नवम्बर में रखी जाएगी नींव, जेवर एयरपोर्ट के साथ काम पूरा होगा

फ़िल्म सिटी BREAKING : नवम्बर में रखी जाएगी नींव, जेवर एयरपोर्ट के साथ काम पूरा होगा

नवम्बर में रखी जाएगी नींव, जेवर एयरपोर्ट के साथ काम पूरा होगा

Tricity Today | Film City

यमुना प्राधिकरण के सेक्टर-21 में एक हजार एकड़ में फिल्म सिटी बनाई जाएगी। इसमें 780 एकड़ में फिल्म सिटी व 220 एकड़ में वाणिज्यिक गतिविधियां विकसित की जाएंगी। शासन ने फिल्म सिटी के विकास के लिए यमुना प्राधिकरण को नोडल एजेंसी बनाया था। यमुना प्राधिकरण ने इसकी फिजिबिलिटी रिपोर्ट और डीपीआर बनाने की जिम्मेदारी इसी साल 8 जनवरी को सीबीआरई कंपनी को दी थी। 

कंपनी ने डीपीआर बनाते समय देश-विदेश की फिल्म सिटी का अध्ययन किया ताकि कोई पहलू छूट ना जाए। कंपनी ने आयरलैंड की फिल्म सिटी और हैदराबाद की रामोजी फिल्म स्टूडियो का भी अध्ययन किया। इसमें मथुरा-वृंदावन की सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत का भी अध्ययन किया है। कंपनी ने मंगलवार ने यह रिपोर्ट यमुना प्राधिकरण को सौंप दी। प्राधिकरण ने यह रिपोर्ट मंगलवार शाम को शासन को भेज दी है। 

यमुना प्राधिकरण शासन की अनुमति मिलने के बाद आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) तैयार करवाएगा। यह काम सीबीआरई कंपनी करेगी। यही कंपनी ग्लोबल टेंडर जारी करेगी। इसके जरिये विकासकर्ता कंपनी का चयन किया जाएगा। अक्टूबर तक विकासकर्ता का चयन हो जाएगा और नवंबर में निर्माण कार्य शुरू कराने का लक्ष्य तय किया गया है। फिल्म सिटी दो चरणों में विकसित करने की तैयारी है। इसका पहला चरण 2024 में जेवर एयरपोर्ट के साथ शुरू करने का लक्ष्य है। यहां पर विश्वस्तरीय फिल्म स्टूडियो, फिल्म इंस्टीट‘यूट बनाए जाएंगे। ओपन एरिया होगा। यहां शूटिंग के लिए बस  अड‘डा, रेलवे स्टेशन व रनवे बनाया जाएगा। 

फिल्म सिटी को पीपीपी मॉडल पर विकसित किया जाना है। यह पूरी परियोजना 6000 करोड़ रुपए से अधिक में मूर्त रूप लेगी। रिपोर्ट बताती है कि इस योजना से पैसा वापस निकालने में 40 से 60 वर्ष तक का समय लग सकता है। इसलिए विकासकर्ता कंपनी को 40 से 60 साल के बीच का समय दिया जाएगा। ताकि विकासकर्ता कंपनी अपनी लागत निकाल सके। इसमें यमुना प्राधिकरण को भी पैसा मिलेगा। 



फिल्म सिटी की रिपोर्ट बनाने वाली कंपनी ने फिजिबिलिटी रिपोर्ट में तीन मॉडल सुझाए हैं। इससे होने वाली आमदनी में यमुना प्राधिकरण व राज्य सरकार को हिस्सा देगी। पहला मॉडल यह है कि विकासकर्ता कंपनी एक निश्चित किराया प्राधिकरण को हर साल दे। दूसरे मॉडल में बताया गया है कि परियोजना से होने वाली आमदनी में हिस्सेदारी तय हो। तीसरा मॉडल को हाइब्रिड मॉडल बताया गया है। इसमें वार्षिक किराया और आमदनी में हिस्सेदारी दोनों को रखा गया है।

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