जिले में जीरो, दरबार में हीरो, पढ़िये क्यों छोड़ी कांग्रेस

एसी कमरों से राजनीति चमकाने वालों को आईना : जिले में जीरो, दरबार में हीरो, पढ़िये क्यों छोड़ी कांग्रेस

जिले में जीरो, दरबार में हीरो, पढ़िये क्यों छोड़ी कांग्रेस

Tricity Today | कांग्रेस का गिरता जनाधार

नोएडा न्यूज : जिले में कांग्रेस की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन पार्ट-2 में हम पूर्व कांग्रेसी नेता कृपाराम शर्मा से आगे की बातचीत के अंश प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसमें उन्होंने पार्टी के अंदर गुटबाजी, पार्टी के कर्मठ और समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और पैराशूट उम्मीदवारों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। उन्होंने एसी कमरों में बैठकर राजनीति चमकाने वाले चेहरों को भी आईना दिखाया है...
 
पार्टी में गुटबाजी चरम पर
कृपाराम शर्मा ने बातचीत के दौरान किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन पार्टी में गुटबाजी की तरफ भी इशारा किया। उनका कहना था कि पार्टी के प्रदेश स्तर से इसे खत्म करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा गया। उनका कहना है कि एक आम कार्यकर्ता कैसे पार्टी के लिए काम करें या उसका झंडा उठाए, जब नेता ही आपसी खींचतान में उलझे रहते हैं। इसका उदाहरण ऐसे समझें, अगर पार्टी किसी मुद्दे को लेकर कोई प्रदर्शन करती है तो कितने लोग उसमें शामिल होते हैं। मान लीजिए जिलाध्यक्ष किसी मुद्दे को लेकर कार्यकर्ताओं का आह्वान करता है तो सबसे पहले जिले के अन्य बड़े नेता उससे दूरी बनाएंगे। दूसरा कार्यक्रम को असफल बनाने की पुरजोर कोशिश में लग जाएंगे। वहीं, दूसरी ओर बीजेपी को ही ले लीजिए। बीजेपी कोई आह्वान करे और लोग न जुटें, ऐसा हो नहीं सकता। किसी ने आयोजन को असफल बनाने की कोशिश भी की तो शीर्ष नेतृत्व तुरंत एक्शन लेता है।

कार्य नहीं चेहरा देखकर होता है चुनाव
कांग्रेस के पूर्व नेता ने पार्टी पदाधिकारियों के चयन को लेकर भी सवाल उठाया। उनका कहना था कि आज के नेताओं में नेतृत्व क्षमता ही नहीं है। उनके अंदर संगठन को उठाने, लोगों को एकसाथ लेकर चलने की कला और वाकपटुता की बेहद कमी है। लोग उन्हें सुनने को ही तैयार नहीं है। अरे सुनेंगे तो तब, जब उन्हें बोलना आना चाहिए। शीर्ष नेतृत्व कम से कम पार्टी पदाधिकारियों का चुनाव करते वक्त संगठन के लिए किए गए कार्य को देखे। अगर वह भी नहीं देखा गया तो उसकी नियुक्ति के छह महीने बाद पार्टी संगठन के लिए किए गए उसके कार्यों की समीक्षा होनी चाहिए। पदाधिकारी बनने के बाद संगठन को खड़ा करने में उसका क्या योगदान रहा है और कोई योगदान नहीं है तो ऐसे लोगों तुरंत हटाना चाहिए और योग्य व्यक्ति को आगे करना चाहिए। 

जिले को चाहिए डायनमिक पर्सनेलिटी  
जिले में कांग्रेस को सक्रिय करने के लिए यहां का नेतृत्व तेज तर्रार, डायनेमिक और कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद स्थापित करने वाले, उनमें ऊर्जा का संचार करने वाले व्यक्तित्व के हाथों में देना चाहिए, न कि एसी कार्यालयों में बैठकर नेतागिरी चमकाने वालों के हाथ में। कांग्रेस को चाहिए जिले में पार्टी के अध्यक्ष या प्रभारी का चुनाव करते वक्त उसके द्वारा संगठन की मजबूती के लिए किए गए कार्यों को देखना चाहिए। 

अब जान लीजिए कौन हैं कृपाराम
आज के बसपा नेता और 2022 विधानसभा चुनावों से पहले तक जिला कांग्रेस के बड़े नेताओं में एक जाना पहचाना नाम कृपाराम शर्मा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने अपने कांग्रेस के राजनीतिक जीवन की शुरुआत NSUI से छात्र नेता के तौर पर की। 1988 में उन्हें तत्कालीन यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष संतोष सिंह ने ज्वाइंट सेक्रेट्ररी बनाया। 1996 में पहली बार नोएडा महानगर के अध्यक्ष बने और 2015 तक इस पद पर रहे। बीच में 2008 से 2011 तक विनोद पांडेय महानगर अध्यक्ष रहे। इसके बाद पुन: 2011 से 2015 तक कृपाराम शर्मा ने महानगर अध्यक्ष रहे। 

पाला बदलने के पीछे थी निराशा और हताशा
जब उन से पूछा गया कि आप तो कांग्रेस के साथ अपने कॉलेज के जमाने से जुड़े रहे हैं और जिला भी आपके सामने ही बना। कांग्रेस को जिले में खड़ा करने के लिए आप और अन्य पुराने कांग्रेसी नेताओं अजय चौधरी, जुगल किशोर वैद, राजेंद्र कुमार, विनोद पांडेय जैसे लोगों ने अपना पूरा जीवन दिया, फिर भी आपने कांग्रेस से किनारा क्यों कर लिया। इस पर एक पल को उनके चेहरे पर कांग्रेस छोड़ने के जो भाव निकल सामने आए वो बयां नहीं किए जा सकते। उन्होंने कहा कि एक पुराना कांग्रेसी, जिसने अपना पूरा जीवन पार्टी और संगठन को दे दिया। जब उसे शीर्ष नेतृत्व से उसके योगदान की सराहना, प्रोत्साहन और उचित मान नहीं मिलेगा तो क्या करे। वे बताते हैं कि मैंने कांग्रेस छोड़ी, उसके पीछे पार्टी की उपेक्षा थी। जब एक कार्यकर्ता पार्टी से जुड़ता है और अपना जीवन लगाता है तो उसे पता होता है कि एक दिन उसकी पार्टी के शीर्ष नेता उसे भी आगे बढ़ने का मौका देंगे। मुझे भी पार्टी से चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। किन्तु, हर बार नाम चलता और जब सूची जारी होती तो नाम किसी और का होता। उन्होंने बताया कि 2007 फिर 2012 में मुझे पार्टी से चुनाव लड़ाने की बात हुई।

मुझे बुलाकर आश्वस्त किया
2012 में तो स्वयं दिग्विजय सिंह ने मुझे बुलाकर आश्वस्त किया और राहुल गांधी तक से मुलाकात कराई गई। लेकिन, फिर जब सूची जारी हुई तो डॉ. वीएस चौहान के नाम की घोषणा हुई। मुझसे कहा गया कि आप अगली योजना की तैयारी कीजिए। फिर 2018 में सपा और कांग्रेस के गठबंधन में नोएडा सीट सपा के खाते में चली गई। साल 2022 में जब साफ हो गया कि अब पार्टी मुझे मौका नहीं देने वाली है तो थक हारकर मैंने पार्टी छोड़ने का फैसला किया और बसपा का दामन थामा। उससे 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा। आपको बता दें 2012 में ही बसपा सुप्रीमो की ओर से मुझे नोएडा विधानसभा से चुनाव लड़ाने का फरमान आ चुका था। जिसकी जानकारी पार्टी के शीर्ष नेताओं को भी थी, लेकिन मैंने अपनी पार्टी के साथ ही चलने का फैसला किया था।

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