Mulayam Singh Yadav : "नाम से नेताजी और इरादे हैं लोहा" यह शब्द मुलायम सिंह यादव के लिए हैं। मुलायम सिंह देश की राजनीति में काफी ऊंचा दर्जा रखते हैं। राजनीति से पहले मुलायम सिंह यादव कुश्ती लड़ा करते थे। मुलायम सिंह अपनी क्लास और परीक्षा छोड़कर कुश्ती लड़ने जाया करते थे। नेताजी की जिंदगी आसान नहीं थी। उनके जीवन के अनेक किस्से हैं, जो हमेशा के लिए यादगार बन गए हैं। कभी उन्होंने दरोगा की अकड़ को मंच पर पटका तो कभी काशीराम के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी को पटखनी दी। एक बार उनके ऊपर जानलेवा हमला हुआ तो मुलायम ने कार्यकर्ताओं से कहा, "चिल्लाओ नेताजी मर गए।"
ऐसे हुआ था हमला
4 मार्च 1984 दिन रविवार भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन था। नेताजी की इटावा और मैनपुरी में रैली थी। रैली के बाद वो मैनपुरी में अपने एक दोस्त से मिलने गए। दोस्त से मुलाकात के बाद वो एक किलोमीटर ही चले थे कि उनकी गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। गोली मारने वाले छोटेलाल और नेत्रपाल नेताजी की गाड़ी के सामने कूद गए।
करीब आधे घंटे तक चली गोलियां
करीब आधे घंटे तक छोटेलाल, नेत्रपाल और पुलिसवालों के बीच फायरिंग चलती रही। छोटेलाल नेताजी के ही साथ चलता था, इसलिए उसे पता था कि वह गाड़ी में किधर बैठे हैं। यही वजह है कि उन दोनों ने 9 गोलियां गाड़ी के उस हिस्से पर चलाईं, जहां नेताजी बैठा करते थे, लेकिन लगातार फायरिंग से ड्राइवर का ध्यान हटा और उनकी गाड़ी डिस्बैलेंस होकर सूखे नाले में गिर गई। नेताजी तुरंत समझ गए कि उनकी हत्या की साजिश की गई है। उन्होंने तुरंत सबकी जान बचाने के लिए एक योजना बनाई।
सोचा कि नेताजी मर गए
उन्होंने अपने समर्थकों से कहा, "जोर-जोर से चिल्लाओ नेताजी मर गए। उन्हें गोली लग गई, नेताजी नहीं रहे।’ जब नेताजी के सभी समर्थकों ने ये चिल्लाना शुरू किया तो हमलावरों को लगा कि नेताजी सच में मर गए। उन्हें मरा हुआ समझकर हमलावरों ने गोलियां चलाना बंद कर दीं और वहां से भागने लगे, लेकिन पुलिस की गोली लगने से छोटेलाल की उसी जगह मौत हो गई और नेत्रपाल बुरी तरह घायल हो गया। इसके बाद सुरक्षाकर्मी नेताजी को एक जीप में 5 किलोमीटर दूर पुलिस स्टेशन तक ले गए।