बसंत पंचमी पर मां शारदे का पूजन करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। कर्मकांड विशेषज्ञों की मानें तो मां शारदे का पूजन अन्य देवियों से भिन्न होता है। ऐसे में भी यह जरूरी है कि पूजन करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ख्याल रखते से भक्त मां शारदे को जल्द प्रसन्न कर आशीर्वाद हासिल कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं बसंत पंचमी के मौके पर किस तरह और कब करें मां शारदे का विधिवत पूजन।
कर्मकांड विशेषज्ञ और ज्योतिषाचार्य पंडित संतोष जी पाधा ने जानकारी दी कि बसंत पंचमी के मौके पर मां शारदे के पूजन के साथ ही विभिन्न कर्मकांड भी किए जा सकते हैं। स्वयंभू मुहूर्त होने के चलते यह दिन शिक्षा आरंभ करना, रत्न धारण करना, गृह प्रवेश करना, व्यवसाय का पूजन करना सहित अन्य पूजन के लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए या ख्याल रखना चाहिए कि मां शारदे का पूजन करते समय पूजन सामग्री में किसका उपयोग करना चाहिए और किस वस्तु का उपयोग पूरी तरह से वर्जित माना गया है।
यह है पूजन विधि : मां शारदे का पूजन करने के लिए सबसे पहले स्नान ध्यान करना चाहिए। पूजन करने के दौरान आया ख्याल रखना चाहिए कि माता रानी के सामने रखे गए कलश में चावल के प्रयोग करने के बजाए पीले रंग के चने के दाल का प्रयोग करना शास्त्रोक्त माना गया है। पूजन के बाद रोली के बनाएं टीके में हल्दी का प्रयोग करना चाहिए । टीका लगाने के बाद मस्तक पर चावल का इस्तेमाल कर सकते हैं । इसके अलावा बसंत पंचमी के पूजन में नीले रंग के फूल को भी इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। पूजन के समय इस बात का भी ख्याल करना चाहिए कि किसी भी सूरत में पूजन में शामिल परिवार के सदस्यों में कोई व्यक्ति काले रंग के कपड़े पहन कर पूजन में ना शामिल हो। सरस्वती जी के पूजन के बाद अनिवार्य रूप से गणपति का पूजन जरूर करना चाहिए।
प्रसाद में रखें ख्याल : मां सरस्वती के पूजन के प्रसाद में यदि संभव हो तो घर में मूंग की दाल की खिचड़ी या कढ़ी चावल का प्रयोग करना चाहिए। इस बात का ख्याल रखें की पूजन के प्रसाद में यदि संभव हो तो बेर का प्रयोग अति उत्तम माना जाता है। घर में यदि मां सरस्वती जी का पूजन हो रहा है तो किसी भी सूरत में रसोई में तामसिक भोजन को पकाया जाना या बसंत पंचमी के दिन तामसिक भोजन का प्रयोग करना पूरी तरह से वर्जित माना गया है।
रत्न पूजन : यदि बसंत पंचमी के दिन रत्न या रुद्राक्ष धारण कर रहे हैं तो रत्न और रुद्राक्ष का पारंपरिक पूजन करते हुए हल्दी का प्रयोग करना शास्त्रोक्त माना गया है। विद्वानों की ओर से बताए गए पूजन के बाद रत्न यह रुद्राक्ष में हल्दी का तिलक करने से पूजन पूर्ण माना गया है।