एयर पोल्यूशन में नंबर-1 और रोकने में फिसड्डी, सरकारी रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

नोएडा से जुड़ी चिंता बढ़ाने वाली खबर : एयर पोल्यूशन में नंबर-1 और रोकने में फिसड्डी, सरकारी रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

एयर पोल्यूशन में नंबर-1 और रोकने में फिसड्डी, सरकारी रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

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  • - नोएडा में वायु प्रदूषण रोकने के लिए मिले पैसे का केवल 6% खर्च हुआ
  • - ⁠देशभर के 131 शहरों में सबसे कम पैसा नोएडा में खर्च किया गया है
  • - ⁠एनसीएपी के तहत साल 2019 से अब तक मिले 21.95 करोड़ रुपये
  • - ⁠131 शहरों में से 19 ने आवंटित धन का 50% से कम उपयोग किया
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Noida News : भारत के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक नोएडा ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत साल 2019 से अब तक मिले 21.95 करोड़ रुपये का केवल 6 प्रतिशत हिस्सा ही उपयोग किया है। यह जानकारी सरकारी आंकड़ों से सामने आई है। यह जानकारी चिंता बढ़ाने वाली है। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकारी महकमे वायु प्रदूषण से निपटने के लिए गंभीर क़दम नहीं उठा रहे हैं।

पर्यावरण मंत्रालय ने जारी किए आंकड़े
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि एनसीएपी के तहत शामिल देशभर के 131 शहरों में से 19 ने आवंटित धन का 50 प्रतिशत से कम उपयोग किया है, और चार शहरों ने 3 मई 2024 तक प्राप्त धन का 25 प्रतिशत से भी कम इस्तेमाल किया है। साल 2019 में शुरू किया गया एनसीएपी स्वच्छ वायु लक्ष्य निर्धारित करने का भारत का पहला राष्ट्रीय प्रयास है। इसका उद्देश्य 2024 तक पीएम-10 प्रदूषण में 20-30 प्रतिशत की कमी लाना है, जिसमें 2017 को आधार वर्ष माना गया है। संशोधित लक्ष्य के अनुसार, 2026 तक 40 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें 2019-20 को आधार वर्ष माना जाएगा। अब जब वायु प्रदूषण से बुरी तरह जूझ रहे शहर मिल रहे बजट को ख़र्च करने में ही दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं तो लक्ष्य कैसे हासिल किए जा सकते हैं? यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।

नोएडा में 6 प्रतिशत से कम बजट खर्च हुआ
देशभर के कुल 46 शहरों और शहरी समूहों ने कार्यक्रम के तहत प्राप्त धन का 75 प्रतिशत से कम खर्च किया है, जो या तो सीधे पर्यावरण मंत्रालय से या 15वें वित्त आयोग के माध्यम से प्राप्त हुआ था। उत्तर प्रदेश के नोएडा ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए आवंटित 21.95 करोड़ रुपये में से केवल 1.43 करोड़ रुपये का ही उपयोग किया है। बेंगलुरु ने 535.1 करोड़ रुपये में से केवल 68.37 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। नागपुर ने 132.6 करोड़ रुपये में से 17.71 करोड़ रुपये का उपयोग किया और विशाखापट्टनम ने 129.25 करोड़ रुपये में से 26.17 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

इन शहरों में भी दिलचस्पी नहीं ली
कम धन उपयोग वाले अन्य शहरों में पुणे (26.44 प्रतिशत), गुलबर्गा (27.2 प्रतिशत), वसई-विरार (28.01 प्रतिशत), नासिक (28.21 प्रतिशत), कोल्हापुर (28.37 प्रतिशत), विजयवाड़ा (29.16 प्रतिशत), अंगुल (29.95 प्रतिशत), जमशेदपुर (35.78 प्रतिशत), दिल्ली (37.33 प्रतिशत), अनंतपुर (38.39 प्रतिशत), फरीदाबाद (38.89 प्रतिशत), दुर्ग-भिलाईनगर (42.31 प्रतिशत), वाराणसी (46.25 प्रतिशत), रांची (48.73 प्रतिशत) और जालंधर (48.81 प्रतिशत) शामिल हैं। स्वतंत्र थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ द्वारा बीते शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, कार्यक्रम की शुरुआत से 3 मई 2024 तक 131 शहरों को आवंटित कुल 10,566 करोड़ रुपये में से केवल 6,806 करोड़ रुपये (64 प्रतिशत) का ही उपयोग किया गया है।

मंत्रालय और वित्त आयोग दे रहा है पैसा
एनसीएपी के तहत शामिल 131 शहरों में से 82 शहरों को पर्यावरण मंत्रालय से सीधे धन प्राप्त होता है। जबकि 42 शहरों और 10 लाख से अधिक आबादी वाले 7 शहरी समूहों को 15वें वित्त आयोग से धन मिलता है। देशभर के 82 शहरों ने कुल आवंटित 1,616.47 करोड़ रुपये में से 831.42 करोड़ रुपये का उपयोग किया, जबकि 15वें वित्त आयोग के तहत धन प्राप्त करने वाले 49 शहरों ने कुल आवंटित 8,951 करोड़ रुपये में से 5,974.73 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। कुल मिलाकर यह स्थिति चिंताजनक है और इस ओर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। वायु प्रदूषण से निपटने के लिए आवंटित धन का पूरा उपयोग सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि हमारे शहरों में स्वच्छ वायु के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

नोएडा में वायु प्रदूषण की स्थिति
पिछले करीब एक दशक के दौरान नोएडा देश के सबसे प्रदूषित शहरों में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। सर्दियों में एयर क्वालिटी इंडेक्स लगातार 600-700 रहता है। नोएडा न केवल भारत बल्कि दुनिया के सबसे वायु प्रदूषित शहरों में शामिल हो चुका है। इस स्थिति पर विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं चिंता ज़ाहिर कर चुकी हैं।

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