भारत के लिए निर्यात होगा आसान और सस्ता, यूरोप तक होगी सीधी पहुंच

इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर : भारत के लिए निर्यात होगा आसान और सस्ता, यूरोप तक होगी सीधी पहुंच

भारत के लिए निर्यात होगा आसान और सस्ता, यूरोप तक होगी सीधी पहुंच

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New Delhi : दिल्ली में G-20 समिट के बाद भारतीय इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल इंडिया (EEPC India) ने सोमवार को कहा कि जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रस्तावित भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारा एक गेम-चेंजर परियोजना साबित होगी। यह वैश्विक व्यापार इंजीनियरिंग निर्यात को भारी गति देगी। बता दें, समिट में इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा (IECC EC) बनाने की घोषणा की गई। इसमें भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय यूनियन सहित कुल 8 देशों के इस प्रोजेक्ट का फायदा इजरायल और जॉर्डन को भी मिलेगा।

मिडिल ईस्ट और यूरोप दोनों प्रमुख बाजार
बताया जा रहा है कि यह इकोनॉमिक कॉरिडोर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को और अधिक लचीला बनाएगा। इस परियोजना का उद्देश्य भारत को समुद्र और बंदरगाह के जरिए मिडिल ईस्ट के रास्ते से यूरोप से जोड़ना है। इससे भारत के इंजीनियरिंग निर्यात क्षेत्र के लिए मिडिल ईस्ट और यूरोप दोनों प्रमुख बाजार हैं। इस पैमाने का यहां परिवहन बुनियादी ढांचा होने से वैश्विक स्तर पर इसकी प्रतिस्पर्धा में काफी बढ़ोत्तरी होगी।

कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी
इस परियोजना में भारतीय निवेश से आर्थिक गतिविधियों को काफी बढ़ावा मिलेगा। नई नौकरियों के अवसर पैदा होंगी और सबसे जरूरी बात यह है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी। बता दें कि 9 सितंबर को ही भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ ने भारत-मिडिल ईस्ट और यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IECC EC) स्थापित करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किया।

चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विकल्प
मुंबई से शुरू होने वाला यह नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विकल्प होगा। यह कॉरिडोर 6 हजार किमी लंबा होगा। इसमें 3500 किमी समुद्र मार्ग शामिल है। कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40% समय की बचत होगी। अभी भारत से किसी भी कार्गो को शिपिंग से जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं, इस रूट से 14 दिन की बचत होगी। यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए आयात-निर्यात आसान और सस्ता होगा।

भारत क्यों जुड़ा प्रोजेक्ट से, यह रही वजह

1 सबसे पहले भारत और अमेरिका इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन पहली बार दोनों मिडिल ईस्ट में साझेदार बने हैं। 
2 भारत की मध्य एशिया से जमीनी कनेक्टिविटी की सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान का तोड़ मिल गया है। वह 1991 से इस प्रयास को रोकने की कोशिश कर रहा था।
3 भारत के ईरान के साथ संबंध सुधरे हैं, लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण ईरान से यूरेशिया तक के रूस-ईरान कॉरिडोर की योजना प्रभावित होती जा रही है।
4 अरब देशों के साथ की भागीदारी बढ़ी है, UAE और सऊदी सरकार भी भारत के साथ स्थायी कनेक्टिविटी बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
5 अमेरिका को उम्मीद है कि इस मेगा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट से अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक स्थिरता आएगी और संबंध सामान्य हो सकेंगे।
6 यूरोपीय यूनियन ने 2021-27 के दौरान बुनियादी ढांचे के खर्च के लिए 300 मिलियन यूरो निर्धारित किए थे। भारत भी इसका भागीदार बना।
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नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प है। कई देशों के चीन के कर्ज जाल से मुक्ति मिलेगी। जी-20 में अफ्रीकी यूनियन के भागीदार बनने से चीन और रूस के अफ्रीकी देशों में बढ़ती दादागीरी को रोकने में सहायता मिलेगी।

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