Noida Desk : आध्यात्मिक दृष्टि से कलियुग के इस चरण को संगम युग भी कहा जाता है। संगम युग मतलब दो युगों के मिलन से है। त्रेता में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और द्वापर में श्रीकृष्ण। एक लंबी लड़ाई के बाद देश को अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर मिलने जा रहा है। नए साल के पहले महीने की 22 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भगवान श्रीराम के बाल स्वरूप की गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। माना जा रहा है कि अयोध्या में मंदिर के बाद सियासी कुरुक्षेत्र में राजनीतिक योद्धा अपने अपमान का बदला लेने के लिए कमर कस चुके हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि कलियुग के इस 'महाभारत' में कृष्ण और अर्जुन का किरदार कौन निभाएगा।
अंदरुनी कलह बड़ी चुनौती
पीएम नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को त्रेता युग में जन्में हम सबके आराध्य भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे हैं। इसके ठीक बाद लोकसभा चुनावों का बिगुल फूंका जाएगा। इससे पहले मोदी के घर यानी बीजेपी में 'महाभारत' की आहट सुनाई दे रही है। पार्टी में भितरघात और अंदरुनी कलह से पार पाने की चुनौती सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है।
अपनों से ही घिरे मोदी
पीएम मोदी इन दिनों जितना बाहर वालों के विरोध का सामना कर रहे हैं, उससे कहीं अधिक अंदरुनी कलह से परेशान हैं। उन्हें भितरघात का भी डर सता रहा है। इसकी एक बड़ी वजह पार्टी के निचले पायदान पर खड़े कार्यकर्ताओं की उपेक्षा मानी जा रही है। गाहे-बगाहे पार्टी सूत्रों से इस तरह की खबरें सामने आती रहती हैं। शीर्ष नेतृत्व भले ही इसे बड़ी चतुराई से हैंडल कर सब कुछ ठीक होने का दिखावा कर रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे जुदा है। यह बात किसी से भी छिपी नहीं है कि केंद्र के साथ ही भाजपा शासित लगभग सभी राज्यों में हालात इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है।
बढ़ती नाराजगी और असंतोष
बीजेपी के भीतर नरेंद्र मोदी के खिलाफ नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। इस नाराजगी के पीछे कोई एक वजह नहीं है। इसकी वजहों में से एक है क्षत्रपों को किनारे लगाना। बड़े नेताओं को नजरंदाज करना और उन्हें तवज्जों न देना। सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि चुनाव से पहले बड़े नेताओं का असंतोष ऐन वक्त पर ज्वालामुखी की शक्ल अख्तियार कर सकता है। पार्टी में असंतुष्ट और नाराज नेताओं की लंबी फेहरिश्त है। इसमें सबसे पहला नाम बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नीतिन गडकरी का आता है। उनकी नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। वह कई दफा सार्वजनिक मंच से अपनी नाराजगी का इजहार कर चुके हैं। इसके अलावा राजनाथ सिंह, सतपाल मलिक, वसुंधरा राजे सिंधिया, मामा शिवराज, रमन सिंह, सुशील मोदी, मुख्तार अब्बास नकवी, शहनवाज हुसैन, बीएस येदियुरप्पा, प्रेम कुमार घूमल, डॉ. हर्षवर्धन, रमेश पोखरियाल निशंक, भगत सिंह कोश्यारी, बीएस खंडूरी, अर्जुन मुंडा, बाबू लाल मरांडी, उमा भारती, कलराज मिश्र, राजीव प्रताप रूड़ी, प्रकाश जावड़ेकर जैसे तमाम नेता हैं, जिन्हें अपनी राजनीतिक पारी खत्म होते दिखाई दे रही है।
बेवजह नहीं है नेताओं की नाराजगी
पार्टी के जितने भी बड़े नेता हैं, आज वह घर बैठे हैं। उनके सामने सबसे बड़ा संकट इस बात का है कि वह चुनाव जीतकर आए थे, अब वह जनता को क्या जवाब देंगे। उन्हें इस बात पर भी ऐतराज है कि वे चुने गए जनप्रतिनिधि हैं, लेकिन तमाम मंत्रालयों का जिम्मा ब्यूरोक्रेट्स संभाल रहे हैं। वे अपने क्षेत्र के लिए काम नहीं कर पा रहे हैं। अपनी पूरी जिंदगी पार्टी पर कुर्बान करने वाले नेताओं की यह भी टीस है कि उन्हें दरकिनार कर अनुभवहीन नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी दी जा रही है। मौजूदा वक्त में यह चर्चा गर्म है कि देश में आम चुनाव का बिगुल बजते ही ये नेता अपने काम पर लग जाएंगे। माना जा रहा है कि अपने सियासी अस्तित्व की रक्षा के लिए 'पांडव' अपनी सेना का गठन करेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि सियासी कुरुक्षेत्र में लड़े जाने वाले इस राजनीतिक युद्ध में कौन कृष्ण होगा और कौन अर्जुन।