अथॉरिटी के सीईओ तानाशाह थे और बोर्ड तो पार्लियामेंट से ऊपर, कानून बन गए थे मजाक

नोएडा में डकैती : अथॉरिटी के सीईओ तानाशाह थे और बोर्ड तो पार्लियामेंट से ऊपर, कानून बन गए थे मजाक

अथॉरिटी के सीईओ तानाशाह थे और बोर्ड तो पार्लियामेंट से ऊपर, कानून बन गए थे मजाक

Tricity Today | नोएडा में डकैती

Noida CAG Report : नोएडा अथॉरिटी (Noida Authority) पर आई महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट को पढ़कर लगता है कि वर्ष 2005 से लेकर 2017 तक इस सरकारी संस्थान में मुख्य कार्यपालक अधिकारी की बजाय कोई तानाशाह काम कर रहा था। जिसके सामने राज्य और केंद्र सरकार के कानून कोई मायने नहीं रखते थे। प्राधिकरण का बोर्ड पार्लियामेंट और विधानसभा से ऊपर नजर आता है। जिसने जो सोच लिया और लिख दिया, उसके सामने संसद, विधानसभा, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक कोई मायने नहीं रखते थे। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में ऐसे ही कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं।

मनमानी करके किसानों से जमीन ली गई
सीएजी रिपोर्ट में बताया गया है कि किसानों से मनमानी करके जमीन की गईं। उन्हें सुनवाई का मौक़ा तक नहीं दिया गया। भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 के तहत 31 दिसंबर 2013 तक भूमि अधिग्रहण किया गया। उस अंग्रेजी कानून के 'अर्जेंसी क्लॉज' का बेतहाशा और अवैध उपयोग किया गया है। रिपोर्ट में लिखा है, "लेखापरीक्षा की अवधि के दौरान नोएडा में भूमि अधिग्रहण को दो अलग-अलग चरणों में विभाजित किया जा सकता है। पहले 31 दिसंबर 2013 तक भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 और फिर 01 जनवरी 2014 से नए भूमि अधिनियम के तहत जमीन की गई है। पुराने कानून के 'अर्जेंसी क्लॉज' का नोएडा अथॉरिटी ने दुरुपयोग किया। कलेक्टर ने भूस्वामियों को उनके अधिकारों से दूर किया। आपत्तियों पर सुनवाई नहीं की जाती थी। इस प्रावधान का उपयोग करके लगभग 80 प्रतिशत भूमि का अधिग्रहण किया गया था।

औद्योगिक विकास के नाम पर 'अर्जेंसी क्लॉज'
इस ऑडिट में यह बात सामने आई कि अथॉरिटी ने औद्योगिक विकास को 'अर्जेंसी क्लॉज' लगाने का बहाना बना लिया था। प्रत्येक भूमि अधिग्रहण में घिसा-पिटा यही एक कारण बताया गया है। जिसमें औद्योगिक विकास के लिए भूमि की अत्यावश्यकता का हवाला दिया गया था। बड़ी बात यह है कि अथॉरिटी का यह कारण 'अर्जेंसी क्लॉज' लागू करने के लिए कानून की निर्धारित शर्तों के दायरे में नहीं आता है। 'अर्जेंसी क्लॉज' लगाने के बावजूद औद्योगिक उद्देश्य के लिए बहुत सीमित भूमि उपयोग की गई है। भूस्वामियों को सुनवाई के अवसर से वंचित किया गया। सीएजी को आगे पता चला कि एक तरफ नोएडा ने भूमि के अधिग्रहण में तात्कालिकता का दावा किया था, जबकि दूसरी ओर भूमि अधिग्रहण के लिए जरूर अंतिम प्रस्ताव 11 से 46 महीने की प्रशासनिक देरी से पारित हुए हैं। इससे साबित होता है कि 'अर्जेंसी क्लॉज' का दुरुपयोग केवल किसानों को उनके हकों से महरूम रखने के लिए किया जाता रहा। ऐसे मामलों को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की अनदेखी अथॉरिटी ने की है।

नए कानून का पालन बह अथॉरिटी ने नहीं किया
नोएडा अथॉरिटी ने नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम का पालन भी नहीं किया। इस कानून के दायरे से परे 'नो लिटिगेशन बोनस' का भुगतान किया गया। नोएडा अथॉरिटी ने किसानों को पुनर्वास के लिए और मुकदमेबाजी से दूर रहने के लिए बोनस के रूप में एकमुश्त राशि का भुगतान करने का निर्णय लिया। इसके लिए बोर्ड में कहा गया कि इससे जमीन लेने में देरी और अतिरिक्त आर्थिक बोझ से बचा जा सकेगा। नए कानून के तहत सामाजिक प्रभाव आंकलन और पुनर्वास पैकेजों की जांच सीएजी ने की है। प्राधिकरण ने अधिनियम की निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए पुनर्वास योजना की एवज में 373.85 करोड़ रुपये की एकमुश्त राशि का भुगतान किया है।

जमीन की सीधी खरीद में भी धांधली की गई
सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि अथॉरिटी ने भूमि अधिग्रहण से बचने के लिए करार नियमावली के तहत किसानों से सीधे जमीन खरीदी है। इसमें भी धांधली की गई हैं। अतिरिक्त मुआवजे का भुगतान किया गया है। बिक्री विलेख के माध्यम से प्रत्यक्ष खरीद के मामलों में अतिरिक्त मुआवजे का परिहार्य भुगतान किया गया था। अतिरिक्त मुआवजे का भुगतान उच्च दरों पर किया गया है। ऐसे गांवों में जमीन खरीद ली गई, जिसका उपयोग प्राधिकरण नहीं कर सकता है। ऐसे 520.72 करोड़ रुपये के भुगतान हुए हैं। यही वजह है कि अधिग्रहण के बाद 45,26,464 वर्गमीटर जमीन पर अतिक्रमण बना रहा, जो नोएडा अथॉरिटी की भारी चूक है। कुल मिलाकर प्राधिकरण में तैनात अफसरों ने जमीन लेने के लिए कानूनों का पालन नहीं किया। पहले पुराने और फिर ने कानून का मनमाना दुरुपयोग किया है। कानून से अलग हटकर सीधे किसानों से जमीन खरीदी तो उसमें भी अरबों रुपये का घपला सालने आया है।

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