Noida News : अपना शहर नोएडा समूची दुनिया में अपने परिचय का मोहताज नहीं है। गगनचुंबी इमारतें, हजारों देशी विदेशी उद्योग, मल्टीनेशनल कंपनियां, चौड़ी सड़कें और उस पर फर्राटे भरते लाखों वाहन शहर की समृद्धि और विकास के गवाह हैं। लेकिन, इनमें अब प्रदूषण का एक नया अध्याय जुड़ गया है। नोएडा दुनियाभर की प्रदूषित शहरों में शुमार होने को बेताब है। सीधे शब्दों में कहें तो प्रदूषण शहर के माथे पर स्थायी रूप से चस्पा हो गया है। नोएडा में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण लाखों वाहनों का बोझ उठाने में नाकाम यहां की सड़कें हैं। नतीजा, जाम, जाम और सिर्फ जाम। इससे निबटने के लिए प्राधिकरण ने अरबों रुपए खर्च किए, लेकिन परियोजनाओं के अपरिपक्व होने के कारण जाम की समस्याओं से निजात नहीं मिल पा रहा है।
नोएडा में पूरे साल रहता है प्रदूषण
बारिश के मौसम को छोड़ दें तो पूरे साल नोएडा में पूरे साल जाम और प्रदूषण से जूझना पड़ता है। 07 जून 2023 तक नोएडा में कुल 9.45 लाख रजिस्टर्ड वाहन हैं। एक अनुमान के मुताबिक, लगभग 05 लाख वाहन नोएडा के पड़ोसी जिले, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मेरठ, बागपत के अलावा दिल्ली और हरियाणा से प्रतिदिन नोएडा में आते हैं। नोएडा का अपना कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम न होने के कारण अधिकतर लोग निजी वाहनों का इस्तेमाल करते हैं। यानि हर दिन औसतन 12 से 13 लाख वाहन शहर की सड़कों पर दौड़ते हैं। यहां की सड़कें इस लायक नहीं हैं कि वे इतने वाहनों का बोझ उठा सकें। नतीजे में लोगों को जाम और उससे होने वाले प्रदूषण से जूझना पड़ता है।
जाम से निबटने में अथॉरिटी की परियोजनाएं नाकाम
ऐसा नहीं कि शहर को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए नोएडा प्राधिकरण ने कुछ नहीं किया। उसने शहर की इस समस्या से लोगों को निजात दिलाने के लिए कई परियोजनाओं पर अमल किया। लेकिन, नतीजा वही, 'ढाक के तीन पात'। अथॉरिटी ने एलिवेटेड रोड, दर्जनभर अंडर पास और यू-टर्न बनावाए। इस पर 1000 हजार करोड़ से अधिक की रकम खर्च की गई। अभी भंगेल एलिवेटेड रोड अंडर कंस्ट्रक्शन है। आने वाले कुछ महीनों में वह परियोजना भी पूरी हो जाएगी। इसके अलावा दिल्ली के चिल्ला रेगुलेटर से नोएडा के महामाया फ्लाई ओवर तक एक एलिवेटेड रोड का निर्माण किसी भी वक्त शुरू हो सकता है। लेकिन, जानकार बताते हैं कि इसका भी कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलने के आसार नहीं हैं।
पुलिस की तर्ज पर काम कर रही अथॉरिटी
पुलिस अपनी जिम्मेदारी दूसरे थाना क्षेत्रों या दूसरे जिलों की पुलिस पर टालने में माहिर है। ऐसे एक दो नहीं, दर्जनों मामले हर रोज देखने और सुनने को मिलते हैं। ठीक ऐसी ही वर्किंग नोएडा अथॉरिटी की भी है। वह समस्या को एक जगह से उठाकर दूसरी जगह कर देती है। हालांकि इस पर भारी रकम खर्च की जाती है। कुछ साल पहले नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-27 स्थित कैंब्रिज स्कूल से सेक्टर-61 तक लगभग पांच किलोमीटर लंबे एलिवेटेड रोड का निर्माण कराया। लगभग 500 करोड़ रुपए की इस परियोजना का लाभ सिर्फ इतना हुआ कि सेक्टर-18, निठारी, सेक्टर-31-25 चौराहा और एनटीपीसी चौराहे को जाम से मुक्ति मिल गई। लेकिन, यहां का ट्रैफिक जाकर सेक्टर-61 में जाम में फंस जाता है। यानि सेक्टर-18 को बोझ अब सेक्टर-61 के पल्ले पड़ गया है।
यू-टर्न के पास बॉटल नेक जैसी सड़क
शहर में जितने भी यू-टर्न बनाए गए हैं, वहां भी अक्सर जाम लगा रहता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यू-टर्न का छोटा होना है। हर यू-टर्न के पास सड़क बॉटल नेक की तरह हो जाती है। बसें तो आराम से यू-टर्न ले ही नहीं पाती हैं। बसों को यू-टर्न लेने के लिए सबसे बायीं ओर जाना होता है, वहां बस सीधी कर यू-टर्न लेती हैं। ऐसे में पीछे आने वाले वाहनों को रुकना पड़ता है। यही हाल अंडरपास का भी है। अंडरपास का फायदा सिर्फ इतना है कि उसके ऊपर के चौराहे पर जाम नहीं लगता है, लेकिन अंडरपास से निकलने के बाद अक्सर लाल बत्ती चौराहा मिल जाता है, जिस पर हमेशा जाम लगा रहता है, खासतौर से पीक आवर में।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
शहर के भौगोलिक स्थिति के जानकार बताते हैं कि ऐसी किसी भी परियोजना से शहर को जाम और उससे होने वाले प्रदूषण से मुक्ति नहीं मिलेगी, जो किसी चौराहा या स्थान विशेष को जाम से मुक्ति के लिए बनाई गई हो। इस तरह की परियोजनाओं से एक स्थान की समस्या दूसरी जगह पर शिफ्ट हो जाती है। इस पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, लेकिन परिणाम सुखद नहीं होता है। जानकारों का कहना है कि नोएडा अथॉरिटी को अब ऐसी परियोजनाओं पर काम करना चाहिए, जो शहर से बाहर जाने वाले वाहनों के लिए बिना किसी अवरोध के सुलभ हो।