जानिए 160 साल पुराने और गंगा किनारे बसे इस मंदिर में क्यों मनाई जाती है एक महीने तक मकर संक्रांति

Makar Sankranti 2021 : जानिए 160 साल पुराने और गंगा किनारे बसे इस मंदिर में क्यों मनाई जाती है एक महीने तक मकर संक्रांति

जानिए 160 साल पुराने और गंगा किनारे बसे इस मंदिर में क्यों मनाई जाती है एक महीने तक मकर संक्रांति

Tricity Today | Makar Sankranti Special

- 1 महीने में दो बार होती है विशेष आरती, तमिल भाषा में मंत्रों का होता है उच्चारण
 

- मंदिर में मंत्रों के उच्चारण के लिए उत्तर भारतीय पुरोहितों को ही दिया जाता है तमिल भाषा का ज्ञान
 

 

गंगा किनारे बसे मंदिर में 1 महीने तक मकर संक्रांति का पर्व मनाए जाने का भी विधान है। 160 वर्ष पुराने इस मंदिर में एक खासियत और है। पर्व के दौरान महीने में दो बार होने वाली विशेष आरती के अलावा यहां पर तमिल भाषा में मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। तमिल भाषा में मंत्रों का उच्चारण करने के लिए दक्षिण भारत से पुरोहित बुलाने के बजाय मंदिर की ओर से उत्तर भारतीय पुरोहितों को तमिल भाषा सिखाई जाती है।

कानपुर के प्रयाग नारायण मंदिर शिवाला में प्राचीन परंपरा का निर्वहन आज भी होता है। मंदिर में होने वाले विधान के बारे में ठाकुर भक्तवत्सल नारायण ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय नारायण तिवारी और प्रबंधक अभिनव नारायण तिवारी ने जानकारी दी कि मंदिर में दक्षिण भारतीय पूजन का विधान है। मंदिर में मकर संक्रांति के दौरान धनुर्मास उत्सव मनाया जाता है। यह महोत्सव मकर संक्रांति के 1 महीने पहले से शुरू हो जाता है। 1 महीने तक चलने वाले उत्सव को मकर संक्रांति वाले दिन विराम दिया जाता है। महोत्सव में पूरी तरह से दक्षिण भारतीय परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इस दौरान सभी विधान इस तरह से पूर्ण किए जाते हैं जैसे दक्षिण भारतीय मंदिर में होते हैं। भक्तों को इस दौरान विशेष रुप से बनी खिचड़ी भी प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है। खिचड़ी के साथ खीर और मेवा का भी प्रसाद प्राचीन काल से भक्तों को वितरित किया जा रहा है। मंदिर प्रबंधन ने यह जानकारी दी कि 160 साल पुराने मंदिर में आज तक पूजन और संस्कार में किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं किया गया है।

यह प्रसाद है वर्जित : 
मंदिर के प्रबंधक अभिनव नारायण तिवारी ने जानकारी दी कि मंदिर में आने वाले भक्त इस दौरान पारंपरिक रूप से चढ़ने वाले प्रसाद को ही ग्रहण कर सकते हैं। मंदिर में आज भी लाल फल, लाल सब्जी और छेने का प्रसाद वर्जित रखा गया है। मंदिर में गाय के पूजन का भी विशेष विधान है। ऐसे में दूध को फाड़कर बनाया गया कोई भी पदार्थ मंदिर में प्रसाद के रूप में उपयोग नहीं होता है।

गाय का पूजन महत्वपूर्ण : 
मंदिर में 160 वर्षों से लगातार आरती के समय एक विशेष परंपरा निभाई जाती है। इस परंपरा के तहत मंदिर में रोजाना सुबह आरती से पहले गाय आकर आरती किए जाने की अनुमति मंदिर के पुरोहितों को देती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि जिस दिन गाय मंदिर में आकर अनुमति नहीं देती उस दिन मंदिर में आरती नहीं होगी। 160 वर्षों में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ जब गाय ने सुबह मंदिरा कर आरती की अनुमति ना दी हो।

17 और 27वे दिन होती है आरती : 
मंदिर में 1 महीने तक मनाई जाने वाली मकर संक्रांति में 2 दिन विशेष आरती होती है। इनमें 7वे और 27 दिन होने वाली आरती का विशेष महत्व है। इन दोनों विशेष आरती में बड़ी संख्या में भक्त मंदिर में शामिल होते हैं। इस दौरान दक्षिण भारतीय शैली में होने वाली आरती को देखने के लिए बड़ी संख्या में युवा भी शामिल होते हैं।

शोध के लिए आते हैं छात्र : 
प्राचीन मंदिर में शोध के लिए भी विभिन्न देशों से छात्र-छात्राएं मंदिर आते हैं। यह छात्र-छात्राएं मंदिर में आरती के समय उपयोग होने वाले विभिन्न वाद्य यंत्र और निभाई जाने वाली परंपरा पर शोध करते हैं। इसके अलावा मंदिर में कई ऐसे प्राचीन उपकरण और वाद्य यंत्र है जिन्हें मंदिर की ओर से आज भी सुरक्षित रखा गया है। शोध छात्र इन वाद्य यंत्रों को भी देखने मंदिर आते हैं।

Copyright © 2023 - 2024 Tricity. All Rights Reserved.