मेरठ के भाजपा नेता ने कहा- मैं किसी पार्टी में रहूं, मेरे नेता तो हमेशा 'नेताजी' ही रहेंगे

मुलायम सिंह यादव की यादें : मेरठ के भाजपा नेता ने कहा- मैं किसी पार्टी में रहूं, मेरे नेता तो हमेशा 'नेताजी' ही रहेंगे

मेरठ के भाजपा नेता ने कहा- मैं किसी पार्टी में रहूं, मेरे नेता तो हमेशा 'नेताजी' ही रहेंगे

Tricity Today | रक्षामंत्री रहते मुलायम सिंह यादव मेरठ आए थे। मेरठ के काली पलटन मंदिर में पूजा-अर्चना की थी। मुलायम सिंह के साथ पूजा का थाल लिए हुए गोपाल अग्रवाल हैं।

Meerut : मैं चाहे किसी भी पार्टी में रहूं लेकिन जीवन भर मुलायम सिंह यादव को ही अपना नेता मानता रहूंगा। सही मायनों में वह मुझे कभी नेता नहीं लगे, हमेशा ऐसा लगा कि जैसे हमारे परिवार के मुखिया हैं। हम उनके सामने कुछ भी बोल सकते थे। वह हमें धमका देते थे। जब उन्हें पता चलता था कि मैं उनसे रूठा हुआ हूं तो एकांत में बुलाकर मना लेते थे। यह सब आजकल की राजनीति में संभव नहीं है। मुलायम सिंह यादव का चले जाना बिल्कुल ऐसा ही है जैसे परिवार से किसी बड़े का चले जाना होता है। वह मुझसे 10 वर्ष बड़े थे।" मेरठ में खांटी समाजवादी नेता रहे गोपाल अग्रवाल फिलहाल भारतीय जनता पार्टी में है और मुलायम सिंह यादव को लेकर कुछ इसी तरह अपने भाव व्यक्त करते हुए भावुक हो जाते हैं। गोपाल अग्रवाल बताते हैं कि उन्होंने 1967 में राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में युवजन सभा को ज्वाइन किया था। उसी साल मुलायम सिंह यादव पहली बार विधायक बने थे। भले ही गोपाल अग्रवाल फिलहाल भारतीय जनता पार्टी में हैं, लेकिन उनका मुलायम सिंह यादव से अटूट रिश्ता बना रहा।

कोरे कागज पर एक लाइन लिखकर किताबों से टैक्स हटाया था
मुलायम सिंह यादव से जुड़े संस्मरण बताते हुए गोपाल अग्रवाल कहते हैं, "मेरा और नेताजी का साथ करीब 48 वर्षों तक चला। वह जब भी मेरठ आए, मेरी और उनकी मुलाकात होना अवश्यंभावी रहा। जब मुलायम सिंह यादव दूसरी बार चीफ मिनिस्टर बने तो उनकी सरकार ने किताबों पर टैक्स लगा दिया। मेरठ के किताब कारोबारियों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा था। किताब कारोबारी बेहद परेशान थे और इस टैक्स को खत्म करवाना चाहते थे। शहर के कारोबारियों और मेरे बीच चर्चा हुई। मैं किताब कारोबारियों को लेकर लखनऊ पहुंच गया। मैंने टेलीफोन करके नेताजी को बताया कि हम लोग लखनऊ आ गए हैं। उन्होंने कहा कि मैं 2:00 बजे 6 विक्रमादित्य मार्ग वाले सरकारी आवास पर मिलूंगा। आप सारे लोग वहीं पहुंच जाइए। दो बजे से कुछ पहले फिर नेता जी ने संदेश भिजवाया। उस वक्त तक मोबाइल फोन प्रचलन में नहीं आए थे। संदेश आया कि कोई जरूरी काम आ गया है। विदेशी डेलिगेशन मिलने आया है। अब मुलाकात में 4:00 या 5:00 बज सकते हैं। उन्होंने अपने राज्यमंत्री चंचल जी को भेजा। 

मुलायम सिंह यादव ने चंचल जी से कहा था कि सभी के खाने और बैठने का पूरा इंतजाम किया जाए। जब तक मैं उनसे मुलाकात करने आऊं तब तक उन्हें किसी भी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए। गोपाल अग्रवाल कहते हैं, "भला किसी मुख्यमंत्री को यह सब कहां याद रहता है, लेकिन मुलायम सिंह यादव इन छोटी-छोटी बातों का बहुत ख्याल रखते थे। देर शाम हम लोगों की मुलाकात मुलायम सिंह यादव से हुई।" किताब कारोबारियों ने उन्हें बताया कि आपकी सरकार ने किताबों पर टैक्स लगा दिया है। यह जानकर उन्हें बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने तत्काल अपने डे-ऑफिसर पीएल पुनिया को बुलाया। उनसे पूछा, क्या किताबों पर टैक्स लगाया गया है? पीएल पुनिया ने उन्हें सहमति में जवाब दिया। इस पर उन्होंने कहा कि यह तो बहुत गलत बात है। अगर किताबों पर भी टैक्स लगाया जाएगा तो कितना बुरा संदेश पब्लिक के बीच जाएगा। इसे तुरंत हटाइए। इस पर पीएल पुनिया ने जवाब दिया- इस मामले को पहले विधि विभाग और फिर वित्त विभाग को भेजकर परीक्षण करवाना होगा। तभी टैक्स हटाने का आदेश जारी किया जा सकता है। इस पर मुलायम सिंह यादव ने पीएल पुनिया से कहा- पूनिया साहब! एक कागज लेकर आओ। उस पर एक लाइन लिखो, किताबों की बिक्री से टैक्स तत्काल हटाया जाता है। मेरे दस्तखत करवा लो।

गोपाल कुमार बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव का यह रूप देखकर सारे किताब कारोबारी हक्के-बक्के रह गए। पीएल पुनिया थोड़ी देर में एक लाइन का यह पत्र बना कर लाए। जिस पर मुलायम सिंह यादव ने तत्काल हस्ताक्षर कर दिए। इसके बाद मुलायम सिंह यादव बोले- अब आप विधि विभाग और वित्त विभाग से परीक्षण करवाते रहना। मैंने किताबों से टैक्स हटा दिया है। गोपाल अग्रवाल कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव कहते थे कि अगर किसी को राहत देनी है तो वह तत्काल दी जानी चाहिए। अगर सांस लेने में कठिनाई हो रही है और समय पर ऑक्सीजन ना मिले तो आदमी मर सकता है। इसी तरह सरकार से दी जाने वाली राहत भी ऑक्सीजन का काम करती है।

जब युवाओं को शादी समारोह में फटकार लगाई
गोपाल अग्रवाल आगे बताते हैं, "एक बार मुलायम सिंह यादव मेरठ में एक शादी में आए थे। वर-वधु के लिए बनाए गए स्टेज के ठीक सामने मुलायम सिंह जी के लिए बैठने का इंतजाम किया गया था। उनका सोफा खाली था। जब वह कार्यक्रम में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि आसपास तमाम युवा कुर्सी और सोफे घेरकर बैठे हुए हैं। बुजुर्ग खड़े हुए थे। यह देखकर मुलायम सिंह ने युवाओं को फटकार लगाई। सबको कहा कि जल्दी फटाफट खड़े हो जाओ। तुम लोगों को इतना भी सहूर नहीं है कि बुजुर्ग खड़े हुए हैं और तुम लोग बैठे हुए हो। सारे युवाओं को खड़ा कर दिया और बुजुर्गों को बैठाया। गोपाल अग्रवाल कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव इन्हीं छोटी-छोटी बातों का बड़ा ख्याल रखते थे। जिससे पता चलता है कि वह कितने जमीन से जुड़े हुए थे। उन्हें समाज, लोक-लाज, रीति-रिवाज और बोलचाल का जितना अनुभव था। कोई दूसरा मुख्यमंत्री होता तो फटाफट स्टेज पर जाकर वर-वधू को आशीर्वाद देता और वहां से निकल जाता। कौन खड़ा था और कौन बैठा था, उससे उन्हें क्या फर्क पड़ता है।

मेरठ में चुनावी घोषणा का हलफनामा लिखकर दिया
साल 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव मेरठ शहर में प्रचार करने आए थे। गोपाल अग्रवाल कहते हैं कि हम लोगों ने उन्हें बताया कि 3/7 आवश्यक वस्तु अधिनियम से व्यापारी वर्ग बेहद नाखुश है। प्रशासन और पुलिस इसका दुरुपयोग करते हैं। व्यापारियों को बड़ी तकलीफ होती है। इस पर मुलायम सिंह यादव ने जनसभा के दौरान ऐलान कर दिया कि अगर उनकी सरकार बनी तो 3/7 आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म करेंगे। मैंने जनसभा के बाद उनसे सवाल किया, यह तो केंद्र का कानून है और संविधान की सातवीं अनुसूची के मुताबिक इसे आपकी सरकार को मानना पड़ेगा। आपने वादा तो कर दिया, लेकिन इसे पूरा कैसे करेंगे? इस पर मुलायम सिंह यादव ने जवाब में सवाल किया, गोपाल तुम्हें मेरी बात पर भरोसा नहीं है? मैंने उनसे कहा- नेताजी मुझे आपकी बात पर पूरा भरोसा है, लेकिन कानून की पेचीदगियों पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। ऊपर से लोग मानते हैं कि नेता तो चुनाव में आकर वादे करके चले जाते हैं। इस पर उन्होंने ने पूछा- और तुम्हारी इस बात का क्या समाधान है? मैंने जवाब दिया- आप लिखकर दे दो। नेताजी को हैरानी हुई, लेकिन उन्होंने तत्काल कहा- कागज पेंसिल लेकर आओ। मैं कागज और पेंसिल लेकर आया। उस पर लिख दिया, "अगर मेरी सरकार बनी तो पहली ही कैबिनेट की बैठक में 3/7 आवश्यक वस्तु अधिनियम को हटा दिया जाएगा।" उस पर नेता जी ने दस्तखत कर दिए।

गोपाल अग्रवाल कहते हैं, "जनता ने आशीर्वाद दिया और समाजवादी पार्टी की सरकार बन गई। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बन गए। हम लोग तो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। नेताजी ने कार्यभार संभालने के महज एक घंटे के भीतर अपने वादे को पूरा किया और 3/7 आवश्यक वस्तु अधिनियम से जुड़ी नियमावली में बदलाव कर दिया। जब मुझे इस बात का पता चला तो बेहद हैरानी हुई। हालांकि, बाद में मैं जब उनसे लखनऊ में मिला तो मैंने अपनी धृष्टता के लिए उनसे माफी की पेशकश की। मुलायम सिंह यादव ने बेहद सरल अंदाज में कहा- गोपाल! तुमने अपना काम किया और मैंने अपना काम कर दिया। इसमें माफी या नाराजगी का कोई सवाल ही नहीं है।

नाराजगी दूर करना तो उनके लिए चुटकी और पल भर का काम था
गोपाल अग्रवाल कहते हैं कि नेताजी के सामने हमें पूरी आजादी होती थी। ना केवल बात रखने की आजादी होती थी, बल्कि नाराजगी व्यक्त करने की भी आजादी होती थी। एक बार नेता जी को पता चला कि मैं उनसे किसी बात को लेकर नाराज हूं। उनकी और मेरी मुलाकात लखनऊ हवाईअड्डे पर हो गई। वह मुझे अलग कमरे में लेकर गए और पूछा- तुम किस बात पर नाराज हो? कुल मिलाकर ऐसे तमाम किस्से और कहानियां हैं, जो यह बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव कितने दिलदार नेता थे। गोपाल अग्रवाल कहते हैं, "मैं नेताजी से करीब 10 साल छोटा हूं। मैंने उनके साथ 48 वर्षों तक काम किया है। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी का उद्भव हुआ। मैं वैश्य समाज से हूं। वैश्य समाज पूरी तरह भारतीय जनता पार्टी के साथ खड़ा रहता है। इसके बावजूद समाजवादी पार्टी में मेरा वजूद, कद और अहमियत कभी नेताजी ने कमतर नहीं समझी। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार नेताजी मेरठ किसी कार्यक्रम में आए थे। वह जिस कमरे में बैठे थे, वहां लाइट बेहद मंद थी। मैं भी चुपचाप जाकर एक कोने में बैठ गया। जिस कोने में बैठा हुआ था, वहां लाइट और भी कम थी। लिहाजा, नेता जी मुझे नहीं देख पाए। शाहिद मंजूर और तमाम दूसरे नेता उस कमरे में बैठे हुए थे। सभी लोग बातें कर रहे थे। बहस चल पड़ी कि समाजवादी पार्टी में कौन कितना पुराना है। सब खुद को एक-दूसरे से पुराना बता रहे थे। तभी शाहिद मंजूर ने कहा- मुझे लगता है कि सबसे पुराने तो गोपाल अग्रवाल हैं। यह सुनते ही मुलायम सिंह यादव तपाक से बोले- हां वह सबसे पुराना है, लेकिन यहां तो वह नहीं है। इस पर मैंने कहा- नेताजी में यहीं बैठा हूं। वह बोले तुम अंधेरे में क्यों बैठे हो? यहां आओ, मेरे पास। मैं उठ कर खड़ा हो गया। कुर्सी खाली नहीं थी। इस पर नेताजी बोले- मेरे सोफे का हत्था बहुत बड़ा है। इस पर आराम से बैठ सकते हो। आओ मेरे पास आकर यहां बैठो।

ईश्वर का आशीर्वाद है, जो ऐसे विशाल व्यक्तित्व के साथ काम किया
गोपाल अग्रवाल भावुक भाव मे कहते हैं, "यह सारी बातें हैं, जो उनके विशाल समाजवादी व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती हैं। मेरे दादाजी शहीद-ए-आजम भगत सिंह के साथ फ्रीडम मूवमेंट में काम कर चुके थे। मैंने सरदार भगत सिंह को बड़ी गहराई से पढ़ा है। यही वजह रही कि मेरी भावनाएं समाजवाद, मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के प्रति बेहद आस्था वाली रही हैं। इसी वजह से लंबे अरसे तक समाजवादी पार्टी में काम करता रहा।" गोपाल अग्रवाल आखिर में अपनी बात फिर दोहराते हैं और वह कहते हैं, "मैं चाहे किसी भी पार्टी में रहूं लेकिन मेरे लिए मेरे नेता हमेशा नेताजी ही रहेंगे। अब आप देखिए, दक्षिण भारत में नेताओं के अंतिम यात्रा के पीछे भारी भीड़ उमड़ना आम बात है। उत्तर भारत में ऐसा कभी नहीं होता है। आज नेताजी के अंतिम संस्कार के वक्त उनके पीछे बेतहाशा भीड़ थी। लोग फूट-फूट कर रो रहे थे। कल तमाम टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो की बाढ़ आ गई थी। दरअसल, मुलायम सिंह यादव ने ना जाने कितने लोगों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भला किया है। उनके जैसे बड़े नेता दशकों में नहीं, शताब्दियों में पैदा होते हैं। हमारा सौभाग्य है और पूर्व जन्म के संस्कार हैं कि आधी शताब्दी तक ऐसे महान व्यक्तित्व के साथ काम करने का ईश्वर ने मौका दिया।

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