Tricity Today | लकड़ी के खिलौने बने आकर्षण का केंद्र
Greater Noida News : देश-विदेश में पारंपरिक भारतीय खिलौनों की मांग बढ़ी है। ग्रेटर नोएडा के एक्सपो मार्ट में चल रहे खिलौना-इंडिया टॉयज एंड गेम्स फेयर 2023 दो संस्करण में इस बात का गवाह बना है। फेयर में प्लास्टिक के खिलौनों की बजाए लकड़ी से बने खेलने के सामान का क्रेज बढ़ रहा है। इसमें चित्रकूट और बनारस के कारीगरों के लकड़ी के खिलौने आकर्षण का केंद्र बने हैं। गुलेल, तीर-धनुष, लट्टू जैसे पारंपरिक खिलौनों के साथ लकड़ी का बुलडोजर भी मेले में है। साथ ही खेलने के लिए लकड़ी से कई सामान भी प्रदर्शित किए गए हैं।
बच्चों को मोबाइल से दूर रखने में सक्षम खिलौने
ईपीसीच के वाइस चेयरमैन डॉ. नीरज खन्ना ने बताया कि आज के दौर में प्लास्टिक की बजाए लकड़ी के साउंड वाले खिलौने तैयार किए जा रहे हैं, जिससे बच्चों को खिलौनों में म्यूजिक भी सुनाई दे। बच्चे इन खिलौनों के जरिए मोबाइल और लैपटॉप का एहसास कर सकेंगे। कारीगरों द्वारा लकड़ी के लैपटॉप, ड्रम, कार्टून वाली टेबल, डमरू आदि तैयार किए जा रहे हैं। लकड़ी के खिलौनों को कैसे पसंद करें, इस पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जिसके चलते साउंड वाले इको फ्रेंडली लकड़ी के खिलौने तैयार किए जा रहे हैं। हर छोटे से छोटे खिलौने से खेलते समय कैसे आवाज आए, उस पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। जिससे कि बच्चे म्यूजिक से जुड़े खिलौनों को पसंद कर सकें। लकड़ी की डिमांड अधिक
गुजरात से आए वूडली कंपनी के फाउंडर अंकित पोकर ने बताया कि देश के साथ ही विदेशों में लकड़ी के खिलौनों की काफी मांग बढ़ रही है। अमेरिका, यूरोप सबसे बड़ा बाजार है। इसके अलावा अन्य देशों में भी लकड़ी के खिलौने काफी पसंद किए जा रहे हैं। भारतीय कारीगरों के हाथ से बने लकड़ी के खिलौने विदेशियों को खूब पसंद आते हैं। बच्चों को प्लास्टिक के खिलौने देने की बजाए उन्हीं खिलौनों को लड़की के रूप में बदला है। इसमें बच्चों के लिए मैकेनिकल टूल टेबल, कंस्ट्रक्शन साइट, फायर स्टेशन और डॉल हाउस भी बनाया है, जिससे बच्चे काफी कुछ सिख सकते हैं। प्लास्टिक बच्चों के लिए हानिकारक होते हैं, लेकिन लकड़ी से खेलना बच्चों के लिए फायदेमंद होता है।
विलुप्त होते जा रहे हैं लकड़ी के खिलौने
चित्रकूट के प्रदर्शकों ने भी लकड़ी के खिलौनों के स्टाल लगाए हैं। इनमें लकड़ी का धनुष, लट्टू, हाथ से बजाने वाले तमाम तरह के खिलौने प्रदर्शित किए गए हैं। चित्रकूट के प्रदर्शकों ने बताया कि उनके बच्चे इन खिलौनों को बनाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। युवा पीढ़ी लकड़ी के खिलौने को बनाना नहीं सीखना चाहती है। इसके साथ नई पीढ़ी के बच्चों से लकड़ी का खिलौना दूर होता जा रहा है। यदि युवा पीढ़ी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो यह खिलौने पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगे। धागे से बने खिलौनों को बनाने में लगता है अधिक समय
मेले में एक स्टाल हैपी थ्रेड्स का है। इसमें केवल धागे से बने खिलौने हैं। इसमें छोटे बच्चों के लिए अधिक खिलौने हैं। धागे से बने खिलौने अधिक महंगे हैं। हैपी थ्रेड्स की मार्केटिंग एग्जीक्यूटिक रुकैया बताती हैं कि इन खिलौनों को बनाने में अधिक समय लगता है। अधिकतर काम महिलाएं करती हैं। इन खिलौनों की मांग रहती है। दरअसल, इनसे बच्चों को चोट आदि लगने का डर नहीं रहता है।
बिना पेंच के बनाते हैं खिलौने
स्मार्टविटी कंपनी ने भी अपना स्टाल लगाया है। कंपनी का दावा है कि उनके खिलौनों में पेंच का इस्तेमाल नहीं होता है। पेंच लगने से बच्चों को चोट लगने का डर रहता है। इसलिए पेंच नहीं लगाए जाते हैं। इसमें हाथनुमा एक खिलौना बहुत बेहतर है। इससे बच्चे खेल सकते हैं और उनके हाथ की एक्सरसाइज भी होती है।