प्रशासन ने हाईकोर्ट में कहा- नोएडा में तालाब की जमीन पर अवैध कॉलोनी बसाने वालों को प्लॉट दे अथॉरिटी

अंधेर नगरी : प्रशासन ने हाईकोर्ट में कहा- नोएडा में तालाब की जमीन पर अवैध कॉलोनी बसाने वालों को प्लॉट दे अथॉरिटी

प्रशासन ने हाईकोर्ट में कहा- नोएडा में तालाब की जमीन पर अवैध कॉलोनी बसाने वालों को प्लॉट दे अथॉरिटी

Google Image | तालाब की जमीन पर अवैध कॉलोनी बसाने वालों को प्लॉट दे अथॉरिटी

Noida News : नोएडा में जो हो जाए कम है। शहर के बीचोंबीच तालाब की जमीन घेरकर अवैध कॉलोनी बसाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय उन्हें प्लॉट दिए जाएंगे। यह सिफारिश गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन ने की है। बड़ी बात यह है कि अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) ने ना केवल नोएडा अथॉरिटी की मुख्य कार्यपालक अधिकारी को बाकायदा चिट्ठी भेजकर सिफारिश की है बल्कि प्रयागराज हाईकोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करके जानकारी भी दी है। प्रशासन के इस अजीबोगरीब रवैये से कानून के जानकार हैरान हैं।

क्या है पूरा मामला
नोएडा में सोरखा जहिदाबाद गांव में एक तालाब था। जिसका क्षेत्रफल करीब 30 बीघा था। कुछ लोगों ने तालाब पर कब्जा कर लिया। पूरे तालाब को मिट्टी से भरकर 50 प्लॉट काटे गए और घर बना लिए गए। इसके पीछे कुछ भूमाफिया किस्म के लोग हैं। जितेंद्र नाम के व्यक्ति ने साल 2013 में एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में दायर की। जिस पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शिवकीर्ति सिंह और जस्टिस दिलीप गुप्ता ने 7 फरवरी 2013 को फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने मामले में जिलाधिकारी को जांच करने और तालाबों पर अतिक्रमण को लेकर उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन करने की हिदायत दी थी। हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया। लिहाजा, याची जितेंद्र ने तत्कालीन जिलाधिकारी कुमार रविकांत के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की। जस्टिस कृष्ण मुरारी ने इसे अवमानना मानते हुए डीएम को तलब किया।

जांच में आरोप सही मिले
जितेंद्र ने कोर्ट को बताया था कि सोरखा जाहिदाबाद गांव में भूमाफिया ने तालाब की करीब 30 बीघा जमीन पर अवैध कॉलोनी बसा दी है। इस अवैध कॉलोनी की वजह से तालाब की अस्तित्व समाप्त हो गया है। एसडीएम दादरी को जांच में सारे आरोप सही मिले। इसके बाद ग्राम सभा और लेखपाल ने दादरी तहसील में 50 लोगों के खिलाफ बेदखली के मुकदमे दायर किए। साल 2014 में इन सभी 50 लोगों के खिलाफ बेदखली आदेश जारी किए थे। लेकिन करीब 10 साल बीतने के बावजूद अब तक हाईकोर्ट के आदेश का पालन जिला प्रशासन नहीं करवा पाया है।

एकबार फिर कोर्ट ने लिया संज्ञान
इस मामले में अब एकबार फिर हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया है। याची के वकील एडवोकेट पंकज दुबे ने बताया, साल 2013 की अवमानना याचिका पर अदालत ने 16 मई 2022 को सुनवाई की। गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी से जवाब मांगा और अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया। जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया। डीएम ने अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) से रिपोर्ट मांगी। अपर जिलाधिकारी ने दादरी के एसडीएम से जवाब मांगा। एडीएम और एसडीएम के बीच हुए पत्राचार की जानकारी हाईकोर्ट को एफिडेविट के साथ सौंपी गई है। एडवोकेट पंकज दुबे का कहना है कि यह जानकारी बेहद चौंकाने वाली है। इस मामले में 4 जुलाई को सुनवाई हुई है। गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन ने हास्यास्पद सूचनाएं अदालत में दाखिल की हैं। जिन पर आने वाली 8 अगस्त की तारीख लगी है।

प्रशासन ने कहा- अतिक्रमणकारियों की प्लॉट दे प्राधिकरण
एडवोकेट पंकज दुबे ने बताया कि अपर जिलाधिकारी प्रशासन ने अदालत को जानकारी दी है कि तालाब पर कब्जा करने वालों के खिलाफ साल 2014 में तहसीलदार ने बेदखली आदेश पारित किए हैं। अब 19 मई 2022 को दादरी के एसडीएम ने एक और विस्तृत जांच रिपोर्ट सौंपी है। जिसमें कहा गया है कि मौके की स्थिति के अनुसार तालाब की जमीन पर कब्जा करने वालों को अन्यत्र विस्थापित करना न्यायहित में होगा। इन लोगों को कहीं दूसरी जगह भूखण्ड देने होंगे। एडीएम ने आगे कहा है कि अब राज्य सरकार ने गौतमबुद्ध नगर में सरकारी जमीन के संरक्षण, अनुरक्षण और नियंत्रण की जिम्मेदारी नोएडा अथॉरिटी को सौंप दी है। लिहाजा, कब्जा करने वाले 50 लोगों को प्राधिकरण भूखंडों का आवंटन करे। उसके बाद तालाब को यथास्थिति में बहाल किया जा सकता है। यह पत्र अपर जिलाधिकारी की ओर से नोएडा की मुख्य कार्यपालक अधिकारी को भेजा गया है। पत्र की प्रतिलिपि हाईकोर्ट में दाखिल की गई है।

'अपनी तरह का अनोखा मामला'
जिला प्रशासन की ओर से हाईकोर्ट में दाखिल इस जवाब पर कानून के जानकार हैरान हैं। राजस्व मामलों के जानकार और पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता एडवोकेट बृजेन्द्र शर्मा का कहना है, "अपर जिलाधिकारी की ओर से अदालत में दाखिल किया गया जवाब अजीबोगरीब है। सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों के लिए भूखण्ड आवंटन की सिफारिश करना किस कानून में लिखा है। इस मामले में याची और उसके वकील को हाईकोर्ट में विरोध करना चाहिए।" वह आगे कहते हैं, "हमने ऐसा पहली बार सुना है। हो सकता है यह उत्तर प्रदेश में अपनी तरह का पहला मामला होगा।"

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