नोएडा के इस गांव में 6 साल तक रहे सरदार भगत सिंह, घोषणा के बाद शहीदों के लिए कुछ नहीं कर पाए सांसद-प्राधिकरण

जरा याद करो कुर्बानी : नोएडा के इस गांव में 6 साल तक रहे सरदार भगत सिंह, घोषणा के बाद शहीदों के लिए कुछ नहीं कर पाए सांसद-प्राधिकरण

नोएडा के इस गांव में 6 साल तक रहे सरदार भगत सिंह, घोषणा के बाद शहीदों के लिए कुछ नहीं कर पाए सांसद-प्राधिकरण

Tricity Today | नोएडा का नलगढ़ा गांव

Noida News : आज हम 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। वर्ष 1947 में हमारा देश अंग्रेजों के जुल्म से आजाद हुआ था। इस आजादी का कनेक्शन नोएडा से बेहद खास है। आजादी की लड़ाई में नोएडा का नलगढ़ा गांव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह वही गांव है। जहां शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और उनके अन्य साथियों ने मिलकर दिल्ली असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई थी। इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल के बावजूद स्वतंत्रता के दशकों बाद भी इस गांव में शहीद स्मारक और प्रतिमा लगाने की कोई ठोस पहल नहीं की गई है।

नोएडा के नलगढ़ा गांव का इतिहास
नलगढ़ा गांव स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी केंद्रों में से एक था। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों ने दिल्ली के नजदीक होने के कारण नलगढ़ा को अपने ठिकाने के रूप में चुना। वे यहां करीब छह साल तक छिपे रहे और इस दौरान उन्होंने आश्रम में बम बनाए। इन बमों का निर्माण गांव में स्थित पत्थर पर किया गया, जिसमें बारूद और अन्य सामग्रियों को मिलाया जाता था। आज भी यह पत्थर गांव में मौजूद है और स्वतंत्रता संग्राम के इन दिनों की गवाही देता है।

सुभाष चंद्र बोस से जुड़ा कनेक्शन
नलगढ़ा गांव में भगत सिंह के साथ बम बनाने में शामिल आजाद हिंद फौज के कमांडर करनैल सिंह का परिवार भी रहता है। करनैल सिंह ने क्रांतिकारियों का समर्थन किया। वह सुभाष चंद्र बोस की स्पीच पढ़ते थे। उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण था और आज भी उनके परिवार की उपस्थिति गांव की ऐतिहासिक धरोहर को जीवित रखती है।

गांव के लिए 2013 की घोषणा
हालांकि, नलगढ़ा गांव के योगदान को मान्यता देने के लिए कई घोषणाएं की गई थीं, लेकिन वास्तविकता में इन पर अमल नहीं हो पाया है। नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ रमारमण ने अप्रैल 2013 में यहां शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की थी। इसके लिए 104 बीघा जमीन भी तय की गई थी। हालांकि, आज तक इस पर सिर्फ एक बोर्ड ही लगा हुआ है और शहीद स्मारक की वास्तविक प्रगति बहुत धीमी है।
  
नलगढ़ा में 2014 की योजना
भाजपा के सत्ता में आने के बाद तत्कालीन पर्यटन मंत्री और क्षेत्रीय सांसद डॉ.महेश शर्मा ने 2014 में इस गांव को एक पर्यटन स्थल बनाने का वादा किया था, लेकिन इस वादे पर भी अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। करीब 11 साल बाद भी नलगढ़ा गांव में शहीद स्मारक और मूर्तियों की स्थापना का इंतजार जारी है। शहीद भगत सिंह की याद में कोई ठोस काम नहीं किया गया है। गांव में म्यूजियम और लाइब्रेरी का प्रस्ताव भी अब तक ठंडे बस्ते में पड़ा है।

प्राधिकरण और नेताओं-मंत्रियों के लिए शर्म की बात
स्वतंत्रता संग्राम के विशेषज्ञ डॉ.आनंद आर्य का कहना है कि नलगढ़ा गांव ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन आज भी यहां के योगदान को उचित मान्यता नहीं मिली है। शहीद स्मारक और अन्य योजनाओं की घोषणाएं कागजों तक सीमित रही हैं। यह समय है कि इन ऐतिहासिक स्थलों को उनका उचित सम्मान और मान्यता दी जाए, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी स्वतंत्रता संग्राम के इस महत्वपूर्ण अध्याय को जान सकें और समझ सकें।

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