Ghaziabad News : केंद्र सरकार के सहयोग से मातृत्व स्वास्थ्य के लिए सूबे की सरकार खूब प्रयास कर रही है। लेकिन धरातल स्थिति यह है कि सुरक्षित मातृत्व के लिए चल रहीं तमाम योजनाएं गाजियाबाद में बेमानी साबित हो रही हैं। असल स्थिति यह है कि ये तमाम योजना लाभार्थियों को ढूंढती फिर रही हैं और लाभार्थी अस्पतालों के चक्कर काटने का मजबूर हैं। ताजा मामला मुरादनगर निवासी नरगिस का है। चार दिन तक प्रसव पीड़ा के चलते नरगिस जिला महिला अस्पताल के चक्कर काटती रही और फिर रविवार को उसे दिल्ली के जीटीबी अस्पताल रेफर कर दिया गया। यह नौबत तक आई जब महिला पहले ही जिला महिला अस्पताल से उपचार करा रही थी।
गुरुवार को पहुंची थी नरगिस
नौ माह की गर्भवती मुरादनगर के नूरगंज निवासी चांद मोहम्मद की पत्नी नरगिस प्रसव पीड़ा होने पर गुरुवार को जिला महिला अस्पताल पहुंची थी। अस्पताल में डाक्टरों ने परीक्षण किया। बीपी बढ़ा हुआ मिला। चिकित्सक ने बीपी की दवा लिख दी और घर भेज दिया। शुक्रवार को नरगिस ने फिर जिला महिला अस्पताल पहुंचकर अपना चेकअप कराया, बीपी सामान्य मिला। हीमोग्लाबिन भी ठीक बताया गया और शनिवार को सिजेरियन डिलीवरी के लिए समय देकर चिकित्सक ने नरगिस को फिर घर भेज दिया।
शनिवार को भी दिन भर बैठाए रखा
शनिवार को सुबह 11 बजे चांद मोहम्मद अपनी पत्नी को लेकर अस्पताल पहुंच गए। पूरे दिन अस्पताल में बैठाकर रखने के बाद चिकित्सकों ने नरगिस को शाम को फिर यह कहकर टरका दिया अब ऑपरेशन सोमवार को होगा। नरगिस फिर अपने घर चली गई। रविवार को असहनीय प्रसव पीड़ा होने पर चांद फिर अपनी पत्नी को लेकर अस्पताल पहुंचा।
अल्ट्रासाउंड के लिए भटकती रही गर्भवती
अस्पताल में मिली चिकित्सक ने बाहर से अल्ट्रासाउंड कराने के लिए लिख दिया। चांद का कहना है कि अल्ट्रासाउंड सेंटर खुला न मिलने से उन्हें काफी देर भटकना पड़ा। शाम को चार बजे डयूटी पर तैनात चिकित्सक ने नरगिस को गंभीर हालत में दिल्ली के जीटीबी अस्पताल रेफर कर दिया। मामले में जिला महिला अस्पताल की सीएमएस डा. अलका शर्मा ने जांच की बात कही है।
क्या है व्यवस्था
मातृत्व स्वास्थ्य को लेकर केंद्र और प्रदेश सरकार गंभीर हैं लेकिन स्वास्थ्य विभाग की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) में प्रसव पूर्व जांच कर हाई रिस्क प्रेगनेंसी (एचआरपी) चिन्हित करते हुए चिकित्सकीय प्रबंधन की व्यवस्था। मतलब, एचआरपी चिन्हित होने पर विभाग फालोअप करेगा। संबंधित आशा ऐसी गर्भवती के लगातार संपर्क में रहेगी और जरूरत पड़ने पर तत्काल एंबुलेंस उपलब्ध कराएगी और अस्पताल में भर्ती कराने की व्यवस्था करेगी।
नरगिस के मामले में क्या हुआ?
सिजेरियन केस होने के बावजूद नरगिस को चार दिन तक अस्पताल के चक्कर लगवाए गए और हालत बिगड़ने पर दिल्ली को रेफर कर दिया गया। यह कहानी जो पर्दे पर आई है, गर्भवती को चार दिन तक भर्ती क्यों नहीं किया गया? ईमानदारी से मामले की जांच होगी तो पर्दे के पीछे की कहानी भी सामने आ सकेगी।