अखाड़ा परिषद अध्यक्ष पद के लिए संगम नगरी में हुई बैठक, महंत रवींद्र पुरी को अध्यक्ष चुना गया

प्रयागराज : अखाड़ा परिषद अध्यक्ष पद के लिए संगम नगरी में हुई बैठक, महंत रवींद्र पुरी को अध्यक्ष चुना गया

अखाड़ा परिषद अध्यक्ष पद के लिए संगम नगरी में हुई बैठक, महंत रवींद्र पुरी को अध्यक्ष चुना गया

Google Image | Mahant Ravindra Puri

Prayagraj : अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद का चुनाव सोमवार को प्रयागराज में हुआ। संतों के सहमति से श्रीनिरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत रविंद्र पुरी को अखाड़ा परिषद का अध्‍यक्ष चुना गया। महंत नरेंद्र गिरि के ब्रह्मलीन होने के बाद जहां संतों की यह संस्था दो फाड़ हो चुकी है। वहीं अखाड़ों बीच में अंदरूनी वैमनस्यता भी उभरी है। संगमनगरी में हुई बैठक में महंत रवींद्र पुरी को 7 अखाड़ों की मौजूदगी और एक अखाड़े की लिखित सहमति के बाद अध्यक्ष चुन लिया गया है। देश भर के साधु संतों की नजर संगमनगरी में होने वाले फैसले पर टिकी रही।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्‍यक्ष का चुनाव
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष को चुनने की प्रक्रिया पूरी तरह से लोकतांत्रिक है। कुल तेरह अखाड़ों में आपसी सामंजस्य स्थापित करने के लिए 1954 में गठित अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में हर अखाड़े से दो-दो सदस्य होते हैं। हर अखाड़ा अपने सचिव व श्री महंत को परिषद के लिए नामित करता है। सभी तेरह अखाड़ों से कुल 26 सदस्य चुनाव में शामिल होते हैं, और अध्यक्ष का चुनाव हाथ उठाकर करते हैं। जिसके पक्ष में अधिक हाथ उठते हैं वह मनोनीत होता है। आखाड़ा परिषद अध्यक्ष रहे महंत नरेंद्र गिरि श्रीनिरंजनी अखाड़ा के सचिव थे, परंपरा के अनुसार जिस अखाड़े के महात्मा पद पर रहते हुए ब्रह्मलीन होते हैं, उसी अखाड़े का दूसरा महात्मा उसी पद पर आसीन होता है। ऐसी स्थिति में श्रीनिरंजनी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रवींद्र पुरी के अध्यक्ष बनने की प्रबल माना जा रहा है।

अध्यक्ष पद के लिए क्यों हुआ ये चुनाव?
20 सितंबर को अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत हो गई थी। पुलिस के मुताबिक उन्होंने आत्महत्या की थी। वहां मौके से एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ था, जिसमें आत्महत्या करने के लिए उकसाने वाली बात उसमें लिखी थी। नरेंद्र गिरि की मौत के बाद उनके शिष्य आनंद गिरि और लेटे हनुमान मंदिर के पूर्व पुजारी आद्या तिवारी व उनके बेटे संदीप तिवारी को गिरफ्तार किया गया था। अब सीबीआइ इस केस में जांच कर रही है। उनकी मौत के बाद से ही अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का पद खाली पड़ा था। संगम नगरी में सोमवार को निरंजनी अखाड़े में हुई इस बैठक में सात अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल हुए। वहीं निर्मोही अखाड़े ने महंत रवींद्र पुरी के नाम पर सहमति दी। इस चुनाव में तेरह अखाड़ों में से सिर्फ सात अखाड़े ही पहुंचे, जबकि एक ने लिखित सहमति दी।

कुछ अखाड़ों ने नई कार्यकारिणी गठित कर ली
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद महामंत्री महंत हरि गिरि ने 25 अक्टूबर को दारागंज स्थित श्रीनिरंजनी अखाड़ा आश्रम में बैठक बुलाई थी। इससे पहले ही 21 अक्टूबर को हरिद्वार में श्रीमहानिर्वाणी अखाड़ा परिसर में महानिर्वाणी तथा अटल, निर्मोही अनी, निर्वाणी अनी, दिगंबर अनी, बड़ा अखाड़ा उदासीन व निर्मल अखाड़ा ने नई कार्यकारिणी गठित कर ली। महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रवींद्र पुरी अध्यक्ष व निर्मोही अनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास महामंत्री चुने गए थे। जिसे अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरि ने मान्यता देने से इनकार कर दिया था।


अखाड़ा परिषद बनाया इसलिए गया था ताकि संत समाज के बीच अव्यवस्थाओं को दूर किया जा सके। अखाड़ा परिषद किसी भी अखाड़े के उनके अपने कामकाज में दखल नहीं देता। लेकिन परिषद उन पर पैनी नजर रखता है। अखाड़ा परिषद के कुछ काम प्रमुख माने जाते हैं।
  1. कुंभ मेलों को लेकर हर तरह की व्यवस्थाओं में अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष ही फैसला लेता है। उसी के सहयोग से ही मेले में अलग-अलग अखाड़ों को जगह और स्नान की व्यवस्था की जाती है।
  2. फर्जी बाबाओं पर कार्रवाई करने का काम अखाड़ा परिषद ही करता है। 2017 में 14 फर्जी बाबाओं की लिस्ट जारी की गई थी। इसमें रामपाल, आसाराम बापू और गुरमीत राम रहीम का नाम भी शामिल था।
  3. अखाड़ा परिषद अध्यक्ष किसी नए अखाड़े को मान्यता देना या किसी की मान्यता रद्द करने का काम भी करता है।

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