दिल्ली एनसीआर पर बड़े खतरे का दस्तक, विशेषज्ञों ने जताई चिंता, करने होंगे ये उपाय

नोएडा में भूकंप से हिली धरती : दिल्ली एनसीआर पर बड़े खतरे का दस्तक, विशेषज्ञों ने जताई चिंता, करने होंगे ये उपाय

दिल्ली एनसीआर पर बड़े खतरे का दस्तक, विशेषज्ञों ने जताई चिंता, करने होंगे ये उपाय

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Noida News : दिल्ली एनसीआर में रविवार शाम को उस समय अफरा तफरी मच गई, जब अचानक धरती हिलने लगी। इस बार भूकंप का केंद्र एनसीआर के शहर फरीदाबार में रहा। शहर से सिर्फ 13 किलोमीटर की दूरी पर आए 4 की तीव्रता वाले भूकंप ने सभी को दहशत में डाल दिया। इससे पहले भी इस इलाके की धरती हिलती रही है, लेकिन तब केंद्र एनसीआर से काफी दूर रहा। लेकिन, इस बार एनसीआर के शहर के केंद्र होने से लोगों में भय अधिक था। दिल्ली एनसीआर भूकंप के चौथे जोन में आता है। इसलिए यहां भूकंप का खतरा हमेशा बना रहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि हमें भूकंप के खतरों से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। सरकार को भी इसके लिए उपाय करने चाहिए। दिल्ली एनसीआर में किए जा रहे निर्माण की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

हिंदुकुश में था भूकंप का केंद्र
भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान के हिंदुकुश में था। इसके कारण जम्मू-कश्मीर में भी इसके झटके महसूस किए गए। हिंदुकुश में केंद्र होने के कारण पाकिस्तान, अफगानिस्तान और भारत तीनों में ही इसके झटके महसूस किए गए हैं। सीस्मोलोजी विभाग के अनुसार शनिवार की रात आए भूकंप से इंडोनेशिया, ताजिकिस्तान, जापान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, अर्जेंटीना, आइसलैंड और महाराष्ट्र की भी धरती हिल गई। 

कुछ महीनों से लगातार हिल रही है धरती
नोएडा और दिल्ली एनसीआर में इससे पहले 13 जून को भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। इससे पहले मार्च में भारत के कई राज्यों में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए थे। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.6 थी। भूकंप का असर दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड समेत पूरे उत्तर भारत में था। भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान का हिंदू कुश क्षेत्र था।

राजधानी में हमेशा बना रहता है तेज भूकंप का खतरा
दिल्ली में बड़े भूकंप का अंदेशा काफी समय से लगाया जा रहा है। जानकार मानते हैं कि राजधानी में बड़ी तीव्रता का भूकंप आ सकता है। असल में दिल्ली भूकंपीय क्षेत्रों के जोन 4 में स्थित है। देश को इस तरह के चार जोन में बांटा गया है। जोन-4 में होने की वजह से दिल्ली भूकंप का एक भी भारी झटका बर्दाश्त नहीं कर सकती। दिल्ली हिमालय के निकट है, जो भारत और यूरेशिया जैसी टेक्टॉनिक प्लेटों के मिलने से बना था। धरती के भीतर की इन प्लेटों में होने वाली हलचल की वजह से दिल्ली, कानपुर और लखनऊ जैसे इलाकों में भूकंप का खतरा सबसे ज्यादा है।

दिल्ली एनसीआर का इलाका बेहद संवेदनशील
दिल्ली के पास सोहना, मथुरा और दिल्ली-मुरादाबाद तीन फॉल्ट लाइन मौजूद हैं। इसके चलते भूकंप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। दिल्ली रिज क्षेत्र कम खतरे वाला क्षेत्र है। वहीं मध्यम खतरे वाले क्षेत्र हैं दक्षिण पश्चिम, उत्तर पश्चिम और पश्चिमी इलाका। सबसे ज्यादा खतरे वाले क्षेत्र हैं उत्तर, उत्तर पूर्व, पूर्वी क्षेत्र। भूविज्ञान मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में कहा था कि दिल्ली में अगर रिक्टर स्केल पर छह से अधिक तीव्रता का भूकंप आता है तो बड़े पैमाने पर जानमाल की हानि होगी। दिल्ली में आधे से अधिक इमारतें इस तरह के झटके को नहीं झेल पाएंगी। घनी आबादी की वजह से बड़ी संख्या में जनहानि हो सकती है। दुर्भाग्य की बात है कि भूकंप के खतरों को देखते हुए भी राजधानी ने सबक नहीं लिया। यहां ना तो उससे बचने के उपाय किए गए और ना ही इमारतों के निर्माण में सावधानी बरती गई है।

घाटी में भी रहता है खतरा
बीते कुछ महीनों में दिल्ली-एनसीआर में लगातार भूकंप के झटके महसूस किए जा रहे हैं। बीती 17 जुलाई को जम्मू कश्मीर में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। ये भूकंप रात 10 बजकर 7 मिनट पर आया था। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 3.8 मापी गई थी। इससे पहले 14 जून को भी जम्मू कश्मीर में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। उसकी तीव्रता 3.3 मापी गई थी। उस दिन राज्य में 18 घंटे में तीन बार धरती कांपी थी। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के मुताबिक, भूकंप 30 अप्रैल सुबह पांच बजकर 15 मिनट पर आया था। रिक्टर स्केल पर भूकंप तीव्रता 4.1 मापी गई थी। उसका असर नोएडा और दिल्ली एनसीआर में भी देखने को मिला था। इसका केंद्र जमीन के अंदर पांच किलोमीटर गहराई में था। 

इसलिए आता है भूकंप
धरती मुख्यत: चार परतों से बनी हुई है। इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट। क्रस्ट और ऊपरी मेनटल कोर को लिथोस्फेयर कहा जाता है। अब ये 50 किलोमीटर की मोटी परत कई वर्गों में बंटी हुई है, जिन्हें टैकटोनिक प्लेट्स कहा जाता है। यानि धरती की ऊपरी सतह 7 टेक्टोनिक प्लेटों से मिलकर बनी है। ये प्लेटें कभी भी स्थिर नहीं होतीं। ये लगातार हिलती रहती हैं। जब ये प्लेटें एक दूसरे की तरफ बढ़ती हैं तो इनमें आपस में टकराव होता है। कई बार ये प्लेटें टूट भी जाती हैं। इनके टकराने से बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है, जिससे इलाके में हलचल होती है। कई बार ये झटके काफी कम तीव्रता के होते हैं, इसलिए ये महसूस भी नहीं होते। जबकि कई बार इतनी ज्यादा तीव्रता के होते हैं, कि धरती फट भी जाती है।

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