क्या आप जानते हैं रक्षाबंधन क्‍यों मनाते हैं, मनाने से पहले पढ़े प्रचलित कथाएं

भाई और बहन के प्यार का बंधन : क्या आप जानते हैं रक्षाबंधन क्‍यों मनाते हैं, मनाने से पहले पढ़े प्रचलित कथाएं

क्या आप जानते हैं रक्षाबंधन क्‍यों मनाते हैं, मनाने से पहले पढ़े प्रचलित कथाएं

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Noida News : 19 अगस्त यानि की कल सभी लोग रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने जा रहे हैं। इस त्यौहार के लिए भाई और बहन काफी एक्साइडेड भी है। लेकिन क्या आप जानते हैं रक्षाबंधन क्‍यों मनाते हैं इसको लेकर बहुत सी पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत कब और कैसे हुई इसको लेकर कई सारी कहानियां बताई गई हैं। आज हम आपको बता रहे हैं रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक क‍थाएं। कहीं बताया गया है कि रक्षाबंधन का आरंभ सतयुग में हुआ था तो कहीं बताया गया है कि रक्षाबंधन का आरंभ माता लक्ष्‍मी और महाराजा बलि ने किया था। आइए जानते हैं रक्षाबंधन से जुड़ी प्रचलित कथाएं।

श्रवण कुमार से जुड़ी रक्षाबंधन की कहानी 
हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्‍योहार को लेकर कई मान्‍यताएं हैं। कहीं-कहीं इसे गुरु-शिष्‍य परंपरा का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि यह त्‍योहार महाराज दशरथ के हाथों श्रवण कुमार की मृत्‍यु से भी जुड़ा है। इसलिए मानते हैं कि यह रक्षासूत्र सबसे पहले गणेशजी को अर्पित करना चाहिए और फिर श्रवण कुमार के नाम से एक राखी अलग निकाल देनी चाहिए। जिसे आप प्राणदायक वृक्षों को भी बांध सकते हैं।

रक्षाबंधन का संबंध कृष्‍ण द्रौपदी से
महाभारत की कथा भी जुड़ी हुई है। युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने का सुझाव दिया था। वहीं अभिमन्‍यु युद्ध में विजयी हों, इसके लिए उनकी दादी माता कुंती ने भी उनके हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर भेजा था। वहीं द्रौपदी ने भी उनकी लाज बचाने वाले अपने सखा और भाई कृष्‍णजी को भी राखी बांधी थी। इस दिन सावन के महीने की पूर्णिमा तिथि थी।

रक्षाबंधन का संबंध इंद्र से
पौराणिक कथाओं में पति-पत्‍नी के बीच भी राखी (rakhi) का त्‍योहार मनाने की परंपरा का वर्णन मिलता है। एक बार देवराज इंद्र और दानवों के बीच में भीषण युद्ध हुआ था तो दानवों की हार होने लगी थी। तब देवराज की पत्‍नी शुचि ने गुरु बृहस्पति के कहने पर देवराज इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था। तब जाकर समस्‍य देवताओं के प्राण बच पाए थे।

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