। हमने इन मुद्दों पर नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की चिंताओं को साझा किया है।" दूसरी तरफ होम बॉयर्स को उम्मीद है कि राज्य सरकार और अन्य एजेंसियां एक ऐसा समाधान निकालेंगी, जो उनके मुद्दों को हल करने के लिए व्यावहारिक हो। गौतमबुद्ध नगर विकास समिति की अध्यक्ष रश्मि पांडेय ने कहा, "हम लंबे समय से सुन रहे हैं कि जल्द समाधान होगा, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। हमें उम्मीद है कि इस बार राज्य सरकार एक ऐसी नीति को मंजूरी देगी और लागू करेगी, जो प्रत्येक होम बायर्स की दुर्दशा को खत्म कर सके।"

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