Noida/New Delhi : नोएडा अथॉरिटी के ख़िलाफ़ एक बार फिर देश की सर्वोच्च अदालत ने तल्ख़ टिप्पणी की है। नोएडा अथॉरिटी में मुआवज़ा वितरण में हुए फ़र्ज़ीवाड़े से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “नोएडा अथॉरिटी के एक-दो अफ़सर इस फ़र्ज़ीवाड़े में शामिल नहीं हैं। उस प्राधिकरण का पूरा सेटअप मिला हुआ है। राज्य सरकार ने इस मामले में अब तक ज़िम्मेदार अफ़सरों के खिलाफ़ जांच क्यों नहीं की है? फर्जीवाड़ा करने वालों के ख़िलाफ़ एक्शन क्यों नहीं लिया गया है? अगली सुनवाई से पहले राज्य सरकार यह बताए कि इस मामले में किस एजेंसी से जांच करवाई जाए?”
क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई की। जिसमें पता लगा कि कानून में किसी भी अधिकार के बिना भूमि मालिकों को नोएडा प्राधिकरण ने मुआवजा दिया है। एक एफआईआर दर्ज की गई, लेकिन नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ कोई जांच नहीं की गई। जांच नहीं करने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य सरकार की कोर्ट ने खिंचाई की है। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि यह मामला कोई अकेली घटना नहीं है। यह कुछ अधिकारियों के कहने पर नहीं किया जा सकता है। इसमें नोएडा का पूरा सेटअप शामिल है। एसएलपी में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत खारिज कर दी थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने याची को राहत देते हुए हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को सुनवाई की अगली तारीख तक जारी रखने का निर्देश दिया है।
एफआईआर में क्या है
नोएडा के दो अधिकारियों और एक भूमि मालिक के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इन लोगों पर 7,26,80,427 रुपये का मुआवजा बिना किसी अधिकार के गलत तरीके से भुगतान करने का आरोप है। इसे आपराधिक साजिश बताया गया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, “सुनवाई के दौरान यह पता चला कि रिपोर्ट किया गया मामला एकमात्र उदाहरण नहीं है और ऐसे कई मामले हैं। जिनमें न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने भूमि के लिए मुआवजे का भुगतान किया है। कानून में किसी भी अधिकार के बिना मुआवज़ा दिया गया है। हमारे विचार में यह प्राधिकरण के एक या दो अधिकारियों के कहने पर नहीं किया जा सकता है। प्रथम दृष्टया संपूर्ण नोएडा सेटअप इसमें शामिल प्रतीत होता है।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत नहीं दी
वरिष्ठ अधिवक्ता पीएन मिश्रा याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में हाज़िर हुए। वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र कुमार और एएजी अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद सरकार प्रतिवादियों की ओर से उपस्थित हुए। प्रासंगिक मामले में याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 120बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(ए) के तहत अपराध के लिए अग्रिम जमानत की मांग की। उच्च न्यायालय ने 16 जनवरी, 2023 के आक्षेपित आदेश में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत आवेदन को खारिज करते हुए कहा था, “उक्त तथ्य को देखते हुए, आरोपी आवेदक ने 7,26,80,427 रुपये के बड़े मुआवजे की सिफारिश की। आरोपी आवेदक ने गलत आधार पर कहा कि मुआवजा देने की अपील उच्च न्यायालय में लंबित थी। इस न्यायालय ने पाया कि आरोपी आवेदक द्वारा किए गए अपराध के लिए उसे अग्रिम जमानत देने की आवश्यकता नहीं है। आरोपी आवेदक ने कथित तौर पर नोएडा प्राधिकरण को गलत तरीके से नुकसान पहुंचाया है और खुद को और उक्त भूमि मालिक को गलत लाभ पहुंचाया है।”
हाईकोर्ट ने गहन जांच का आदेश दिया
हाईकोर्ट की पीठ की राय थी कि मामले में "गहन जांच और सच्चाई का पता लगाने" के लिए किसी स्वतंत्र एजेंसी को संदर्भित करना आवश्यक है। राज्य सरकार ने कोई जांच नहीं करवाई। सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी ज़ाहिर की। इस पर उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता ने राज्य सरकार से निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा है। अब पीठ ने मामले को 5 अक्टूबर, 2023 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। अदालत ने राज्य सरकार से पूछा है कि इस पूरे मामले की जांच किस एजेंसी से करवाई जाए।"