दूसरे चरण के किसानों ने कहा- पुनर्वास के पूरे इंतजाम होने के बाद होंगे विस्थापित, प्रशासन ने जनसुनवाई टाली

जेवर एयरपोर्ट BREAKING : दूसरे चरण के किसानों ने कहा- पुनर्वास के पूरे इंतजाम होने के बाद होंगे विस्थापित, प्रशासन ने जनसुनवाई टाली

दूसरे चरण के किसानों ने कहा- पुनर्वास के पूरे इंतजाम होने के बाद होंगे विस्थापित, प्रशासन ने जनसुनवाई टाली

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Gautam Buddh Nagar : नोएडा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट (Noida International Airport) परियोजना के दूसरे चरण के लिए विस्थापित होने वाले किसानों ने प्रशासन से पुनर्वास प्रक्रिया की स्पष्ट योजना की मांग की है। साथ ही जमीन देने वाले किसानों को किस तरह से लाभ दिया जाएगा, उसके बारे में भी विस्तार से समझाने के लिए कहा है। ये सभी किसान पहले चरण के विस्थापन के बाद प्रभावित लोगों को होने वाली मुश्किलों से अच्छी तरह परिचित हैं। दूसरी तरफ प्रशासन ने आज होने वाली सुनवाई को भी टाल दिया है। 

गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की टीम ने सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट बीते दिनों ही प्रशासन को सौंपी थी। इसमें प्रशासन ने कुछ और विवरण मांगे हैं। सरकार ने एसआईए रिपोर्ट की जांच और मूल्यांकन के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के 7 एक्सपर्ट की एक समिति भी नियुक्त की है। एनटीपीसी के सेवानिवृत्त इंजीनियर और रणहेड़ा गांव के रहने वाले कुंवर पाल सिंह (65 वर्ष) पैनल में हैं। उन्होंने बताया, परियोजना के दूसरे चरण के लिए कुछ 3,800-4,000 परिवारों को विस्थापित होना पड़ेगा। 

वादे पूरे नहीं हुए
करौली बांगर, दयानतपुर, कुरेब, रनहेरा, मुंधेरा और बेरामपुर गांवों के किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा। इन छह गांवों में से अधिकांश भूमि रणहेड़ा से अधिग्रहित की जाएगी। इसकी आबादी भी सबसे अधिक है। पहले चरण में अपनाई गई पुनर्वास योजना का ग्रामीणों ने विरोध किया है। उन्होंने यह भी बताया है कि नियाल में नौकरी देने का वादा करने के बावजूद कई युवाओं को अभी तक कोई प्रशिक्षण या रोजगार पत्र नहीं मिला है। 

जेवर बांगर, बस्ती नहीं बन सका
उन्होंने आगे कहा, “हमने देखा है कि पहले चरण में विस्थापित हुए 3,000 परिवारों का क्या हुआ। स्थानीय प्रशासन ने उन्हें न्यूनतम लाभ दिया है। दूसरे चरण में, इसे बेहतर करना होगा।” करौली बांगड़ के एक अन्य ग्रामीण ने भी ऐसी ही आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “कोई भी जेवर एयरपोर्ट परियोजना के खिलाफ नहीं है। हम सभी कृषि भूमि छोड़ने को तैयार हैं। लेकिन हमारे लिए गांव से बाहर निकलना आसान नहीं है। हमारे पास जानवर हैं, कृषि के संसाधन हैं। हमारी अपनी जीवनशैली है। जेवर बांगर बस्ती ग्रामीण या शहरी बस्ती कहलाने के लायक नहीं है। न ही वहां गांवों जैसा माहौल है, न ही शहरों जैसी सुविधाएं। हम वही भाग्य नहीं चाहते हैं।

प्रयास कर रहे हैं
अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (भूमि अधिग्रहण) बलराम सिंह ने कहा, “ग्रामीणों की शिकायतों पर गौर किया जा रहा है। हमने उन्हें वरिष्ठ अधिकारियों के साथ साझा किया है। जेवर बांगर में संसाधनों को बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं। वर्तमान में सड़कों को चौड़ा किया जा रहा है और परिवारों द्वारा मांगे गए अन्य ढांचागत कार्यों पर गौर किया जा रहा है। हमारा मकसद हर विस्थापित निवासी को सुविधाएं उपलब्ध कराना है। 

ये रहीं कुछ मांगें - 
-प्रभावित किसानों ने कहा है कि उनके विस्थापन, पुनर्वास और उन्हें मिलने वाले लाभ से जुड़ी सारी जानकारी उन्हें दी जाए। 
-उन्हें उचित लाभ दिया जाए, न की न्यूनतम देकर विस्थापित कर दिया जाए।
-सभी ग्रामीणों को उनके मौजूदा घर के साइज के बराबर प्लॉट दिया जाए।
-मुआवजे के तौर पर उन्हें सर्किल रेट से 4 मुआवजा दिया जाए।
-प्रभावित परिवारों के सदस्यों और युवाओं को नौकरी दी जाए।
-सर्वे में मवेशियों उनके पुनर्वास और उनके ट्रांसपोर्टेशन को भी शामिल किया जाए।
-मुआवजे की राशि पर 12 प्रतिशत का वार्षिक ब्याज दिया जाए।

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