Noida CAG Report : फिल्म या वेब सीरीज में आपने ड्रग कार्टेल, मनी माफिया और सोने या हथियारों के तस्कर देखे होंगे। कैसे सरकारी सिस्टम में बैठे अफसरों ने बिल्डरों के साथ मिलकर नोएडा के आम आदमी की जेब से हजारों-लाखों करोड़ रुपए निकाल लिए, यह खुलासा किसी और ने नहीं भारत सरकार के महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने किया है। शुक्रवार को लखनऊ विधानसभा में सरकार ने नोएडा अथॉरिटी (Noida Authority) की ऑडिट रिपोर्ट पेश की है। जिसका ट्राईसिटी टुडे ने विश्लेषण किया है। सीएजी ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। जिनके बारे में हम आपको अगले कई दिनों तक लगातार जानकारी देते रहेंगे। आज हम आपको सबसे पहले बता रहे हैं कि किस तरह शहर में बिल्डरों ने लाखों वर्ग मीटर जमीन नाजायज ढंग से हथियाई है।
71 लाख वर्ग मीटर जमीन 113 ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट को दी
सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि नोएडा अथॉरिटी ने फाइनेंसियल ईयर 2005-06 से 2017-18 तक 67 ग्रुप हाउसिंग प्लॉट आवंटित किए थे। इनका क्षेत्रफल 71.03 लाख वर्ग मीटर है। बिल्डरों ने इनके टुकड़े करके 113 प्लॉट बना दिए। ऑडिट के दौरान यह बात सामने आई कि इन 113 परियोजनाओं में से अब तक 71% प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हुए हैं। इन पर 1,30,005 फ्लैट बनाने की मंजूरी दी गई। 44% फ्लैट्स को अब तक ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट नहीं दिया गया है। इन घरों में खरीददारों के जीवन भर की कमाई लगी हुई है। सीएजी का कहना है कि लोग अपने घर हासिल करने के लिए धक्के खा रहे हैं।
कानून होते हुए बिल्डरों से बकाया वसूली नहीं की
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट एक्ट-1976 में डिफॉल्टर्स के खिलाफ कार्यवाही करने का हक अथॉरिटी के पास है, लेकिन बहुत बड़ा अमाउंट बकाया होने के बावजूद प्राधिकरण ने कोई कदम नहीं उठाया। 14,050.73 करोड रुपए के अलॉटमेंट वित्त वर्ष 2005-06 से 2017-18 तक किए गए थे। अब 31 मार्च 2020 तक प्राधिकरण के 18,633.21 करोड़ रुपए बकाया हैं। सीएजी का कहना है कि अब यह पैसा वसूल करना बहुत मुश्किल हो चला है। दरअसल, परियोजनाओं में गैर कानूनी कदम उठाए गए हैं। थर्ड पार्टी राइट क्रिएट हो चुके हैं। इन हालात से नोएडा अथॉरिटी को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा है।
जिनकी औकात नहीं थी, उन्हें बांटी लाखों मीटर जमीन
सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जिन बिल्डरों और कंपनियों की औकात हजार गज जमीन खरीदने की नहीं थी, उन्हें नोएडा अथॉरिटी में बैठे अफसरों ने करीब 500 करोड़ रुपए की जमीन आवंटित कर दी। खास बात यह है कि परियोजना के नियम और शर्तों को यह कंपनियां पूरा नहीं कर रही थीं। सीएजी रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसे 2 मामले सामने आए हैं। इन कंपनियों को 2 लाख वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन आवंटित की गई है। जिसकी कीमत 478.57 करोड रुपए है। यह कंपनियां टेक्निकल एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया को पूरा नहीं कर रही थीं। दरअसल, रियल स्टेट एक्टिविटी से इनका टर्नओवर 200 करोड़ रुपए नहीं था। नोएडा अथॉरिटी ने जमीन आवंटित करने के लिए यह शर्त रखी थी, जिसे पूरा किए बिना आवंटन नहीं हो सकता था।
बिल्डर जमीन लेते रहे और नेटवर्थ बढ़ाते रहे
नोएडा अथॉरिटी में तैनात रहे अफसरों ने बिल्डरों की जालसाजी में भरपूर सहयोग दिया। बिल्डर प्राधिकरण से जमीन लेकर अपनी नेटवर्थ में जोड़ते रहे और नई नेटवर्थ के आधार पर नए आवंटन लेते चले गए। सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 10 ऐसे बिल्डर सामने आए हैं, जिन्होंने इस ढंग से अपनी नेटवर्थ बढ़ाकर 26 अलॉटमेंट हासिल किए और बाद में इन भूखंडों को 45 छोटे-छोटे भूखंडों में बांट दिया। इन भूखंडों की कीमत 4,293.35 करोड रुपए थी। बड़ी बात यह है कि नोएडा अथॉरिटी के अफसरों को पूरी जानकारी थी। इसके बावजूद भूखंड आवंटन कमेटी आंखें बंद करके काम करती रही। इससे हुए नुकसान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सभी 45 हाउसिंग प्रोजेक्ट अब तक अधूरे हैं। 54,987 फ्लैट बनाने की मंजूरी दी गई। जिनमें से 22,653 फ्लैट बायर्स अब तक परेशान घूम रहे हैं।
बैलेंसशीट और कंसोर्टियम के नाम पर हुई धांधली
नोएडा अथॉरिटी से भूखंडों के आवंटन हासिल करने के लिए बिल्डरों और अफसरों ने मिलकर गठजोड़ बनाया। ग्रुप हाउसिंग और स्पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट में ऐसी शर्ते शामिल कीं, जिसका लाभ बिल्डरों ने जमकर उठाया। मसलन, कंसोर्टियम बनाकर भूखंड लेने की इजाजत दी गई। शहर के छोटे-मोटे बिल्डरों ने बड़ी-बड़ी कंपनियों की बैलेंसशीट का बेजा इस्तेमाल किया। बड़ी बैलेंसशीट वाली कंपनियों के साथ मिलकर कंसोर्टिंग बनाए। भूखंड का आवंटन होने के बाद बड़ी कंपनियां कंसोर्सियम छोड़कर चली गईं। इस तरह छोटी-छोटी कंपनियों के नाम बड़े-बड़े भूखंड आ गए। सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि अथॉरिटी ने कंसोर्सियम से बड़ी कंपनियों को निकलने की इजाजत दी। ऐसे 11 मामले सामने आए हैं। बड़े-बड़े प्रोजेक्ट ऐसी कंपनियों के हाथों में आ गए, जो अयोग्य हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि इन परियोजनाओं में 27,370 फ्लैट बनाने की इजाजत दी गई थी। कम्पनियों ने 10,769 फ्लैट बेच डाले। 31 मार्च 2020 तक कोई परियोजना पूरी नहीं हो पाई है।
विधानसभा में प्रस्तुत की रिपोर्ट
आपको बता दें कि नोएडा प्राधिकरण (Noida Authority) ने तत्कालीन अधिकारियों ने बिल्डर को फायदा देने के लिए राजस्व विभाग (Revenue Department) को 13,000 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया है। बीते 2005 से लेकर 2017 के बीच नोएडा प्राधिकरण के अफसरों ने बिल्डर को फायदा पहुंचाने के लिए मनमाने ढंग से भूखंड बाटे। ग्रुप हाउसिंग सोसायटी (Group Housing Society) के भूखंड आवंटन में बड़े स्तर पर गड़बड़ी की गई। प्राधिकरण से भूखंड लेकर उनको छोटे बिल्डरों को बेच जमकर मुनाफा कमाया। इतना ही नहीं इसके अलावा सस्ती दरों में यमुना किनारे फार्म हाउस आवंटन के नाम पर भी लोगों को फायदा पहुंचा कर बिल्डर को करोड़ों का नुकसान पहुंचाया। यह खुलासा शुक्रवार को भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General) यानी की कैग कि ओर से विधानसभा में प्रस्तुत किया गया। अब रिपोर्ट अधिकारियों के पास पहुंच गई। अब इस अधिकारियों पर कार्रवाई करने की तैयारी की जा रही है।