'हमारे डॉक्टर साहब तो इस बार भी रह गए, शायद जनता की सेवा का मौका दे रहे हैं मोदी जी'

चर्चा-ए-आम : 'हमारे डॉक्टर साहब तो इस बार भी रह गए, शायद जनता की सेवा का मौका दे रहे हैं मोदी जी'

'हमारे डॉक्टर साहब तो इस बार भी रह गए, शायद जनता की सेवा का मौका दे रहे हैं मोदी जी'

Google Image | Dr Mahesh Sharma

Modi Cabinet Expansion : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट से 11 मंत्रियों की छुट्टी हो गई। दुखी केवल इन्हीं के समर्थक नहीं हैं, ऐसे सांसदों के समर्थक भी दुखी हैं, जिनके नेताओं को कैबिनेट में जगह नहीं मिली। गौतमबुद्ध नगर के सांसद डॉ.महेश शर्मा के समर्थक भी ऐसे ही हैं। दरअसल, उन्हें महीनों से उम्मीद थी कि मंत्रिमंडल विस्तार में डॉक्टर साहब मंत्री पद पा जाएंगे। कई तो बिल्कुल आश्वस्त थे कि इस बार कैबिनेट मिनिस्टर बनना तय है। बुधवार को शपथ ग्रहण समारोह हो गया और कुछ नहीं मिला तो पूरे लोकसभा क्षेत्र में मीमांसा चल रही है। लोग सोच रहे हैं, आखिर डॉक्टर साहब को मोदी मंत्रिमंडल में जगह क्यों नहीं मिली? सबके अपने-अपने तर्क हैं। कुछ तो कुतर्क भी कर रहे हैं।

लोग कह रहे हैं, ऐसा भी नहीं कि पीएम ने डॉक्टरों को पसंद ना किया हो। कैबिनेट में एक या दो नहीं छह डॉक्टर शामिल किए हैं। ऐसे में भला हमारे डॉक्टर साहब में क्या बुराई थी? अच्छे-खासे सफल डॉक्टर हैं। कई-कई अस्पताल हैं। कुछ दूसरे लोग कह रहे हैं, "पिछली सरकार में डॉक्टर साहब को चार मंत्रालय दिए थे। वह क्षेत्र में जाते नहीं थे। शादी-ब्याह और मरने-गिरने में भी नहीं आते थे। लोग शिकायत करते थे तो हर जनसभा में मंच से कहते थे, मोदी जी ने आपके भाई को बहुत काम दे रखा है। चार-चार मंत्रालय दिए हैं। बहुत काम लेते हैं। इसलिए यह ना समझना कि मैं आपको भूल गया हूं। शायद यह बात मोदी जी तक किसी विरोधी ने पहुंचा दी। अब मोदी जी जनता की सेवा का भरपूर मौका दे रहे हैं।"

कुछ लोगों का एक और तर्क है। कहते हैं, प्रधानमंत्री ने डॉक्टर साहब को वाराणसी का प्रभारी बनाया था। वहां विकास कार्यों की निगरानी की जिम्मेदारी दी थी। डॉक्टर साहब वाराणसी जाते थे और दिन ढलते ही नोएडा लौट आते थे। उन्हें सरकार के काम की कम और अपने अस्पतालों की चिंता ज्यादा रहती थी। डॉक्टर साहब सार्वजनिक रूप से कहते भी हैं, "मैं एक साइकिल और 250 रुपये लेकर नोएडा आया था।" यही वजह रही कि वह पीएम की गुड बुक से बाहर हो गए। कुछ लोग कह रहे हैं कि पिछली सरकार में कई दिग्गजों से नजदीकियों के कारण मंत्री बने थे। अब कई से वह नजदीकियां खत्म हो चुकी हैं और कई दिग्गज ही नहीं रहे। लिहाजा, कोई पैरवी करने वाला नहीं है। लोगों का एक और तर्क है। छपास और दिखास का रोग ले बैठा। बड़े-बड़े चैनल मालिकों और पत्रकारों से दोस्ती कर लीं। सोचा था यह लोग भला करेंगे। किसी ने खबर चला दी यूपी के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। किसी ने खबर छापी कि यूपी के प्रदेश अध्यक्ष बन रहे हैं। कोई काम नहीं आया। उल्टे शीर्ष नेतृत्व को यह चाल-चलन नागवार गुजर गया होगा।

कुल मिलाकर जितने समर्थक, उतनी बातें चल रही हैं। लोगों को पूर्व मंत्री लिखा जाना नागवार गुजर रहा है। कोई इसे ब्राह्मण विरोध तक करार दे रहा है। कोई ढलती उम्र बता रहा है। कोई कह रहा है कि कुछ लोगों की हाय लग गई है। कोई वक्त की मार तो किसी की नजर में यह 'किस्मत कनेक्शन' का टूटना है। अब मंत्री क्यों नहीं बन पाए, यह तो एक ही आदमी बता सकता है और उससे पूछने की हिम्मत तो किसी में नहीं है।

शायद इंसानी जिंदगी के इन्हीं उतार-चढ़ाव पर साहिर लुधियानवी साहब ने लिखा था,

वक़्त से दिन और रात, वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम, वक़्त का हर शै पे राज। 

वक़्त की गर्दिश से है चाँद तारों का निजाम
वक़्त की ठोकर में है क्या हुकूमत क्या समाज। 

वक़्त की पाबंद हैं आती जाती रौनकें
वक़्त है फूलों के सेज, वक़्त है काँटों का ताज। 

आदमी को चाहिए वक़्त से डर कर रहे
कौन जाने किस घड़ी वक़्त का बदले मिजाज।

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