Noida News : नोएडा ग्रेटर नोएडा में बच्चों को पढ़ाना बिजनेस करने से भी ज्यादा महंगा हो गया है। दिल्ली-एनसीआर के बाकी शहरों के मुकाबले नोएडा में स्कूलों की फीस ने आसमान छू लिया है। ऐसे में अब निजी स्कूलों की कथित मनमानी और अत्यधिक शुल्क वसूली के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता अभिष्ट गुप्ता ने न्यायालय में याचिका दायर की है। उन्होंने इस संबंध में कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं। यदि आसपास के राज्यों दिल्ली और हरियाणा से तुलना करें तो फीस को बोझ कई गुना ज्यादा है। कोरोना काल में कुछ दिन के लिए मासिक फीस और अन्य शुल्क लेने पर रोक लगाई थी। इसे आंशिक तौर पर माना गया लेकिन हालात सामान्य होते ही स्कूल फिर पुराने ढर्रे पर लौट आए और मनमाने चार्ज लगाने शुरू कर दिए। अभिभावकों की एकजुटता के अभाव में स्कूल स्पष्ट आदेशों की भी खुली अनदेखी करते हैं।
कोरोना काल के आदेशों की अनदेखी
सामाजिक कार्यकर्ता अभिष्ट गुप्ता ने बताया कि महामारी के दौरान जब कई अभिभावकों की नौकरियां चली गईं और व्यापार ठप हो गए, तब सरकार ने स्कूलों को कुल शुल्क का 15 प्रतिशत वापस करने का निर्देश दिया था। "लेकिन आज तक यह मुद्दा सुलझा नहीं है," उन्होंने कहा। उन्होंने सवाल उठाया कि नोएडा में स्कूल शुल्क आसपास के राज्यों और जिलों की तुलना में इतना अधिक क्यों है। उन्होंने इंडिपेंडेंट स्कूल फीस एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत सभी शुल्कों को समायोजित कर कंपोजिट फीस बनाया गया था, जिसमें सुविधा शुल्क समाप्त हो गया था। "लेकिन स्कूल प्रबंधन इसे मानने को तैयार नहीं है," गुप्ता ने कहा।
विकास निधि पर सवाल
गुप्ता ने एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा उठाते हुए कहा कि स्कूलों का विकास कोष नियमों से कहीं अधिक है। "नियमानुसार कोई भी स्कूल अपनी साल की फीस का अधिकतम 15 प्रतिशत विकास कोष के रूप में रख सकता है। लेकिन यहां यह राशि 100 से 150 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है, जबकि यह 15-20 लाख से लेकर अधिकतम 45 लाख रुपये होनी चाहिए।" उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल इस कोष को साधारण बैलेंस शीट में नहीं दिखा रहे हैं और न ही अध्यापकों के वेतन के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं।