इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- बीवी कोई प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं, पुरुषों में त्याग की जरुरत

उत्तर प्रदेश से बड़ी खबर : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- बीवी कोई प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं, पुरुषों में त्याग की जरुरत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- बीवी कोई प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं, पुरुषों में त्याग की जरुरत

Google Photo | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Uttar Pradesh News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादी और महिलाओं की स्वतंत्रता पर एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा कि विवाह का अर्थ पत्नी पर स्वामित्व नहीं है। पत्नी का शरीर, उसका अंतरंग जीवन और उसकी निजता पूरी तरह से उसके अपने अधिकार हैं। पति को इन अधिकारों का उल्लंघन करने का कोई अधिकार नहीं है। यह फैसला न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने मिर्जापुर के बृजेश यादव द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुनाया।

क्या था मामला?
मिर्जापुर के चुनार कोतवाली थाना क्षेत्र में रहने वाले बृजेश यादव ने रामपुर कोलना निवासी महिला से शादी की थी। कुछ समय बाद पत्नी ने आरोप लगाया कि बृजेश ने मुकदमेबाजी की रंजिश में उसके अंतरंग वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिए। इस संबंध में 9 जुलाई 2023 को पत्नी ने बृजेश के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस जांच के बाद आईटी एक्ट की धाराओं के तहत आरोप पत्र ट्रायल कोर्ट में दाखिल किया गया। ट्रायल कोर्ट ने बृजेश को समन जारी कर तलब किया। इसके खिलाफ बृजेश ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मुकदमे को रद्द करने की मांग की।

पति की दलील पर कड़ी सुनवाई
बृजेश के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि पत्नी का अंतरंग जीवन उसका अधिकार हो सकता है, लेकिन वह कानूनी रूप से उसकी पत्नी है। इसलिए पति के खिलाफ आईटी एक्ट के तहत मामला नहीं बनता और मुकदमा खारिज किया जाना चाहिए।

पुरानी सोच को त्यागने की जरूरत
न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि शादी का मतलब पत्नी पर स्वामित्व नहीं है। कोर्ट ने कहा, “पति का पत्नी की निजता और स्वतंत्रता पर अधिकार नहीं हो सकता। अंतरंग वीडियो वायरल करना वैवाहिक रिश्ते की शुचिता को ठेस पहुंचाता है।” कोर्ट ने कहा कि यह समय है जब पुरुष इस पुरानी मानसिकता को छोड़ दें कि पत्नी उनकी निजी संपत्ति है। “विवाह एक पवित्र बंधन है, जो विश्वास और सम्मान पर आधारित होता है। पति का यह दायित्व है कि वह अपनी पत्नी के समर्पण और गोपनीयता का सम्मान करे।”

समानता का आदर्श जरूरी
न्यायालय ने यह भी कहा कि एक समय था, जब महिलाओं की कानूनी पहचान पति के अधीन मानी जाती थी। लेकिन आज यह धारणा सैद्धांतिक और कानूनी रूप से खत्म हो चुकी है। “पति का पत्नी की स्वायत्तता और गोपनीयता का सम्मान करना समानता और न्याय का आधार है।”

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