नोएडा का युवा जोड़ा बना 120 लाचार और बेसहारा कुत्तों का सहारा, पढ़िए दिल को सुकून देने वाली खबर

जीना इसी का नाम है : नोएडा का युवा जोड़ा बना 120 लाचार और बेसहारा कुत्तों का सहारा, पढ़िए दिल को सुकून देने वाली खबर

नोएडा का युवा जोड़ा बना 120 लाचार और बेसहारा कुत्तों का सहारा, पढ़िए दिल को सुकून देने वाली खबर

Tricity Today | जीना इसी का नाम है

आधुनिकता की इस आपाधापी में इंसान भौतिकवादी होता जा रहा है। लोग अपनों की देखभाल नहीं कर पा रहे हैं। जायदाद के लालच में रिश्तो का कत्लेआम किया जा रहा है। ऐसे दौर में 2 युवाओं ने बेसहारा, बेजुबान, पैरालाइज्ड और बीमार कुत्तों की देखभाल और इलाज के लिए ‘अर्थलिंग्स’ नाम से एक ट्रस्ट की शुरुआत की। इस वक्त ट्रस्ट में करीब 120 कुत्तों की देखभाल की जा रही है। हम आपको दीतेज गर्ग और सागरिका बनर्जी के उस किरदार से रूबरू करा रहे हैं, जो नोएडा में रहकर बेजुबान कुत्तों की देखभाल में अपना बहुमूल्य वक्त समर्पित करते हैं।



चंडीगढ़ के रहने वाले दीतेज गर्ग और धनबाद की रहने वाली सागरिका बनर्जी ने एक साथ मिलकर 26 दिसंबर, 2018 को एक मुहिम की शुरुआत की। दोनों ने अपने मुहिम को एक ट्रस्ट का रूप दिया। इसका नाम उन्होंने ‘अर्थलिंग्स ट्रस्ट’ रखा। इसके लिए यमुना के किनारे सेक्टर-127 में पुश्ते के पास किराए पर जमीन ली। ट्रस्ट को शुरू करने के लिए दोनों ने 7.5 लाख का पर्सनल लोन लिया। इसके बाद उन्होंने यहां सभी तरह के बीमार कुत्तों के इलाज की व्यवस्था की। बेसहारा कुत्तों के लिए रहने की प्रबंध किया। अब यहां तकरीबन 120 से ज्यादा कुत्तों का इलाज किया जाता है। सभी के रहने के लिए अच्छी व्यवस्था की गई है।



लॉकडाउन के दौरान बढ़ी संख्या
दीतेज बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले ट्रस्ट में सिर्फ 55 के करीब कुत्ते थे। कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन जानवरों के लिए भी जानलेवा साबित हुआ। लॉकडाउन के दौरान जीव-जंतुओं की देखभाल करने वाले ज्यादातर ट्रस्ट और एनजीओ ने काम करना बंद कर दिया। लोग घरों से निकलकर सड़कों पर कुत्तों को खाना खिलाने लगे। लॉकडाउन के दौरान उन्हें 60-65 नए कुत्ते मिले। फिलहाल ट्रस्ट में कुत्तों की कुल संख्या 120 से ज्यादा हो गई है। हालांकि ट्रस्ट में करीब 200 कुत्तों के रहने की पूरी व्यवस्था है।

दयनीय हालत देख कर लिया फैसला
दीतेज और सागरिका बताते हैं कि भारतीय कल्चर में बच्चों को बचपन से ही प्रकृति और जानवरों से प्रेम करना सिखा दिया जाता है। वह दोनों भी बचपने में कुत्तों को खाना खिलाया करते थे। उनके साथ मस्ती करते थे। पर दोनों जब हायर इजुकेशन के सिलसिले में दिल्ली आए, तो यहां बेजुबान और बेसहारा कुत्तों की हालत देखकर मन द्रवित हो उठा। एनसीआर में कुत्तों की देखभाल और इलाज के लिए अस्पताल तो थे, पर उनमें बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव था। सिर्फ इमारतें थी इलाज के नाम पर। कुछ इंजेक्शन और रजिस्टर के सिवा वहां कुछ न था। इससे दुखी होकर दीतेज ने बेजुबानों की देखभाल का फैसला किया। इस मिशन में उनका साथ सागरिका बनर्जी ने दिया। दोनों ने मिलकर मुहिम शुरू की। देखते-देखते लोग जुड़ते गए और कारवां आगे बढ़ता गया। अर्थलिंग्स ट्रस्ट में कुत्तों की हर बीमारी के लिए इलाज की व्यवस्था है। बेजुबानों की देखभाल के लिए उन्होंने 8 लोग रखे हैं। इलाज के लिए पैरावेटेरिनरी भी है, जो अपंग, अंधे, बहरे और ज्यादा उम्र के कुत्तों का इलाज करते हैं।

एमिटी यूनिवर्सिटी से की पढ़ाई
दीतेज ने एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा से इंटरनेशनल रिलेशंस में एमबीए की डिग्री हासिल की है। उनकी साथी सागरिका बनर्जी ने भी एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा से बायोटेक में एमटेक की डिग्री हासिल की है। सागरिका फिलहाल जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली से अपनी पीएचडी कंप्लीट कर रही हैं। दीतेज नोएडा में स्थित अंतरराष्ट्रीय कंपनी मेटलाइफ में सीनियर ऑडिटर के पद पर काम कर रहे हैं। ऑफिस के अलावा वह पूरा वक्त अपने ट्रस्ट में कुत्तों की देखभाल में ही बिताते हैं। सागरिका भी पढ़ाई के बाद ज्यादातर वक्त ट्रस्ट में ही व्यतीत करती हैं।

आय का नहीं है कोई ठोस जरिया
दीतेज और सागरिका के मुताबिक, जब उन्होंने अर्थलिंग्स ट्रस्ट की शुरुआत की थी, तब उन्हें 7.5 लाख का पर्सनल लोन लेना पड़ा था। अब सागरिका और दीतेज दोनों अपनी इनकम का 50 फ़ीसदी ट्रस्ट को भेंट कर देते हैं। यह पूछने पर कि क्या इतनी आय से ट्रस्ट का संचालन सुचारु रुप से हो जाता है, दीतेज ने बताया कि हमें पैसों की कमी महसूस होती है। पर अब धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो रहा है। लोग अब सामने आ रहे हैं। हमारे काफिले से जुड़ रहे हैं। कुछ मालिक भी अपने पेट्स की देखभाल के लिए उन्हें इस ट्रस्ट में छोड़ जाते हैं। अपने पेट्स पर आने वाले खर्चे की जिम्मेदारी मालिक खुद वहन करते हैं।

दीतेज बताते हैं कि भारत सरकार से उनके ट्रस्ट को टैक्स में छूट मिल गई है। हालांकि उनके पास अब भी इनकम का कोई मजबूत सोर्स नहीं है। दीतेज और सागरिका किसी सीएसआर की तलाश में है। दोनों का लक्ष्य अर्थलिंग्स ट्रस्ट जैसी एक संस्था देश के हर जिले में स्थापित करना है। ताकि इन बेसहारा जीवों की देखभाल की जा सके, उन्हें मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें। बेजुबानों को रहने के लिए छत मिल सके।

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