Tricity Today | शिवरात्रि पर दूधेश्वरनाथ मंदिर में महंत नारायण गिरि, यति नरसिंहानंद सरस्वती और डा. उदिता त्यागी
Ghaziabad News : यति संन्यासिंयों के साथ डासना देवी मंदिर पहुंचीं पूर्व मिसेज इंडिया (वर्ल्ड वाइड) डा. उदिता त्यागी ने जलाभिषेक कर विश्व धर्म संसद के सफल होने की कामना की। उन्होंने कहा जिहाद से लड़ने के लिए हर सनातनी को अपना परिवार बड़ा और मजबूत करना होगा। इस अवसर पर डा. त्यागी ने हिंदू दंपति को अधिक बच्चे पैदा करने का संकल्प दिलाने की बात कही। वे स्वयं एक लाख दंपति को यह संकल्प दिलाएंगी। इस कार्य को उन्होंने अपने जीवन का पहला लक्ष्य बताया।
डासना देवी मंदिर में शिव परिवार की स्थापना
कांवड़ यात्रा संपन्न कर यति संन्यासियों ने डासना देवी मंदिर में पंच धातु शिव परिवार की स्थापना की। अलीगढ़ में तैयार कराए गए शिव परिवार के साथ यति संन्यासी हरिद्वार से कांवड़ लेकर पैदल गाजियाबाद पहुंचे हैं। संन्यासियों के साथ हरिद्वार से कांवड़ यात्रा कर लौटीं पूर्व मिसेज इंडिया डा. उदिता त्यागी ने भी पूजा अर्चना की। डासना देवी मंदिर में इस मौके पर महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद महाराज, यति रणसिंहानंद, यति अभयानंद, यति परमात्मानंद और यति सत्यदेवानंद के अलावा मोहित बजरंगी, सिकंदर शर्मा, अजय सिरोही और सनोज शास्त्री आदि मुख्य रूप से मौजूद रहे।
पहले दूधेश्वरनाथ मंदिर पहुंचे यति सन्यासी
सभी यति संन्यासियों के साथ डा. उदिता त्यागी इससे पूर्व दूधेश्वरना मंदिर पहुंचीं। डा. उदिता ने दूधेश्वरनाथ मंदिर के महंत नारायण गिरि और महामंडेलश्वर यति नरसिंहानंद सरस्वती समेत अन्य सन्यासियों के साथ भगवान दूधेश्वर का जलाभिषेक किया। इस मौके पर महंत नारायण गिरि ने जिहाद को समाज के लिए कैंसर की संज्ञा देते हुए कहा कि जिहाद के खिलाफ पूरी दुनिया को एक होना चाहिए। इस मौके पर सभी ने सामुहिक रूप से इस्लामिक जिहाद को वैचारिक रूप से समाप्त करने का संकल्प भी लिया।
भोले केभक्तोंनेकियाजलाभिषेक
श्रावण शिवरात्रि के मौके देश के विभिन्न स्थानों से आए भोले के भक्तों ने जलाभिषेक किया। शिवरात्रि का जलाभिषेक शुक्रवार दोपहर बाद शुरू हुआ, जो शनिवार दोपहर बाद तक जारी रहेगा। इससे पहले शिव भक्तों ने त्रयोदशी का जल चढ़ाया। दूधेश्वरनाथ मंदिर परिसर पूरे दिन हर हर महादेव के जयकारों से गुंजायमान रहा। मंदिर के महंत नारायण गिरि ने कहा कि श्रावण मास के दौरान भगवान शंकर ने सृष्टि की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकले विष का पान किया था। उसके बाद देवी देवताओं ने भोले का जलाभिषेक किया। तभी से कांवड़ की परंपरा शुरू हुई।