हजारों किसानों को मुआवजा बांटने में घोटाला, 14 दिनों में SIT करेगी दोबारा जांच

नोएडा के लिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश : हजारों किसानों को मुआवजा बांटने में घोटाला, 14 दिनों में SIT करेगी दोबारा जांच

हजारों किसानों को मुआवजा बांटने में घोटाला, 14 दिनों में SIT करेगी दोबारा जांच

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Noida News : सुप्रीम कोर्ट ने गेझा और तिलपताबाद के साथ अन्य गांवों के अपात्र किसानों को मुआवजा देने में हुई गड़बड़ी की जांच को लेकर असंतोष व्यक्त किया है। वर्तमान विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट में केवल दो याचिकाकर्ताओं की भूमिका की जांच की गई है। जबकि अन्य अधिकारियों की भूमिका की अनदेखी की गई है। न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को नई एसआईटी गठित करने का आदेश दिया है और इसके लिए दो सप्ताह का समय दिया है।


हाईकोर्ट के पूर्व जज और कई आईपीएस अफसर करेंगे जांच
नई एसआईटी उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की निगरानी में जांच करेगी। न्यायालय ने कहा कि वर्तमान एसआईटी की रिपोर्ट में केवल दो अधिकारियों की भूमिका सामने आई है, जबकि मुआवजा वितरण में भ्रष्टाचार और दुरुपयोग के संकेत व्यापक स्तर पर हो सकते हैं। सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय से निर्देश लेने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा, जिसे स्वीकार कर लिया गया। न्यायालय ने कहा कि नई एसआईटी में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रैंक के तीन आईपीएस अधिकारियों को शामिल किया जाएगा। जो यूपी के अलावा अन्य प्रदेशों से होंगे।

इस मुद्दे पर हुई बहस
सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण के विधि सलाहकार वीरेंद्र नागर और दिनेश सिंह को अग्रिम जमानत देने का आदेश भी दिया है। इन अधिकारियों ने उच्चतम न्यायालय में जमानत के लिए अर्जी दी थी। एसआईटी की जांच में पाया गया है कि नोएडा प्राधिकरण ने किसानों को बढ़ी दरों पर मुआवजा दिया, जबकि इसके लिए कोई विधिक बाध्यता नहीं थी। मुआवजा 297 रुपये प्रति वर्ग गज की दर से दिया गया, जो अनियमित और अपात्र किसानों को था।

117 करोड़ 56 लाख 95 हजार रुपये का घोटाला
न्यायालय ने पहले ही 14 सितंबर 2023 को नोएडा विकास प्राधिकरण और प्रदेश शासन को निर्देश दिया था कि यह गड़बड़ी केवल विधि अधिकारियों के स्तर पर नहीं हो सकती, इसकी विस्तृत जांच होनी चाहिए। एसआईटी ने गेझा, तिलपताबाद और भूड़ा गांवों में 20 मामलों की जांच की और 117 करोड़ 56 लाख 95 हजार रुपये के मुआवजा वितरण में गड़बड़ी पकड़ी।  इस मामले की जांच पिछले 15 वर्षों की फाइलों की समीक्षा के बाद की गई है, जिसमें एक अप्रैल 2009 से लेकर 2023 तक के प्रकरण शामिल हैं।

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