प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को प्रयागराज की स्थानीय मजिस्ट्रेट की अदालत ने डिग्री के मामले में बड़ा झटका दिया है। फर्जी मार्कशीट और दस्तावेज के आधार पर चुनाव लड़ने के आरोप की स्थानीय न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में प्रारंभिक जांच करके आख्या प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नम्रता सिंह ने प्रयागराज के कैंट थाना प्रभारी को प्रारंभिक जांच करके कोर्ट में रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। जांच रिपोर्ट पेश होने पर मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।
अदालत ने कहा कि इस प्रकरण में फर्जी मार्कशीट के उपयोग करने का आरोप लगाया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने का आदेश रूटीन तौर पर नहीं पारित किया जाना चाहिए। आदेश पारित करने के पूर्व प्रारंभिक जांच कराई जा सकती है। इस प्रकरण में प्रारंभिक जांच जरूरी है। कोर्ट ने कार्यालय को भी निर्देशित किया है कि यह प्रार्थना पत्र 25 अगस्त को सुनवाई के लिए नियत समय पर अदालत के समक्ष पेश किया जाए। न्यायालय ने यह आदेश दिवाकर नाथ त्रिपाठी की अर्जी पर उनके अधिवक्ता उमाशंकर चतुर्वेदी के तर्कों को सुनने के बाद दिया।
प्रयागराज के आरटीआई एक्टिविस्ट दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नम्रता सिंह की अदालत में अर्जी दी थी। यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 163(3) के अंतर्गत दायर की गई। आरटीआई एक्टिविस्ट दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने अदालत से मांग की है कि इस प्रकरण में कैंट थाना के प्रभारी को आदेशित किया जाए कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर विधि अनुसार विवेचना करें।
आरटीआई एक्टिविस्ट दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पर आरोप लगाया गया है कि वर्ष 2007 में शहर के पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से उनके द्वारा विधानसभा का चुनाव और उसके बाद भी कई चुनाव लड़े गए। अपने शैक्षणिक प्रमाण पत्र में हिंदी साहित्य सम्मेलन के द्वारा जारी कागजात का उपयोग किया गया है। इन्हीं कागजात के आधार पर इंडियन आयल कारपोरेशन में पेट्रोल पंप भी प्राप्त किया गया है।
प्रार्थना पत्र में भी आरोप लगाया गया है कि शैक्षणिक प्रमाण पत्र में अलग-अलग वर्ष अंकित है, और उनकी मान्यता नहीं है। दिवाकर ने कहा कि स्थानीय थाना और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से लेकर उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के विभिन्न अधिकारियों के साथ मंत्रालय को भी पत्र दिए गए हैं। लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं होने के कारण अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अदालत से जांच कराने की मांग की गई है।