मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर उत्तर प्रदेश के पौराणिक एवं ऐतिहासिक तीर्थ स्थल चित्रकूट में भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पहुंची। चित्रकूट के भरतकूप स्थित कुएं में गुरुवार को दो लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने स्नान किया और खिचड़ी तथा अन्न का दान किया। गुरुवार को यहां सूयोर्दय से पहले ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जमा हो गई थी। बताते चलें कि समूचे संसार में किसी भी कुएं में एक दिन में इतने श्रद्धालुओं का एक साथ स्नान करना एक विश्व रिकॉर्ड है। चित्रकूट के भरतकूप का कुआं धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक खास माना गया है।
भरतकूप विश्व का इकलौता ऐसा कुआं है, जहां हर साल मकर संक्रांति के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र होकर स्नान-दान करते हैं। पौराणिक मान्यता के मुताबिक, जब भरत वनवास काल के दौरान भगवान राम को वापस अयोध्या ले जाने चित्रकूट आए थे, तो अपने साथ समस्त तीर्थों का जल एक कलश में ले कर आए थे। भरत चाहते थे कि प्रभु श्रीराम का वहीं पर राज्याभिषेक कर, उन्हें राजा की तरह वापस अयोध्या ले जाएं। पर श्रीराम ने वनवास काल पूरा किए बिना वापस लौटने से इनकार कर दिया था। तब अत्रि मुनि ने उस पवित्र जल को चित्रकूट के पास एक कुएं में मंत्रोच्चारण के साथ विसर्जित करा दिया था। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने इसका उल्लेख किया है। तुलसीदास ने लिखा है –
मान्यता है कि वह पवित्र जल आज भी इस कुएं में सुरक्षित है। तब से इस कुएं का नाम भरतकूप पड़ गया। लोक मान्यता के मुताबिक इस कुएं का जल कभी खराब नहीं होता। जैसे लोग गंगा जल को अपने घर ले जाते हैं, उसी तरह इस कुएं के जल को भी लोग पवित्र मानते हैं और घर ले जाते हैं। मान्यता है कि इस कुएं का जल कभी खराब नहीं होता है। एक और मान्यता इस कुएं के जल को खास बनाती है। माना जाता है कि इस कुएं के हर कोने में पानी का स्वाद अलग होता है। मतलब कुएं के जिस हिस्से से पानी निकाला जाता है, उसका टेस्ट अलग रहता है।
इस मिथक को विज्ञान की कसौटी पर परखने के लिए सरकारी प्रयास भी किया गया। चित्रकूट के तत्कालीन जिलाधिकारी जगन्नाथ सिंह ने इस कुएं के चारों कोने से जल निकलवाकर लैब में टेस्ट भी करवाया था। लैब रिपोर्ट में भी माना गया था कि हर कोने का पानी अलग है। चित्रकूट के संत श्री राजकुमार दास जी कहते हैं, “इस कुएं में कभी-कभी समुद्र की तरह लहरें भी उठती है। इस कुएं के जल के बारे बहुत सारी मान्यताएं हैं। अगर किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करनी होती है, तब शास्त्रानुसार उस मूर्ति को स्नान कराने के लिए समस्त तीर्थों के जल की जरूरत पड़ती है। तब लोग इस कुएं के जल का उपयोग करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस कुएं में सारे तीर्थों का जल शामिल है।“ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ने व्यापक इंतजाम किया है।