कांग्रेस और सपा पर बरसे मनोज तिवारी, बोले – दोनों दल लोगों को कर रहे हैं गुमराह

प्रयागराजः कांग्रेस और सपा पर बरसे मनोज तिवारी, बोले – दोनों दल लोगों को कर रहे हैं गुमराह

कांग्रेस और सपा पर बरसे मनोज तिवारी, बोले – दोनों दल लोगों को कर रहे हैं गुमराह

Google Image | मनोज तिवारी ने सपा और कांग्रेस पर पलटवार किया

भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने मंगलवार को प्रयागराज सर्किट हाउस में मीडिया से बात की। इस दौरान उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार किसानों की हितैषी है। लेकिन किसान आंदोलन के पीछे वे कौन लोग हैं, जो किसानों को आगे कर आंदोलन के नाम पर देश में अराजकता फैलाने का काम कर रहे हैं। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में प्रतिदिन लगभग दो हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है। मगर वहां के मुख्यमंत्री किसानों को गुमराह कर रहे हैं। 

प्रधानमंत्री ने एमएसपी से लेकर मंडी तक के सभी मुद्दों पर किसानों को आश्वासन दिया है। लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रसित किसान नेता सरकार की बात सुनने को तैयार नहीं। यदि केंद्र की हमारी सरकार ने तीन नये कृषि कानून बनाकर गलती की है, तो आम जनता 2024 में हमें इसकी सजा देगी। लाल किले की हिंसा में पकड़े गये दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जा रही है। अयोध्या से प्रयागराज पहुंचे दिल्ली के भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने मेजा रोड स्थित कुंवर पट्टी गांव में शीतला महोत्सव में शामिल होने से पूर्व पत्रकारों से बातचीत में यह बातें सर्किट हाउस में कहीं।

यूपी सरकार के बजट को लेकर अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया पर मनोज तिवारी ने कहा कि अच्छा बजट है। इस पर प्रतिपक्ष को गंभीरता से विचार कर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। यूपी की जनता जिन्हें नकार चुकी है, वही भ्रामक बातें कर रहे हैं। अखिलेश यादव ने कल कहा कि भाजपा सरकार में गंगा साफ नहीं हुई, बल्कि पैसा साफ हो गया। इस पर मनोज तिवारी ने कहा कि जो लोग मिनिरल वाटर से नहाते हैं, वह भी गंगा में डुबकी लगा रहे हैं।

यमुना नदी के किनारे स्थित बंसवार गांव में निषाद समुदाय के साथ हुई घटना पर कहा कि उनकी क्षतिग्रस्त नावों के नुक़सान की भरपाई राज्य सरकार ने कर दी है। इस मामले को गंभीरता से लेकर सरकार ठोस कार्रवाई करेगी। इसमें जो भी दोषी पाये जायेंगे, उन लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस मुद्दे पर सपा और कांग्रेस अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। किसान आंदोलन की आड़ में गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर जिस तरह उपद्रव हुआ, उसने आन्दोलन की पवित्रता पर सवाल खड़ा कर दिया है।

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